देश-दुनिया

ताइवान को क्यों डरा रहा है चीन 

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

वैसे भी चीन सालों से ताइवान को डराने-धमकाने और उसे हड़पने का डर दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता, लेकिन वर्तमान में कोरोना विषाणु जनित विश्वव्यापी महामारी को फैलाने तथा जानकारी छिपाने के आरोपों से घिरा चीन का शीर्ष नेतृत्व दुनिया और अपने ही लोगों का ध्यान अपनी इस नाकामी और उससे उत्पन्न जन असन्तोष से हटाने तथा भटकाने को हर किसी से लड़ने-भिड़ने पर आमादा है। ऐसा करके चीन अपने लोगों को यह भरमाने की कोशिश कर रहा है कि चीन के लिए यह संकट काल है उन्हें राष्ट्रहित और उसकी सुरक्षा में शान्त रहकर उसका हर तरह से साथ देना चाहिए।
यही सब दिखाने के लिए चीन जहाँ भारत से पूर्वी लद्दाख, उत्तरी सिक्किम, उत्तराखण्ड के गुलदोंग पर सीमा विवाद के बहाने, तो समूचे ताइवान निगलने और दक्षिण चीन सागर पर कब्जा करने को जंग को धमका रहा है, वहीं वह हांगकांग पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर सारी स्वायत्ता हड़प रहा है। लेकिन चीन के धमकाने-डराने डरना तो दूर उसे हर किसी से कड़ी चुनौती मिल रही है। दक्षिण चीन सागर में चीन और ताइवान के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है, क्योंकि अब चीन ने ताइवान पर हमले की धमकी दी है। चीन का कहना है कि अगर ताइवान के स्वतंत्र बनने से रोकने का उनके पास दूसरा विकल्प नहीं बचा , तो उस पर हमला कर दिया जाएगा। इस पर ताइवान ने कहा कि युद्ध की धमकी देना अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
इसके साथ ही चीन ने चेतावनी के लहजे में कहा है कि आगामी अगस्त महीने मे वहं बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास करेगा। इसमें वह ताइवान के दोंगशा द्वीप समूह को अलग करने का अभ्यास किया जाएगा। इसके जवाब में ताइवान ने घोषणा की है कि वह जून माह में गोलीबारी (फायर एक्सरसाइज) का अभ्यास करेगा। इस अभ्यास के दौरान दोंगशा द्वीप समूह पर मोर्टार मशीनगन की पोजिशन परखी जाएगी। दोंगशा द्वीप समूह में एक द्वीप और दो मूंगे की चट्टानें (कोरल रीफ) हैं। इसके दो किनारे हैं। ताइवान ने इसे ‘राष्ट्रीय पार्क’ घोषित किया हुआ है।
चीन की सेना की लैडिंग अभ्यास को दक्षिण थियेटर कमाण्ड की ओर से आयोजित किया जाएगा। इससे बड़े पैमाने पर जंगी जहाज ,जल और थल दोनों पर चलने में सक्षम होना होवरक्राफ्ट ,हैलीकॉप्टर और मरीन सम्मिलित होंगे। इस बीच ताइवान ने चीन के किसी भी दुस्साहस का जवाब दोनों के लिए दोंगशा द्वीप समूह पर तटरक्षक (कोस्ट गार्ड की)की दो स्क्वाड्रन तैनात कर दी हैं। इसके अलावा 20, 40, 81 और 120 एमएम के मोर्टार भी द्वीप समूह पर तैनात किये गए हैं। यही नहीं, द्वीप समूह पर सैन्य प्रतिष्ठान को उन्नत किया गया है। ताइवान सरकार ने कहा कि चीन के कब्जे के किसी भी प्रयास का जवाब देने के लिए निगरानी और खुफिया गतिविधियों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
इतना ही नहीं,चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने भी कहा कि उनका देश ताइवान को अपने साथ मिलना चाहता हैं। विमानवाहक युद्धपोत जियाओनिंग और शेडोंग अभी पीतसागर(येलो सी) की बोहाई खाड़ी में मिशन की तैयारी में हैं, इन्हें ताइवान के करीब प्रोरास आइलैण्ड पर भेजा जा रहा है,वहाँ दोनों जंग बेड़े युद्धाभ्यास करेेगे। चीन की हरकतों को देखते हुए अमेेरिका ने भी इस इलाके में अपने तीन जंगी युद्धपोत भेज दिये हैं। इसके बाद से इस इलाके में तनाव पैदा हो गया है।

साभार सोशल मीडिया

चीन के लड़ाकू विमान और जंग जहाज लगातार ताइवान के आसापास युद्धाभ्यास कर रहे हैं। चीन इसे नियमित अभ्यास बताता है। ताइवान की स्वतंत्रता समर्थक साई इंग वेन ने जब दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी,तब अमेरिका के विदेशमंत्री माइक पोम्पियों ने उन्हें दोबारा निर्वाचित होने पर बधाई दी थी। इस बात से चीन बेहद चिढ़ गया। उसने अमेरिका को प्रत्युत्तर में कहा कि ताइवान उसके लिए सबसे संवेदनशील और अहम मुद्दा है। वह ताइवान को हर हाल में चीन में मिलाना चाहता है। चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने चीनी संसद की वार्षिक बैठक में कहा कि देश में ताइवान आजादी की किसी भी मुहिम का विरोध करेगा। इसके बाद कोरोना के मुद्दे पर अमेरिका के साथ बढते विवाद के बीच चीन ने दो जंगी जहाज ताइवान की तरफ रवाना कर दिये हैं।

दक्षिण चीन सागर को विवाद का मुद्दा बनने की खास वजह चीन का इस पूरे सागर पर अपना दावा करना है,जो इस सागर में स्थित दूसरे देशों को स्वीकार नहीं है। चीन दक्षिण चीन सागर से पेट्रोलिय पदार्थों और दूसरे खनिज निकालना चाहता है। वह इस क्षेत्र में न्यूक्लियर रियेक्टर भी बना सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिण चीन सागर पर युद्ध के हालात पैदा हो सकते हैं। उस युद्ध में चीन अमेरिका और रूस सम्मिलित हो सकते हैं। उधर चीन के रक्षामंत्री जनरल फंगे ने कहा कि अगर अमेरिका की तरफ से युद्ध छेड़ा गया, तो चीन हर कीमत पर लड़ने को तैयार है। दक्षिण चीन सागर वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए विश्व का सबसे महँगा जलमार्ग (शिपिंग वे)है। यहाँ होकर प्रति वर्ष इस मार्ग से 3.4 ट्रिलियन पाउण्ड का व्यापार होता है। ब्रिटेन का 12 प्रतिशत समुद्री व्यापार यानी 97अरब डॉलर का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है।कुछ समय पहले चीन वियतनाम की एक नौका को डुबा चुका है। इसी सागर वियतनाम के भारत की सहायता से तेल की खोज में लगा,जिसका चीन विरोध करता आया है।
तइवान पूर्वी एशिया में स्थित एक द्वीप है, जो अपने आसपास के कई द्वीपों को मिलाकर ‘चीन गणराज्य’ कहलाता है। इसका पुराना ‘फारमोसा’ था। इसकी राजधानी ‘ताइपे’ है, जो देश के उत्तरी भाग में अवस्थित है।यह देश का वित्तीय केन्द्र है। ताइवान का क्षेत्रफल 35.98 वर्गकिलोमीटर और जनसंख्या 23.78 मिलियनहै। चीन(जनवादी गणराज्य) ताइवान को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से अपना बताते हुए अपना दावा जताता आ रहा है। ताइवान के मूल निवासीे चीन के मुख्य भू-भाग फ्यूकियन और क्वांगतुंग प्रदेशों से आकर बसे लोगों के वंशज हैं। इनमें ‘ताइवानी’ उन्हें माना/कहा जाता है,जो द्वितीय विश्व युद्ध से पहले ताइवान में आकर बसे थे। ये ताइवानी दक्षिण चीनी भाषाएँ अमाय, स्वातोव और हक्का बोलते हैं।ताइवान की राजभाषा-मन्दारिन है।यहाँ के आदिवासी मलय, पोलीनेशियाई समूह की बोलियाँ बोलते हैं,जो बौद्ध, तोवोयिसम, कन्फूशियस धर्म के अनुयायी है।
चीन और ताइवान विवाद का मुख्य कारण चीन का उसे अलग देश के बजाए अपना प्रान्त मानना रहा है।लेकिन ताइवान की जनसंख्या का एक बड़ा भाग उसे अलग देश के रूप में देखती-मानती है।इसीलिए ताइवान की दोबारा राष्ट्रपति निर्वाचित हुई साई इंग वेन गत 20मई को शपथ ग्रहण समारोह के अवसर पर यह कहना आवश्यक समझा कि हम ‘एक देश,दो व्यवस्था’वाले तर्क के नाम पर चीन का आधिपत्य स्वीकार नहीं करेंगे,जिससे ताइवान का दर्जा कम कर दिया जाए और चीन-ताइवान सम्बन्धों ककी वर्तमान स्थिति बदल जाए।
यद्यपि राष्ट्रपति साई इंग वेन एक बार फिर चीन से बातचीत की पेशकश की। उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अपील की, कि वे तनाव कम करने के लिए उनके साथ मिलकर काम करें। दोनों पक्षों की ये जिम्मेदारी है कि वे सह-अस्तित्व का रास्ता खोजें तथा मतभेदों और मनमुटावों को खत्म करने के काम करें।पर चीन पहले की तरह ताइवान को दुनिया से अलग-थलग करने के अभियान को जारी रखना चाहता,जिसकी राष्ट्रपति साई इंग वेन प्रबल विरोधी रही हैं।
भले ही ताइवान कभी चीन के मुख्य भू-भाग का हिस्सा रहा है, पर वर्तमान ताइवान वहाँ के लोगों को अमेरिका और ब्रिटेन से मिला है, जिसे चीन सन् 1895 के ‘चीन-जापान युद्ध’ में हार के बाद गंवा चुका था। इस पर 50साल तक जापान का अधिकार रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के पराजित होने के पश्चात् अमेरिका-ब्रिटेन ने ताइवान को चीन के बडे नेता और मिलिट्री कमाण्डर च्यांग काई शेक को सौंप दिया था,जिन्होंने युद्ध उनकी सहायता की थी। उस समय च्यांग काई शेक की ‘नेशनलिस्टस कॉमिगतांग पार्टी’ का चीन के बड़े भू-भाग पर शासन था। बाद में माओ त्से तुंग के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सेना उनकी सेना को हरा दिया, तब वह और उनके सहयोगियों ने ताइवान पहुँच कर अपना शासन स्थापित कर लिया।तब चीन की कम्युनिस्ट सरकार नौसेना के कमजोर होने के कारण उस पर कब्जा करने में नाकाम रही।ऐसे ताइवान उसका कैसे हुआ?
वैसे चीन जिस आधार पर ताइवान पर अपना अधिकार जताता है,यदि ऐसा है, तो तिब्बत, पूर्वी तुर्की (शिनजियांग), अक्साईचिन, काराकोरम, हांगकांग पर वह किस आधार पर कब्जा जमाए बैठा है ? इस आधार पर यदि भारत भी दावा करने लगे,तो क्या स्थिति बनेगी?यह प्रश्न विचारणीय है।
वैसे भी चीन ताइवान के लोगों की राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रभक्ति से अच्छी तरह परिचित है। वह यह भी जनता है कि उसकी धमकी से ताइवानी डरने वाले नहीं हैं,लेकिन वह है कि अपनी आदत से बाज नहीं आता। परिणामतः उसकी चेतावनी के तुरन्त बाद ताइवान के चीन के मामलों के परिषद् ने ताइवानी नागरिकों के लिए तानाशाही और हिंसा सदैव अस्वीकार्य है। ताइवान का मानना है कि समस्याओं के समाधान का उपाय हिंसा और एकतरफा निर्णय से नहीं हो सकता। अब देखना है कि चीन की इन बेजा हरकतों का भारत ,ताइवान, हांगकांग दक्षिण चीन सागर में स्थित देशों विशेष रूप से जापान, वियतनाम, फिलीपीन्स,लाओस,इण्डोनेशिया समेत अमेरिका उसे कैसे जवाब देते हैं?
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054

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