देश-दुनिया

हांगकांग की आजादी हड़पने को बेताव है चीनी अजदहा

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

हाल में हांगकांग में चीन के प्रस्तावित सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के विरोध में विभिन्न प्रकार के नारे लिखे बैनर और पोस्टर हाथ में लिए बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे और पुलिस के आँसू गैस के गोले चलाने तथा काली मिर्च के पाउडर फैंके जाने के बाद भी जिस बहादुरी से डटे रहे, निश्चिय ही उसे देखकर चीन की नींद हराम हो गई होगी, जो कोरोना विषाणु महामारी फैलाने के बाद आजकल वह भारत और अपने पड़ोसी मुल्कों को न सिर्फ आँखें दिखा रहा है, बल्कि उनकी थल और जल सीमाओं में अतिक्रमण कर अपरोक्ष-परोक्ष रूप से उन्हें के लिए युद्ध को उकसा भी रहा है। ऐसे में हांगकांग के लोग बधाई के पात्र हैं, जो चीनी डैªगन के गुस्से में लाल-लाल आँखें दिखाने और फँफकारने से डरने के बजाय पहले की तरह उसकी डट कर बराबर मुखालफत करते आ रहे हैं। सच बाता यह है कि महज 1,054वर्ग किलोमीटर में फैले हांगकांग के सिर्फ 75लाख से कुछ ज्यादा लोगों ने आज दुनिया का दादा बनने का ख्वाब देख रहे चीन की नाक में दम कर रखा है।
वैसे हांगकांग के लोगों का यह उग्र विरोध अकारण नहीं है, ब्रिटेन से हांगकांग के हस्तान्तरण के समय उन्हें जिन स्वतंत्र गतिविधियों के अधिकारों से सम्बन्धित शर्तों का पालन करने का वादा किया है, वह उसके बाद से एक-एक कर उन्हें मानने से मुकरता आ रहा है। उन्हीं शर्ताें के कारण वर्तमान में हांगकांग के लोगों को जैसे विशेषाधिकार मिले हुए हैं, वैसे अधिकार चीन की मुख्य भूमि के निवासियों को प्राप्त नहीं है। अब चीन हांगकांग के लोगोें को मिले सभी विशेषाधिकारों को हड़पने पर आमादा बना हुआ है। हांगकांग 1जुलाई, सन् 1997 को ब्रिटेन से चीन को हांगकांग का हस्तान्तरण करते समय उसने हांगकांग के लिए एक लघु संविधान बनाया था, जिसे ‘बेसिक लॉ’(बुनियादी कानून)कहा जाता है। इस कानून को हांगकांग की विशेष स्थिति को देखते हुए बनाया गया है। हांगकांग के उत्तर में चीन का गुआंग्डोंग और पूर्व, पश्चिम, दक्षिण में दक्षिण चीन सागर है,जो न केवल एक प्रसिद्ध बन्दरगाह पर स्थित है, वरन् एक वैश्विक नगर और विश्व की आर्थिक एवं वित्तीय गतिविधियों का केन्द्र भी है। बेसिक लॉ में हांगकांग के लोगों स्वायत्ता और स्वतंत्रता प्रदान की गई तथा चीन को केवल रक्षा और विदेशी मामले देखने का अधिकार प्रदान किया गया है। बेसिक लॉ के तहत यहाँ निवासियों को जनसभा करने, अपने विचार व्यक्त करने और रखने का अधिकार है। इसमें हांगकांग के लिए एक स्वतंत्र न्यायालय होने का प्रावधान भी है। इसे ही ‘एक देश ,दो व्यवस्थाएँ’नाम दिया गया,जो आगामी 50वर्षों यानी 2047 लागू रहनी है। चीन अब इस वादे को तोड़ रहा है।

साभार सोशल मीडिया

वैसे चीन अब जिस ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’को लागू करने जा रहा है,उसे सन् 2003 में भी लागू करने की कोशिश की थी, तब भी उसे लोगों के भारी विरोध के बाद अपने कदम वापस ले लिए थे। इसके बाद जब जुलाई, सन् 2014 चीन ने विवादित ‘प्रत्यार्पण कानून’ हांगकांग पर लागू करने का प्रयास किया, तब भी उसे यहाँ के लोगों का जबरदस्त उग्र विरोध का सामना करना पड़ा था। उस समय 79 दिनों तक चले जनान्दोलन को ‘अम्ब्रेला मूवमेण्ट’ नाम दिया गया । उसमें प्रदर्शनकारियों ने हांगकांग के हवाई अड्डे पर कब्जा कर लिया,ताकि विदेशी भी उनके आन्दोलन के कारणों को जान सकें। तब भी प्रदर्शनकारियों के दमन में हांगकांग की पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इस कारण उसमें हिंसा भी हुई और प्रदर्शनकारियों को जेल में डाल दिया गया। इस आन्दोलन के नेता जोशुआ वांग को देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। उनके प्रयासों से ही आज दुनिया को चीन के अत्याचारों का पता चला। इसके बाद ही चीन के जुल्मों के खिलाफ अमेरिका ने ‘ हांगकांग ह्यमून राइट्स एण्ड डेमोक्रेसी एक्ट’पारित किया है।
हांगकांगवासियों के लिए चीन के प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून फाँसी का फँदा जैसा है,जिससे उनका गला कभी भी घोंट कर जान ली जा सकती है। इस कानून के तहत चीन के विरुद्ध कुछ भी बोलना अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। इसके लिए कठोर दण्ड का प्रावधान है। इतना ही नहीं,इससे हांगकांग में विदेशी गतिविधियाँ सीमित हो जाने का भय है,जो पहले से अब बहुत कम हो गई हैं। परिणामतः यहाँ की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। इसलिए प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून से बेहद नाराज हांगकांग के लोग बड़ी संख्या में गत 24मई को कॉजवे -बे पर इकट्ठे हुए। उसके बाद उन्होंने जमकर चीन सरकार के खिलाफ नारे बाजी की।हालाँकि पहले उनका इरादा विवादास्पद नेशनल एन्थम(राष्ट्रगान) के विरुद्ध प्रदर्शन करने का था। इससे पहले इसी 18मई को जब चीन के राष्ट्रगान को लेकर विधान परिषद् में प्रस्तुत किया गया, तब लोकतंत्र समर्थक सांसदों ने इस विधेयक का जमकर बवाल किया।उस दौरान लोकतंत्र समर्थक और चीन समर्थकों के बीच जमकर मारपीट हुई। इसकी चर्चा अब पूरे विश्व में हो रही है। चीन के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द कर रहे हांगकांग के कुल बाशिन्दों में से 95 प्रतिशत ‘हान’जाति के है,जिसके चीनी हैं,पर हांगकांग में रहते हुए स्वायत्ता और स्वतंत्रता का आनन्द लेने के कारण उन्हें अब चीन केसाम्यवादी शासन की गुलामों की तरह रहना पसन्द नहीं है।
वैसे अब चीन की विदेश मंत्री वांग यी प्रदर्शनकारियों को विश्वास दिलाते हुए कहा,‘‘बेसिक लॉ’के तहत उन्हें स्वतंत्रता और वैध अधिकार दिये जाएँगे। हांगकांग के अधिकांश लोगों के न उनके अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और न शहरी कारोबारी माहौल पर।यह कानून एक देश दो व्यवस्थाओं का बरकरार रखेगा। लेकिन हांगकांग के लोगों के कहे पर भरोसा नहीं है।
चीन के मामलों के विशेषज्ञ लैम ने चिन्ता जताते हुए कहा है कि इस कानूनके तहत लोगों को चीन की आलोचना के आधार पर सजा दी जा सकती है। चीन की मुख्य भू-भाग में ऐसा ही होता है। वस्तृतः चीन हांगकांग में धीरे-धीरे से अपने सारे कानून लागू कर उसे बाकी देश जैसा ही बनाना चाहता है। उसकी इस इरादे से हांगकांग के लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं। अमेरिका भी चीन की इन चालों को जानता है, तभी तो उसके विदेश मंत्री माइक पोम्पियों ने चीन को हांगकांग स्वायत्ता और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है, ‘‘चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा और आधारभूत कानून के तहत हांगकांग स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता पर कोई भी निर्णय निश्चित तौर पर ‘एक देश, दो प्रणाली‘ और क्षेत्र की स्थिति के हमारे आकलन को प्रभावित करेगा।‘‘ उन्होंने चीन सरकार पर यह आरोप भी लगाया है कि चीन सरकार ने अमेरिकी पत्रकारों के काम में हस्तक्षेप करने की धमकी दी है। वैसे भी चीन का यह रवैया कोई नया नहीं है।जब से इस देश साम्यवादी सरकार बनी है,तभी से वह चीन आने वाले की न सिर्फ निगरानी करती है,बल्कि अपने मुल्क के हितों के खिलाफ कुछ भी करनेे भी नहीं देती। ऐसा करने वाले चाहे पत्रकार हों या कोई और,उससे इससे फर्क नहीं पड़ता।
अब जहाँ तक बेसिक लॉ का प्रश्न है तो इसके तहत चीन में लागू कानून जब तक तीसरी अनुसूची में दर्ज न हो जाएँ, हांगकांग में लागू नहीं किया जा सकते हैं। वहाँ पहले से कुछ कानून दर्ज हैं, लेकिन उनमें ज्यादातर प्रावधान गैर विवादास्पद और विदेश नीति से विषयों से सम्बन्धित हैं।
यद्यपि चीन के पास और भी रास्ते हैं। चीन के मुख्य भू-भाग में लागू को हांगकांग में डिक्री यानी कानून का दर्जा रखने वाले आधिकारिक आदेश के जरिए लागू किये जा सकते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि जिसे लागू होने की सूरत में हांगकांग की संसद के अधिकार को नजरअन्दाज कर दिया जाएगा। इधर हांगकांग की मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम ने कहा कि पहले ही कह रखा है कि वह इस कानून को जल्द से जल्द पारित कराने के लिए चीन सरकार का सहयोग करेंगी।उधर चीन के आलोचकों का कहना है कि ‘एक देश-दो व्यवस्थाएँ’ की अवधारणा का सरासर उल्लंघन है,जो हांगकांग के लिए बहुत अधिक महत्त्व रखता है।
चीन के मामलों के विशेषज्ञ प्रो.चान का विचार है कि प्रस्तावित कानून हांगकांग के ‘बुनियादी कानून’(बेसिक लॉ) के अनुच्छेद 23 का भी उल्लंघन करता है। ऐसा लगता है कि चीन बेसिक लॉ को अपनी मर्जी से परिभाषित कर सकता है और ऐसी घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। उनका यह भी कहना है कि चीन जिस कानून को हांगकांग पर लागू करना चाहता है उसका मसौदे से ये संकेत मिलते हैं कि हांगकांग की सरकार ‘बेसिक लॉ’ के अनुच्छेद 23 के तहत भी अलग से एक राष्ट्रीय कानून लागे की जरूरत है। अगर किसी राष्ट्रीय कानून में किसी बात पर रोक लगायी जाती है,तो उसे पहले तीसरी अनुसूची में जोड़ा जाना चाहिए। ये रास्ता हांगकांग की संसद से होकर जाता है,क्योंकि दोनों की न्याय व्यवस्था अलग-अलग है।प्रो.चान का आगे कहना है कि जो ‘आपराधिक न्याय’(क्रिमिनल जास्टिस) लागू है। वह अलग-अलग मूल्यों पर आधारित है। किसी बात को अपराध करार देते है इसका निर्णय हांगकांग को करना चाहिए,न कि चीन की केन्द्रीय सरकार को।
प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर हांगकांग के लोगों की आशंका और भय अकारण नहीं है। हांगकांग की न्याय व्यवस्था चीन जैसी हो जाएगी। हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग के लॉ के प्रोफेसर जोहन ए चान कहते हैं कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े लगभग सभी मामले में बन्द दरवाजे के पीछे सुनवायी होती है।ये कभी नहीं बताया जाता है कि क्या इल्जाम था और क्या सुबूत है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की संकल्पना भी इतनी अस्पष्ट है कि आप किसी भी गतिविधि को इसके दायर ेमंे ला सकते हैं। ऐसे में बहुत से लोगों कि बहुत से लोग को यह लगता है कि जिस किस्म की आजादी आज की तारीख में हासिल है,अगर उसमें कटौती की जाती है तो एक आर्थिक एवं व्यापारिक केन्द्र के रूप में हांगकांग का आकर्षण खत्म हो जाएगा। यह देखते हुए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आज हांगकांग में न केवल राजनीतिक भविष्य ,बल्कि आर्थिक भविष्य भी दांव पर लगा है। । ऐसे में हांगकांग के लोगों का राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर उग्र विरोध जरूरी है,उसका विश्व समुदाय को समर्थन और सहयोग करना चाहिए। सम्पर्क-डॉ.बचनसिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

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