30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

दुनियाभर में अखबार भले ही खबरों के लिए निकाले गए हों,पर अपने देश में विशेष रूप से हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत और उसका विकास ‘राष्ट्रीयता’ की उद्बोधक, उसकी सम्पोषक तथा उसके दिग्दर्शन के महती उद्देश्य के रूप में हुआ है। अब नए युग के आधुनिक पत्रकार भले ही पत्रकारिता को व्यवसाय/रोजी-रोटी कमाने का जरिया मानते हांे और मानकर चल भी रहे हों, लेकिन देश का जनमानस अब भी हिन्दी पत्रकारिता को राष्ट्र तथा समाज के लिए कार्य करना ही मानता है। यही कारण है कि वह इन उद्देश्यों से तनिक विचलन भी स्वीकार नहीं करता है।
आज हम लोग हिन्दी पत्रकारिता के जिस रूप-स्वरूप तथा विस्तार को देख रहे हैं,उसे इस स्तर/मुकाम तक पहुँचाने में अनगिनत त्यागी, तपस्यी पत्रकारों/साहित्यकारों का अथक परिश्रम लगा है, जिन्होंने हर तरह के खतरों का सामना करते और अभावों को झेलते हुए भी हिन्दी पत्रकारिता के उद्देश्यों पर किसी तरह की आँच नहीं आने दी।इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश शासन की यातनाएँ सहीं और जेलों में बन्दी भी रहे। यही कारण है कि आज घोर व्यावसायिकता के दौर तथा जन संचार के अनेकानेक माध्यमों के रहते हुए भी समाचार पत्रों की विश्वसनीयता किसी अन्य माध्यम से कहीं अधिक है।

कहने को तो अपने देश में पत्रकारिता का श्रीगणेश एक अँग्रेज जेम्स आगस्टस हिकी ने ‘बंगाल गेजेट ऑफ कैलकटा जरनल एडवाइजर’ नामक पत्र निकाल कर 30 जनवरी, 1780में किया था,लेकिन हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत कानपुर के रहने वाले कलकत्ता में दीवानी प्रोसीडिंग रीडर पण्डित युगल किशोर शुक्ल ने 30 मई,सन् 1826को हिन्दी मंे साप्ताहिक पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ प्रकाशित कर की ,जो इस बात से व्यथित थे कि अँग्रेजी, बांग्ला, फारसी भाषाएँ जानने वालों के लिए तो अखबार हैं, किन्तु हिन्दी बोलने -पढ़ने वालों के लिए हिन्दी में कोई समाचार पत्र नहीं है, ऐसी स्थिति में उन्हें समाचार जानने के लिए न केवल दूसरे लोगों की सहायता लेनी पड़ती है,बल्कि अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए भी उनके पास कोई माध्यम नहीं है। इसकी पूर्ति के लिए ही शुक्ल जी ने ‘हिन्दुस्तानियों के हित हेत’में साप्ताहिक ‘उदन्त मार्तण्ड’ निकाला। उन्होंने इसके सम्पादकीय अग्रलेख में लिखा-‘‘यह ‘उदन्त मार्तण्ड’’अब पहले पहल हिन्दुस्तानियों के हित हेत जो आज तक किसी ने नहीं चलाया,पर अँग्रेजी ओ पारसी ओ बंगले में जो समाचार का कागज छपता है,उसका सुख उन बोलियों को जानते ओ पढ़ने वालों को ही होता है। इससे सत्य समाचार हिन्दुस्तानी लोग देखकर आप पढ़ ओ समझ लेवें जो पराई अपेक्षा न करें जो अपने भाषे की उपज न छोड़ें। इसलिए दया करुणा ओ गुणनि के निधान सबके कल्याण के विषय गवर्नर की आयत से ऐसे साइत में चित्त लगायके एक प्रकार से यह नया ठाठ ठाठा। जो कोई प्रशस्त लोग इस खबर के कागज के लेने की इच्छा करें अपना नाम ओ ठिकाना भेजने से ही सतवारे के सतवारे यहाँ के रहने वाले घर बैठे और बाहर के रहने वाले डाकघर पर कागज पाया करेंगे।’’ इस पत्र के साथ विडम्बना यह रही है कि जिन हिन्दी बोलने-पढ़ने वालों के यह पत्र प्रकाशित किया गया था,उन्होंने ने ही इसे अपना बनाने पर ध्यान नहीं दिया। परिणामतः आर्थिक कारणों से पण्डित युगल किशोर शुक्ल को 4दिसम्बर, 1827को ‘उदन्त मार्तण्ड‘ का प्रकाशन बन्द करने को विवश होना पड़ा।
हिन्दी के प्रथम साप्ताहिक पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का छपना जरूर बन्द हो गया,लेकिन यह हिन्दी पत्रकारिता का स्वर्णिम मार्ग अवश्य प्रशस्त कर गया। हिन्दी पत्रकारिता के उन्नयन की इस यज्ञ में देश के विभिन्न भागों के विविध भाषा-भाषी पत्रकार/साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी सम्मिलित हो गए। इन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को देश के लोगों में स्वतंत्रता की अलख जगाकर उन्हें अँग्रेजों की दासता से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार किया। इन सभी के समवेत प्रयासों से न केवल हिन्दी के विकास, प्रचार-प्रसार को बढ़ावा मिला,बल्कि यह राष्ट्रीय आन्दोलन की भाषा बन गई। इससे राष्ट्रीय एकता की कोशिशों को बल मिला। हिन्दी पत्रकारिता ने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए समाज सुधार के आन्दोलनों में महŸवपूर्ण योगदान किया। यही कारण है कि 10मई, सन् 1829 में समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने साप्ताहिक पत्र ‘बंगदूत’ निकाला,जो बांग्ला,फारसी, अँग्रेजी तथा हिन्दी भाषाओं में छपता था। जनवरी, सन् 1845 में राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द ने हिन्दी साप्ताहिक पत्र ‘बनारस अखबार’ प्रकाशित किया, जिसके सम्पादक मराठी भाषी गोविन्द नारायण थत्ते थे। फिर कलकत्ते से ही 11जून,सन् 1846को ‘इण्डियन सन’(मार्तण्ड) और 6जून, सन् 1848 को इन्दौर से ‘मालवा’ अखबार’ निकला,जो मध्य भारत के साथ वर्तमान मध्य प्रदेश के पश्चिमी हिन्दी क्षेत्र से प्रकाशित होने वाला पहला पत्र था। फिर सन् 1850में तारामोहन मैत्रय बंगाली ने बनारस से हिन्दी और बांग्ला में ‘सुधाकर’ साप्ताहिक पत्र प्रकाशित किया। सन् 1852 में आगरा से मुंशी सदासुखलाल के सम्पादन ‘बुद्धि प्रकाश’ नुरूल बसर प्रेस’ से निकाला, जिसने हिन्दी पत्रकारिता में भाषा तथा शैली के विकास से महŸवपूर्ण भूमिका निभायी। फिर सन् 1852 में भरतपुर के राजा ने हिन्दी एवं उर्दू में ‘मजहरूल’ मासिक पत्र प्रकाशित किया।इसकी जुबान उर्दू और लिपि देवनागरी थी।इसे राजस्थान का प्रथम पत्र माना जाता है। इस बीच ग्वालियर से ‘ग्वालियर गजट’ तथा आगरा से ‘प्रजा हितैषी’ आदि पत्र प्रकाशित हुए। जून, 1854 को हिन्दी का प्रथम दैनिक पत्र ‘सुधा वर्षण’ का प्रकाशन हुआ,जिसका सम्पादन बांग्लाभाषी श्याम सुन्दर सेन ने किया। सन् 1855 में आगरा से शिवनारायण ने ‘सर्वहितकारक’ प्रकाशित किया। इसी वर्ष राजा लक्ष्मण सिंह ने आगरा से ही ‘प्रजा हितैषी’ नामक पत्र प्रकाशित किया। 8फरवरी, 1857 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अजीमुल्ला खाँ ने दिल्ली से उर्दू में राष्ट्रीय पत्र ‘पयामे आजादी’ निकाला,जो कुछ दिनों के बाद हिन्दी मंे प्रकाशित होने लगा।
सन् 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही देश के पश्चिम से अहमदाबाद(गुजरात)से ‘धर्मप्रकाश’, तो उत्तर में जम्मू-कश्मीर से ‘वृŸाान्त विलास। इसी समय लाहौर से नवीनचन्द्र राय ने ‘ज्ञान प्रदायिनी पत्रिका प्रकाशित की ,जिसके सम्पादक कश्मीरी पण्डित मुकुन्दराय थे। उसी समय मध्य भारत के रतलाम से ‘रतन प्रकाश’ तथा ‘मालवा अखबार’ प्रकाशित हुए। दिलचस्प तथ्य यह है कि उक्त सभी पत्रों के प्रकाशक अहिन्दी भाषी थे।सन्1861 में आगरा से के सम्पादन में ‘सूरज प्रकाश’ का उदय हुआ। गणेशी लाल सन् 1867में ‘धर्म प्रकाश’आगरा से भी हिन्दी एवं संस्कृत में प्रकाशित होने लगा। 1जनवरी,1863को आगरा के सिकन्दरा से मासिक पत्र ‘लोकमत’ प्रकाशित हुआ,इसमें अधिकतर बाइबिल का हिन्दी अनुवाद छपा करता था। सन् 1866में आगरा से पं.बंशीधर ने ‘भारतखण्ड मित्र’ निकाला। 15अगस्त, 1867 को बनारस से भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने साहित्यिक पत्रिका‘ कवि वचनसुधा’ प्रकाशित की।
फिर सन् 1868 में मुंशी सदासुखलाल ने प्रयाग से ‘वृŸाान्त दर्पण’ और केशवराम भट्ट गुजराती ने पटना से ‘बिहार बन्धु’ निकाला। उसी दौरान लाहौर से महिला उपयोगी पत्रिका‘ भारत भगिनी’का प्रकाशन हुआ, जिसकी सम्पादक-श्रीमती हेमन्तकुमारी चौधरी नवीनचन्द्र राय की बेटी थीं। इस बीच ही आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने गुजराती होते हुए हिन्दी में ‘आर्य दर्पण’ का प्रकाशन किया। अक्टूबर, सन् 1873 में भारतेन्द्र बाबू हरिश्चन्द्र ने ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ निकाली। 9जनवरी, 1874 को भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने महिलाओं में लेखन के प्रति रुचि जगाने के लिए ‘बाला बोधिनी’ पत्रिका का प्रकाशन किया गया। इसी साल मेरठ से पं.गौरीदत्त ने ‘नागरी प्रकाश’ पत्र निकाला। भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द ने भारतीयों को उनकी राष्ट्रीयता से परिचित कराने के उद्देश्य से सन् 1875 में ‘हरिश्चन्द चन्द्रिका’ पत्रिका प्रकाशित की।
1 सितम्बर,सन् 1877 को प्रयाग से बालकृष्ण भट्ट ने ‘हिन्दी प्रदीप’ मासिक पत्र प्रकाशित किया। सन्1877 में कश्मीर निवासी पण्डित दुर्गा प्रसाद मिश्र से अपने भाई छोटूलाल मिश्र के साथ कलकत्ता से ‘ भारत मित्र’ नामक पाक्षिक पत्र निकाला। फिर 17मई, सन् 1878 में कलकत्ता से हिन्दी में ‘भारत मित्र’ प्रकाशित हुआ, उस समय दूसरा कोई पत्र नहीं निकलता था। 13 अप्रैल, सन् 1879 में पं.सदानन्द जी के सम्पादन में ‘सारसुधानिधि’ प्रकाशित हुई। सन् 1879 में मेवाड़ के महाराणा सज्जन सिंह ने आगरा के पं.बशीधर वाजपेयी के सम्पादन में ‘सज्जन कीर्ति सुधाकर’ निकाला। इसके बाद 7 अगस्त, सन् 1880 में कलकत्ता से पं.दुर्गा प्रसाद ने ‘उचित वक्ता’, जुलाई,1881में मिर्जापुर से पं.बदरीनारायण उपाध्याय के सम्पादकत्व में ‘आनन्द कादम्बिनी,इसी साल ‘नवीनवाचन‘, लखनऊ से नवम्बर में ‘भारतदीपिका’, प्रयाग से पं.जगन्नाथ वैद्य ने ’आरोग्य दर्पण’ तथा 1882में प्रयाग से पं.देवकीनन्दन तिवारी ने ‘प्रयाग समाचार’ इसी साल व्यायाम अािद से सम्बन्धित मासिक पत्र ‘बलदर्पण’ तथा ‘देवनागरी प्रचारक’का प्रकाशन हुआ। इसी साल अजमेर से ‘देश हितैषी’ निकला। फिर सन् 1883 में पं.प्रताप नारायण मिश्र ने कानपुर से ‘ब्राह्मण’,इसी वर्ष ही अम्बिकादत्त व्यास ने ‘पियूष प्रवाह’ नामक पत्रिका तथा काशी से ‘काशी समाचार- निकला। 3 मार्च, सन् 1884 करे बाबू रामकृष्ण वर्मा ने काशी से ‘ भारत जीवन’ निकाला। फिर सन् 1885में राजा रामपाल सिंह ने लन्दन से ‘हिन्दोस्तान’ कालाकांकर ले आए और यहाँ से हिन्दी तथ अँग्रेजी संस्करण प्रकाशित करने लगे, जिसका सम्पादन महामना मदनमोहन मालवीय ने किया। इसके बाद सन् 1887 जबलपुर से पं.रामगुलाम अवस्थी के सम्पादन में ‘शुभ चिन्तन’ प्रकाशित किया।
इसके पश्चात् उन्होंने सन् 1888में ‘देवनागरी गजट’,सन् 1890में कलकत्ता से पं.अमृत लाल चक्रवर्ती ने ‘हिन्दी बंगवासी’ का प्रकाशन किया,जो साहित्यिक पत्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। 1जनवरी,सन् 1893में बाबू देवकीनन्दन खत्री ने मुजफ्फरपुर से ‘साहित्य सुधानिधि’ का प्रकाशन किया। 1896 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने त्रैमासिक पत्र के रूप में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ प्रकाशित की,जो सन् 1907में मासिक के रूप में छपने लगी।सन् 1900 में ‘सरस्वती’ का प्रकाशन शुरू हुआ,जिसका हिन्दी पत्रकारिता में अत्यन्त महŸवपूर्ण योगदान रहा है। सन् 1907में महामना मदनमोहन मालवीय ने साप्ताहिक पत्र ‘अभ्युदय’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया,जो सन् 1918में दैनिक के रूप में छपने लगा। 1अप्रैल,सन् 1907में नागपुर से डॉ.बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने ‘हिन्द केसरी’ का प्रकाशन किया। इसी साल इलाहाबाद से शान्ति नारायण भटनागर के सम्पादन में ‘स्वराज्य’ साप्ताहिक प्रकाशित हुआ। नवम्बर,सन् 1907 में कलकत्ता से पं.अम्बिका प्रसाद बाजपेयी के सम्पादन में ‘नृसिंह’तथा यहीं से जस्टिस शारदाचरण मित्र ने अपनी ‘एक लिपि विस्तार परिषद्’ नामक संस्था की ओर से‘देवनागर’ पत्र निकला,जिसमें देश की विभिन्न भाषाओं के साहित्य को देवनागरी लिपि में प्रकाशित किया जाता था,इसने साहित्यिक एकता को सृदृढ़ किया।सन् 1910में कानपुर से बाबू गणेश शंकर विद्यार्थी ने साप्ताहिक ‘प्रताप’ का प्रकाशन किया।इसी साल आगरा से सुधांशु’ तथा मथुरा से ‘प्रजाबन्धु’ निकले।
फिर उन्होंने सन् 1914में देवनागर’ नामक पत्रों का सम्पादन भी किया। सन् 1916में कलकत्ता बाबू मूलचन्द्र अग्रवाल नेे दैनिक‘ विश्वमित्र’ प्रकाशन शुरू किया। सन् 1918में नागपुर से सा.संकल्प’ का छपना शुरू हुआ। सन् 1919 में गोरखपुर से पं.दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने स्वदेश’ का प्रकाशन किया। इसी साल जबलपुर से माखनलाल चतुर्वेदी ने ‘कर्मवीर’ निकाला। सन् 1920में रामराख सहगल ने ज्ञानानन्द ब्रह्मचारी के सम्पादकत्व में साप्ताहिक ‘चाँद’ प्रकाशन हुआ,जो नवम्बर,1922से मासिक पत्र के रूप में निकलने लगा। 4अगस्त,सन् 1920 में कलकत्ता पं.अम्बिका प्रसाद वाजपेयी ने कलकत्ता से ‘स्वतंत्र’ निकाला। 5सितम्बर,सन् 1920 में बनारस से शिवप्रसाद गुप्ता ने दैनिक ‘आज’ निकाला। 5नवम्बर,,1920 को पं.रामगोविन्द त्रिवेदी के सम्पादन में ‘सेनापति’ निकला। 30जुलाई, सन्1922 में लखनऊ से ‘माधुरी’ का छपना शुरू हुआ। इस वर्ष ही रामकृष्ण मिशन ने माधवानन्द के सम्पादकत्व में ‘समन्वय’का प्रकाशन किया। ं13अगस्त,1923 में कलकत्ता से सा.मतवाला’ निकला। सितम्बर, सन् 1925 में रामचन्द्र वर्मा ने दिल्ली से वीर-रस प्रधान पत्र‘महारथी’ प्रकाशित किया।।,1926में बाबूराम वर्मा ने ‘हिन्दू पंच’ , सन्1928में रामानन्द चट्टोपाध्याय ने ‘विशाल भारत’, इसी वर्ष क्रान्तिकारी यशपाल ने ‘विप्लव’नाम साहित्यिक पत्र शुरू किया। सन् 1930में उपन्यास मुंशी प्रेमचन्द ने‘ काशी से ‘हंस’ का प्रकाशन किया,जिसने साहित्यिक क्षेत्र का एक नयी दिशा प्रदान की। फिर सन् 1938में प्रख्यात कवि सुमित्रानन्दन पंत ने ‘रूपाभ’मासिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब, गाँधी नगर, आगरा-282003
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