देश-दुनिया

चर्म, पित्त विकार की औषधि – विदारी कन्द

डॉ. अनुज कुमार सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

यह लता जाति का पौधा है। इसमें कन्द बैठता है। इसी कन्द का व्यवहार चिकित्सा में होता है। जंगल के निवासियों के लिए यह सुपरिचित पौधा है। इसके पत्ते लोविया के पत्ते के समान होते हैं।
औषधीय उपयोग/गुण-धर्म – यह पौष्टिक है। इसका फुल नपसुंकता के मिटाने के लिए असम के लागे व्यवहार में लते हैं इसका कन्द मीठा होता है, जिसमें बहुत अधिक पोषक तत्त्व रहता है। इसके कन्द तैलीय भी होता हैं, जिससे यह अग्निवर्द्धक हो जाता है। यह रसायन है,जो कण्ठ की बीमारियों को मिटाता है। यह चर्मरोग, पित्त विकार, शरीर की जलन, अनैच्छिक धातु स्त्राव, मन्दाग्नि को दूर करता है। मुण्डा जाति के लोग इसके कन्द को शरीर पर रगड़ते हैं। यह स्तनों में दूध बढ़ाता है। कुपोषण जन्य बीमारियाँ इसके सेवन से मिटती है।
मात्रा – सुखा चूर्ण 2 से 5 ग्राम प्रतिदिन दूध या पानी से व्यवसायिक स्तर पर इसकी खेती बहुत उपयोगी है। इसके सेवन से कुपाषेाण मिटता है। यह सतुलित भोजन का विकल्प है। इसकी अधिक मात्रा में उत्पादन करने से यह काफी महँगी बिकेगी। इसका बाजार सम्पूर्ण आयुर्वेद उद्यम है। इसके सेवन से लोगों में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। यह पोषक तत्वों से भरपूर आहार का विकल्प है।

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Rekha Singh

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