राजनीति

फिर बेनकाब हुए दुराग्राही और फर्जी इतिहासकार

डॉ.बचन सिंह सिकरवार

साभार सोशल मीडिया

हाल में अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि परिसर के समतलीकरण के समय जिस बड़ी संख्या में प्राचीन मन्दिर के अवशेष मिल रहे है, उससे जहाँ एक ओर उन प्रमाणों की पुनः पुष्टि हो गई है, जिन्हें आधार बनाकर सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में इस स्थान को श्रीरामजन्मभूमि होना बताया था, वहीं दूसरी ओर इन पुरावशेषों ने बाबरी मस्जिद के पक्षकारों और उनके हिमायती वामपंथी इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों, छद्म पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के नेताओं के दुराग्रहों तथा अब तक की ज्यादातर सरकारों की नीति और नीयत को उजागर कर दिया है,जो यहाँ की सच्चाई को किसी भी सूरत में सामने आने देना नहीं चाहती थीं।
इनमें से कुछ अपने मजहबी अहंकार, तो कुछ के भारतीयों विशेष रूप से हिन्दुओं को उनकी अस्मिता के प्रतीकों एवं गौरवपूर्ण इतिहास से वंचित रखने के षड्यंत्र ,तो राजनीतिक दलों की अल्पसंख्यक मत आधारित राजनीति रही है। इनके सभी के निहित स्वार्थों के कारण हिन्दुओं को अपने आराध्य भगवान श्रीराम के मन्दिर की उस भूमि पाने और उस पर पुनःमन्दिर निर्माण कराने के लिए सदियों तक अनवरत संघर्ष और अनगिनत बलिदान देने और सैकड़ों वर्ष प्रतीक्षा करने को विवश होना पड़ा, जिसे 1528 में विदेशी आक्रान्ता बाबर के सिपहसालार मीर बाकी द्वारा भगवान श्रीरामजन्मभूमि भव्य प्राचीन मन्दिर को तोप से उड़ाकर ध्वस्त ़कर उसी के मलवे से मस्जिद खड़ी करायी गई थी।
वर्तमान में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर परिसर में इसी 11मई से मूल गर्भ के समीप हो रहे समतलीकरण में प्राचीन मन्दिर के अवशेषों में कलश, एक दर्जन से अधिक मूर्तियुक्त पाषाण स्तम्भ, देवी-देवताओं की खण्डित प्रतिमाएँ, नक्शीदार शिवलिंग, प्राचीन कुआँ, चौखट आदि प्राप्त हुईं। फिर 20 मई, बुधवार को 7 काले कसौटी और 6 लाल बलुए पत्थर के स्तम्भ प्राप्त हुए हैं। काले कसौटी(ब्लैक टंच स्टोन)के स्तम्भ का समीकरण उन स्तम्भों से स्थापित करता है, जिन पर दो हजार वर्ष पहले महाराजा विक्रमादित्य ने भव्य मन्दिर का निर्माण कराया था। उसी मन्दिर के 84 स्तम्भों में से 12 स्तम्भों का इस्तेमाल कर बाबरी मस्जिद खड़ी की थी , जिसे 6दिसम्बर,सन् 1992 में ध्वस्त कर दिया गया।
लेकिन इस्लामिक कट्टरपंथी,वामपन्थी, कथित पंथनिरपेक्षतावादी मानसिकता के लोगों को श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर के पुरावषों को खास फर्क न पड़ेगा,क्योंकि हकीकत उन्हें भी मालूम है,पर मंजूर हरगिज नहीं करेंगे। यही कारण है कि इन लोगों ने गत 9 नवम्बर, 2019 के सर्वोच्च न्यायालय के अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर/बाबरी मस्जिद विवाद दिया निर्णय पर यह कहते हुए शक-सन्देह जताया था कि उत्खनन मिले साक्ष्य पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं, तो कुछ को इसमें न्यायालय पर केन्द्र सरकार का दबाव दिखायी दिया। इसके बाद भी मुसलमान पक्षकारों ने आखिर तक अदालत जाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। इनमें अपवाद स्वरूप भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एसआई) के उत्तर क्षेत्रीय निदेशक रहे डॉ.के.के.मोहम्मद है, जिन्होंने अपनी आत्मकथा ‘‘आई एन इण्डियन’(मैं एक ,भारतीय)मेंअयोध्या में हिन्दू मन्दिर होने का

साभार सोशल मीडिया

उल्लेख किया है, जो सन् 1976-77में अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर/बाबरी मस्जिद परिसर के उत्खनन के समय प्रोफेसर बी.बी.लाल के दल के सदस्य थे। उनका कहना है कि यह मामला तभी सुलझ जाता,अगर वामपन्थी इतिहासकारों जैसे रोमिला थापर, डी.एन.झा, विपिन चन्दा, इरफान हबीब आदि द्वारा मुसलमान बुद्धिजीवियों का ब्रेनवॉश न किया होता। इनमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहासकार इरफान हबीब ने तो बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के साथ कई बैठकें की थीं। डॉ.के के. मोहम्मद ने समतलीकरण के समय पुरातात्त्विक अवशेषों के बारे में कहा है कि यहाँ स्वर्णिम इतिहास दफन है। इसलिए समतलीकरण का कार्य वैज्ञानिक ढंग से होना चाहिए। ये पुरावशेष अब वामपन्थी इतिहासकारों के गाल पर करारा तमाचा है, जिन्होंने सच छिपाने और झूठ बोलने में कभी शर्म तथा संकोच का अनुभव नहीं किया। इनमें से कथित इतिहासकार रोमिला थापर यह कहती आयी है कि अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि सिद्ध किया जाना असम्भव है। इन्हीं की तरह डॉ.डी.एन.झा के अनुसार इतिहास को आस्था के अनुसार नहीं लिखा जा सकता। प्रो.इरफान हबीब ने अन्य ऐसी बातों के साथ एएसआई की रिपोर्ट को भी एकतरफा बताया था, जबकि वह इतिहासकार हैं, पुरातत्त्वविद् नहीं। ए.एस.आई. की यह रिपोर्ट इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के अतिरिक्त महानिदेशक बी.आर.मणि के नेतृत्व में हुए उत्खनन में प्राप्त पुरातात्त्विक अवशेषों पर आधारित है जिसमें उनका कहना था कि ये मूर्तियाँ पुरातात्त्वविक साक्ष्य है। उनके अनुसार लगभग तीन हजार वर्ष ईसा पूर्व के तथ्य थे। एक गोलाकार मन्दिर दसवीं सदी का था। एक अन्य मन्दिर और खम्भों के अवशेष का भी उल्लेख था। मन्दिर 1500ईस्वी तक था।
जहाँ तक अयोध्या में बाबरी मस्जिद के इतिहास का सवाल है,तो सन्1528 से उसका कोई इतिहास नहीं है। सन् 1880 की फैजाबाद सेटलमेण्ट रिपोर्ट भी श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर के स्थान पर मस्जिद के निर्माण के तथ्य बताती है। इसके अलावा सन् 1902 के बाराबंकी डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में जन्मस्थानभूमि मन्दिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाये जाने का उल्लेख है। ऐसा ही सन् 1905 के फैजाबाद डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में लिखा है।

अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मभूमि और कर्मभूमि है,इस सत्य को जानते हुए भी किसी ने भी हिन्दुओं के साथ हुए इस अन्याय को दूर करने को कुछ भी नहीं किया। मुगल हमलावार बाबर के बाद उसके वंश का शासन 1857 तक चलता रहा। उस दौरान हिन्दुओं के शासन-सत्ता के स्तर न्याय मिलना असम्भव था,फिर भी वे अपने स्तर से इस पाने के बराबर प्रयास करते रहे।इसके बाद अँग्रेजों के शासन में भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ,पर अदालत से मिलने की कुछ उम्मीद उन्हें जरूर थी। दुर्भाग्य के बात यह है कि देश के स्वतंत्रत होने और धर्म के आधार पर उसका विभाजन के बाद बनी सरकारों ने हिन्दुओं के साथ हुए इस अन्याय को मिटाने पर कभी विचार भी नहीं किया।
यह दुर्भाग्य नहीं कि धार्मिक आधार पर अपने लिए अलग मुल्क की माँग करने वाले मुसलमान अपने नए मुल्क पाकिस्तान चले गए। फिर भी हिन्दुओं ने शेष देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के स्थान पर अपना धर्म निरपेक्ष संविधान बनाया और उसमें मुसलमानों को कुछ विशेषाधिकार भी दिया। लेकिन विभिन्न कारणों से हिन्दुओं से मतान्तरित होकर मुसलमान बनने वालों और धार्मिक और सामाजिक सद्भाव का ढिंढोरा पीटने वालों ने कभी हिन्दुओं की आहत धार्मिक भावनाओं को समझने और उनके साथ हुए धार्मिक अन्याय को दूर करने की कोशिश नहीं की।
इसके विपरीत उन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगाते रहे हैं,जो केवल हिन्दुओं के आराध्य ही नहीं, वरन् प्राचीन भारतीय इतिहास के महानायक भी है। भारतीय संस्कृति एवं जीवन मूल्य के पर्याय भी हैं। भारत का इतिहास यूरोपीय ढाँचे/सांचे के तरीके से नहीं लिखा है,पर उसका अपना स्वर्णिम इतिहास है,जो अपने ढंग का है। अयोध्या का वर्णन ‘उत्तर वैदिक काल के साहित्य में मिलता है। अथर्ववेद(10.2.31) में 8चक्र और 9द्वारों वाली देवपुरी अयोध्या का उल्लेख है,जिसमें राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम का जन्म हुआ और उसी जगह पर श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर विराजमान था।
यह सत्य अब भारत और विश्व के समक्ष आ गया है। लेकिन भारतीयों ऐसे सत्यों के अन्वेषण और उनके सरक्षण के प्रयास जारी रखने होंगे,ताकि फर्जी इतिहासकार, अवसरवादी, सुविधाभोगी कलमकार, बुद्धिजीवी,सत्ता लोभी राजनेता फिर कभी सत्य को ढकने की कोशिश में कामयाब न हो सकें।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

रमजान के पाक महीने में पाकिस्तान में जिस तरह से अपने यहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दुओं और ईसाइयों से जोरजबदस्ती के जरिए इस्लाम कुबूलवाने और उनकी बस्तियों को आग के हवाले करने या फिर उन पर बुलडोजर चलाकर उजाड़ने की वारदातों को अंजाम दिये जाने साथ- पड़ोसी मुल्क भारत की सरहदों पर बगैर किसी भड़कावे के लगातार जंगबन्दी के खिलाफ गोलीबारी करते रहने से, ,उसके हुकूमरानों के इस्लाम के सच्चे मुजाहिद होने पर शक होता है,जिन्हें रमजान महीने के सही माने तक पता नहीं है।अगर होता,तो क्या रमजान के पाक महीने में ऐसी गैर इस्लामिक और नापाक हरकतेे करते? रमजान में हर मुसलमान रोजा रखता है।वह अपनी इन्द्रियों पर काबू रखने के साथ-साथ न गलत ख्याल रखता है और न गलत बोलता है।ये कैसे खुदा के बन्दे है,जिन्हें बेबस, बेकसूर, लाचारों जुल्म ढहाते हुए खुदा के कहर की कोई परवाह नहीं हैं इस्लाम का मानने वाल रमजान के पाक महीने में रोजा रखते है इस्लामिक उसूल के किसी तरह का वास्ता यह नहीं लगता कि पाक के हुकूमरानों के इस्लामिक उसूलों से किसी तरह का वास्ता है।
रवैसे तो पाकिस्तान की बुनियाद इस्लाम मजहब पर रखी गई,लेकिनयूँ तो मुस्लिम आक्रान्ताओं,कट्टरपन्थी इस्लामिक शासकों विशेष रूप से मुगल शासक औरंगजेब के समय हजारों की संख्या में हिन्दुओं के मन्दिर ध्वस्त कराये गए और उनके सामग्री से मस्जिदें तामीर की गई। आज भी अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर विवाद हल के बाद कई प्रमुख मन्दिर न्याय पाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस कारण अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर, मुसलमानों से कभी वैसे इसे देश को दुर्भाग्य नहीं कि
बनायी मस्जिद क ।
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राश्ट्रपुरुश महाराणा प्रताप जयन्ती समारोह
रानी वाला घेरा,बेलनगंज,आगरा-282004
प्रतिष्ठा में
श्रीमान सम्पादक जी
दैनिक ….. आगरा
सादर प्रणाम।
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सविनय निवेदन यह है कि हमारी संस्था ‘राष्ट्रपुरुष महाराणा प्रताप जयन्ती समारोह समिति’ विगत 52 साल से महाराणा प्रताप एवं महान योद्धा छत्रसाल बुन्देला की जयन्ती हर वर्ष ज्येष्ठ सुदी तीज को मनाती आ रही है। इस वर्ष ज्येष्ठ सुदी तीज 25मई को है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण सार्वजनिक स्तर पर उक्त महापुरुषों की जयन्ती मनाया जाना सम्भव नहीं है। इसलिए मेरा महाराणा प्रताप और वीर योद्धा छत्रसाल बुन्देला के अनुयायियों से अनुरोध है कि वे अपने घरों पर इन दोनों महान वीरों के चित्रों पर माल्यापर्ण कर अपने परिजनों को उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में बताएँ और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प करायें।
संचालक
वीरेन्द्र सिंह शिखरवार
ज्येष्ठ सुदी तीज को

ज्येष्ठ सुदी तीज 25मई पर विशेष-
कब होगा -महाराणा प्रताप का सही मूल्यांकन
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
देश को स्वतंत्र हुए कोई 74साल हो गए, लेकिन अब तक हमने अपने इतिहास को न भारतीय दृष्टि स लेखन का प्रयास किया है और न ही अपने महापुरुषों का उचित मूल्यांकन ही कर पाए है। परिणातः महाराणा प्रताप समेत ऐसे तमाम ऐतिहासिक महापुरुष हैं,जिन्हें अब भी अपने सही मूल्यांकन की आवश्यकता है। जिसे आज हम भारतीय इतिहास कहते है,उसे अधिकतर विदेशी आक्रान्ताओं के साथ आए लोगों,उनके दरबारियों, उनके समकालीन उनके ही मजहब के विद्वानों, या फिर विदेश यात्रियों द्वारा लिखा गया है। पहले तो भारत में उस प्रारूप में इतिहास लेखन करने की परम्परा नहीं,जो यूरोप में मान्य है। भारतीय के इतिहास लेखन की रीति ‘रामायण’,महाभारत समेत तमाम ऐतिहासिका,धार्मिक,साहित्यिक काव्य,महाकाव्य एवं साहित्य की दूसरी विधाओं में लिखी गई है,जिसे यूरोपीय इतिहासकार उस साहित्य वर्णित तथ्यों,घटनाओं के विवरण को इतिहास में सम्मिलित नहीं करते। फिर आक्रान्ताओं के इतिहास लेखक विजितों को अपने शासकों के समकक्ष महत्त्व भला क्यों देने लगे? ऐसे में विदेशी इतिहासकारों द्वारा लिखे इतिहास का भारतीय दृष्टि स ेलेखन अत्यन्त आवश्यकता है,ताकि अपने ऐतिहासिक महापुरुषों के व्यक्तित्व एवं कृतिव्य का उचित मूल्यांकन कर सकें।
देश में अधिकतर इतिहासविद् ,विद्वजन और साहित्यकार अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि मुगल सम्राट अकबर महान् था या फिर महाराणा प्रताप। ये लोग मुगल सम्राट अकबर को धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद का पोषक और संरक्षक मानते हैं। यही नहीं,पहले भी अपने देश के कई नामी गिरामी इतिहासकारों ने उसे महान मुगल बादशाह यानी ‘अकबर द ग्रेट मुगल’कहा और उसी शीर्षक से पुस्तक भी लिखी है। इतना ही नहीं, उसकी तारीफ में बड़े-बड़े कसीदे काढ़े हैं। इनमें से कुछ इतिहासकारों ने महराणा े प्रताप की प्रशंसा में भी कमी नहीं छोड़ी है। उन्हें महान देशभक्त, आदर्शवादी, सिद्धान्तवादी बताते हुए उनके शौर्य, पराक्रम, वीरता, धीरता, बुद्धिमत्ता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। वे उन्हें ‘अद्वितीय योद्धा’ भी मानते हैं। क्या देश के स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी इस प्रश्न पर स्वतंत्र मन-मस्तिष्क से विचार नहीं कर सकते ? यहाँ प्रश्न यह है कि एक ही समय के दो परस्पर विरोधी एक साथ समान सम्मान के पात्र कैसे हो सकते हैं? इस विरोधाभास का सटीक उत्तर देने में अधिकांश इतिहासकार कतराते हैं, क्यों कि भारतीय जनमानस में महाराणा प्रताप की जैसी तस्वीर तत्कालीन लोक गायकों , इतिहासकारों, कवियों, लेखकों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से गढ़ी है जो लोगों के मन-मस्तिष्क अमिट बनकर रह गयी है, वैसी लोक जीवन में अकबर की छवि कहीं नहीं है। अकबर के प्रशंसक इतिहासकारों में डॉ.आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव , डॉ.राम प्रसाद त्रिपाठी, डॉ.रघुवीर, पण्डित राहुल सांस्कृत्यायन, डॉ.गोपीनाथ आदि हैं। ये ही इतिहासकार महाराणा प्रताप को महान देश भक्त, आदर्शवादी और अनुपम योद्धा बताते है, किन्तु उन्हें हठी और जिद्दी बताते हुए उनकी जीभर कर निन्दा और आलोचना भी करते हैं। इनके विचार से महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर से कथित सन्धि न करके उसके राष्ट्रहित के प्रयासों को बाधा पहुँचायी। उससे असहयोग करके अकबर के राष्ट्रीय सद्कार्यों विरोधाभास नहीं हैं? एक ओर महाराणा देशभक्त हैं और दूसरी ओर देश के अहितैषी भी हैं।
यह सच है कि सोलहवीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर एक बडे़ साम्राज्य का शक्तिशाली शासक था।दूसरी ओर महाराणा प्रताप एक बड़े प्रतापी कुल के प्रतिनिधि थे। उनके पास अकबर की तुलना में भू-भाग, धन-धान्य, सैन्य शाक्ति भले ही कम थी लेकिन देश के लोगों में जो मान-सम्मान महाराणा के कुल को प्राप्त था उसके आगे अकबर कहीं नहीं ठहरता था। फिर भी अकबर की ओर से महाराणा प्रताप से युद्ध के स्थान पर बार-बार सुलह के प्रयासों का प्रश्न है तो वह उसकी उदारता नहीं, इसकी पृष्ठभूमि अकबर की गहन कूटनीति थी। वह अपने हितैषी राजपूतों को रुष्ट करना नहीं चाहता था, जिन्होंने विभिन्न कारणों से और मजूबरी में उससे सुलह-सन्धि या उसकी अधीनता तो स्वीकार कर ली थी, लेकिन वे हृदय से महाराणा प्रताप की नीति को सही मानते थे। उनकी पक्षधरता भी प्रताप के साथ थी। निश्चय ही अकबर उनकी स्थिति से अनभिज्ञ नहीं होगा। इसका वह राजपूतों को यह दिखाना चाहता था कि उसने तो युद्ध टालने की बहुत कोशिश की, पर मजबूरी में जंग लड़ने को मजबूर होना पड़ा है।क्या कभी किसी इतिहासकार ने मुगल सम्राट अकबर द्वारा महाराणा प्रताप के समक्ष रखी सन्धि की शर्तों को एक स्वतंत्रता प्रिय स्वाभिमान राजपूत की तरह रख कर विचार किया ? अकबर ने बार-बार सुलह के प्रयास अवश्य किये, किन्तु वे शर्तें प्रताप के स्वभाव और उनकी कुल मर्यादाओं के अनुरूप नहीं थी, जिसके कारण वह चित्तौड़ पतन के बाद भी अपने वंश गौरव और स्वाभिमान की रक्षा हर हाल में अक्षुण्ण बनाये रखने को तत्पर थे। फिर भी अकबर दूसरे राजपूत राजाओं सरीखी शर्तें प्रताप से मनवाना चाहता था, किसी भी दशा में प्रताप को स्वीकार नहीं थी। उसकी कूटनीति के प्रत्युत्तर में प्रताप की ‘बहाना’ बनाने और ‘दिलासा देने’की नीति अपनायी , जिसने अकबर के मन में यह आशा जगाए रखी कि अन्ततः प्रताप उसके सम्मुख झुक जाएगा। इस कूटनीति में प्रताप ने निश्चय ही बाजी मार ली और लगभग चार वर्षों तक युद्ध को टालने में सफल रहा। वस्तुस्थिति यह है कि मुगल साम्राज्य को विशाल शक्ति से उत्पन्न अपने अहंकार,हठ प्रतिष्ठा-भावना और साम्राज्यीय महत्त्वाकांक्षा के कारण अकबर ने कोई महत्त्व नहीं दिया। उसके दूत मण्डलों द्वारा प्रताप ने एक सम्मानजनक समझौते के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष जो भी प्रस्ताव संकेत अकबर को दिये, उनको अकबर ने अनदेखा किया। वह अपने इस निर्णय पर अड़ा रहा कि प्रताप हर हालत में मुगल दरबार में हाजिर हो, उसको सलामी दे, और अन्य राजाओं की तरह साम्राज्य की चाकरी करें। इस लिए तथ्यान्वेषण के आधार पर यह सिद्ध हो जाता है कि मेवाड़-मुगल वार्ता की विफलता के लिए जो भी कारण रहे, उनके लिए अकबर का उच्च साम्राज्यीय अहंकार और हठ ही उत्तरदायी रहे। उसके लिए प्रताप को हठी बताकर उसको दोषी बताना ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वथा गलत है। 1. प्रताप स्वयं को मुगल दरबार में हाजिर होने तथा मुगल सेना से मुक्त रखना चाहता था। प्रत्येक दूत मण्डल को उसने इसके सम्बन्ध में अपनी मजबूरी बतायी थी। भगवानदास के साथ कुँवर अमरसिंह को अकबर के पास भेजने वाली बात यदि सही मानी जाए तो मेवाड़ की तत्कालीन परिस्थिति में अपने ज्येष्ठ पुत्र को अपने प्रतिनिधि के तौर पर मुगल दरबार में भेजने के लिए वह सम्भवतः राजी हो जाता, किन्तु अकबर की जिद्द थी कि प्रताप स्वयं दरबार में हाजिर हो। जहाँगीर के काल में सन् 1615ई.में जब मेवाड़ मुगल सन्धि में हुई, तब जहाँगीर ने अपने पिता वाली जिद्द छोड़ दी और राणा प्रताप स्वयं मुगल दरबारी और सेवक बनने से बचा रहा। 2. प्रताप ने मुगल सम्राट के आधिपत्य को इस आधार पर स्वीकार करने को सहमत थे कि मेवाड़ की स्वायत्तता अर्थात् अतिरिक्त स्वतंत्रता बनी रहे और मेवाड़ के जीते हुए इलाके इसको लौटा दिये जाएँ, दोनों राज्यों के बीच अनाक्रमण, सह अस्तित्व तथा पारस्परिक सहयोग के सम्बन्ध कायम रहें और मेवाड़ विदेशी एवं व्यापार आदि बाहरी मामलों में मुगल आधिपत्य में रहे।
यदि भारतीय दृष्टि से इतिहासकार महाराणा प्रताप और दूसरे ऐतिहासिक महापुरुषों को इतिहास में उनका वांछित देते हुए मूल्यांकन करते ,तो आज उनकी स्थिति अलग होती।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

महाराणा प्रताप

गत दिनों नयी दिल्ली स्थित अकबर रोड का नाम बदलकर महाराणा प्रताप मार्ग करने की चर्चा उठी,तो राजनीतिक गलियारों में भगवाकरण का शोर मच गया। यह शोर मुसलमानों से कहीं अधिक कथित धर्मनिरपेक्षता के अलम्बारदार बने हिन्दुओं ने उठाया। जो
प्रताप महान से साभार

क्यों ऐसी हिमाकत कर रहा है डैªगेन ?
डॉ. बचन सिंह सिकरवार
जब भारत समेत दुनियाभर के देश कोरोना विषाणु से फैली महामारी से अपने लोगों की जान बचाने में लगे हैं, तब चीन अपने सैनिक और हेलीकॉप्टर भारतीय सीमा में बार-बार भेजकर उसे युद्ध करने को उकसा रहा है, जो इस महामारी को पैदा करने और विश्व भर में फैलाने के लिए अब जिम्मेदार बताया जा रहा है। चीन भारत के साथ ये हरकतें/हिमाकत अनजाने में नहीं, वरन् सोची-समझी रणनीति के तहत कर रहा है। उसका इरादा अपने मित्र पाकिस्तान की सहायता और हौसला अफजाई के साथ-साथ भारत को पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) पर किसी भी हालत में कब्जा न करने देना है, क्यों कि गिलगिट-बाल्टिस्तान होकर ही तो उसका ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सीपीइसी) गुजर रहा है। इस पर उसने अरबों डॉलर का निवेश किया हुआ है। इसके जरिए चीन ‘वन बेल्ट वन रोड’ बनाकर विश्वभर के व्यापार पर अपना कब्जा जमाने की सोच रहा है, लेकिन भारत इसमें आड़े आ रहा है। अब वह अपनी इन हरकतों से लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखण्ड, अरुणाचल, सिक्किम पर दावा जताने के साथ ही नेपाल को भी लिपुलेख मार्ग को लेकर भारत के खिलाफ भड़का रहा है, जबकि उसका नेपाल से कोई लेना-देना नहीं है।
सच्चाई यह है कि चीन अब लिपुलेख तक सड़क और इससे पहले ब्रह्मपुत्र पर अरुणाचल को जोड़ने वाला पुल बनने और उनके चालू होने से बेहद परेशान है,इनकी वजह से भारत की सुरक्षा व्यवस्था बहुत सुदृढ़ हो गई है। चीन यह सब भारत को भयभीत करने के लिए कर रहा है, ताकि वह न हिन्द महासागर में उसका रास्ता रोके और न ही दक्षिण चीन सागर में वियतनाम समेत दूसरे मुल्कों की हिमायत में आगे आए। भारत और दूसरे मुल्कों के साथ विवाद पैदा कर चीन कोरोना महामारी फैलाने को लेकर अपने खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार से बचना और अपने खिलाफ बने माहौल से दुनिया का ध्यान हटाना चाहता है। इसकी वजह से जहाँ कई देशों ने चीन से न सिर्फ आयात कम या बन्द कर दिया है,वहीं कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ चीन से अपना कारोबार समेटने में लगी हैं। इतना ही नहीं, इनमें से कुछ भारत में उन्हें लगाने पर विचार भी कर रही हैं। इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा लगा कर चीन को डरा दिया है। वैसे भी पिछले सालों की तुलना में भारत ने चीन से कोई 10 अरब डॉलर के आयात कम किये हैं, जिसके अब और घटने के पूरे आसार बने हुए हैं।
अब कुछ जानकारों का विचार है कि चीन की भारतीय सीमा घुसपैठ के पीछे आगामी 22मई को भारत को ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’(डब्ल्यू.एच.ओ.) की कार्यकारिणी परिषद् का नेतृत्व मिलना है, इसे लेकर चीन उससे बहुत संशक्ति और परेशान है। यह 34सदस्यीय बोर्ड ही इस संगठन की नीतियाँ बनाता और निर्णय लेता है। इसे ही कोरोना महामारी को लेकर चीन पर लग रहे आरोपों की जाँच करनी है। साथ ही ‘विश्व स्वास्थ्य एसेम्बली में ताइवान को स्वतंत्र देश के रूप में भाग लेने पर फैसला करना है, जिसे चीन अपना ही भू-भाग मानता आ रहा है। इसलिए चीन भारत को आतंकित कर रहा है, ताकि वह उसके विरुद्ध निर्णय लेने से बचे।
वैसे तो कोई चौदह देशों से घिरा चीन अपने पड़ोसियों के भू-भाग और उनके सागरों को हरदम हड़पने की फिराक लगे रहने को बदनाम है, उसकी इस फितरत से पूरी दुनिया भी अच्छी तरह वाकिफ है। पाकिस्तान के सिवाय उसके सभी पड़ोसी देश उसे शक नजर से देखते हैं। पड़ोसी मुल्कों की जमीन हथियाने को चीन कभी अजदह (डैªगन) की तरह आग उगल कर डराने की कोशिश करता है, तो कभी उनके भू-भाग पर झूठे दावे कर या फिर चूहे की तरह कुतर-कुतर कर अपना बनाने में लगा रहता है। गत 16 मई को हिमाचल प्रदेश की सीमा में चीनी हेलीकॉप्टर घुस आए। इससे पहले उसने लद्दाख में अपने हेलीकॉप्टर भेजे थे, जिन्हें भारत के सुखोई लड़ाकू विमानों ने खदेड़ दिया था। इससे पहले 9 मई को उत्तरी सिक्किम के नाथु ला में चीनी सैनिकों और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प हुई, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिकों को हल्की चोटें आयीं। बाद में चीन और भारत के उच्च अधिकारियों ने इन विवादों को सुलझा लिया। इसी 5 मई को पूर्वी लद्दाख की पेंगोंग झील के पास चीन की ‘पीपुल्स लिबरेन आर्मी‘(पीएलए) सैनिक घुस आए, जहाँ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी)। तब चीन और भारतीय सैनिकों की बीच हाथापई हुई। जहाँ विगत वर्षों में अनेक बार चीन और भारतीय सैनिकों के मध्य झड़पों की घटनाएँ होती आयीं हैं। इनमें चीन और भारतीय सैनिकों द्वारा एक-दूसरे पर पत्थर फेंके गए। उसके बाद चीन सैनिक लौट गए। चीन ने पेंगोंग के पूर्वी दो-तिहाई हिस्से पर कब्जा किया हुआ है, जबकि भारत का एक- तिहाई पश्चिमी हिस्से पर आधिपत्य है। हाल में चीन की नौसेना के जहाज हिन्द महासागर में भी घुसे, जिसका भारत ने अपने विमानवाहक युद्धपोत भेजकर उनके घुसने पर विरोध जताया।
इन घटनाओं के कारण भारत-चीन के बीच तनातनी को देखते हुए कुछ लोग युद्ध होने की आशंका भी जताने लगे हैं, गत दिनों भारतीय थलसेनाध्यक्ष मनोज मुकन्द नरवाने ने स्पष्ट किया कि उत्तरी सिक्किम और पूर्वी लद्दाख की घटनाओं को चीन के साथ विवाद को सुलझा लिया गया है। इन दोनों घटनाओं का न तो आपस में कोई सम्बन्ध है और न ही किसी वैश्विक और स्थानीय गतिविधियों से ही उनका कोई लेना-देना है।
भारत और चीन के बीच 2,167 मील लम्बी सरहद है, जो वर्तमान में विश्व की सबसे लम्बी विवादित सीमा है। भारत अपने और चीन के बीच अँग्रेजों द्वारा बनायी गई ‘मेकमोहन रेखा’ को सीमा मानता है, जबकि चीन इसे मानने से इन्कार करता है। आजकल इन दोनों के बीच ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’(एलएसी) को मान्यता दी गई और विवादित क्षेत्रों -लद्दाख का अक्साईचिन, पेंगोंग, अरुणाचल के कुछ इलाके पर चीन अपना दावा जताता आया है। इसे वह दक्षिण तिब्बत बताता आया है। इसका कारण चीन का गश्ती दल और भारतीय सैनिकों के बीच अक्सर किसी-किसी भू-भाग पर अपने-अपने दावे को लेकर कभी आमने-सामने की बैठकें और ध्वजारोहण कार्यक्रम में मिलन,तो कभी इन्हीं सीमा विवादों को लेकर आक्रमक हिंसक झड़पें होती रहती हैं। भारत चीन सरकार को उसके सैनिकों द्वारा सीमा उल्लंघन किये जाने की घटनाओं को लेकर हर साल अपनी आपत्ति दर्ज कराता आया है। भारत ने पेंगोंग समेत दूसरी सीमा इलाके में चीनी घुसपैठ की सन् 2016 में 273, सन् 2017 में 426 और 326 सन् 2018 में शिकायतें दर्ज करायी हैं। सन् 2018 में ऐसी घटनाओं में कमी के बाद 2019 में चीन सैनिकों की घुसपैठ की 50 प्रतिशत तक वारदातें बढ़ी हैं। चीन सार्वजनिक रूप से भारत की ओर से घुसपैठ की कहीं शिकायत नहीं करता। 18 जून, 2017 को भारत, चीन भूटान के मिलन स्थल पर ‘डोकलाम’ पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हाथापई के साथ उग्र विवाद हुआ, जो एक पठार है। यह भारत के पूर्व सिक्किम जिला, भूटान के हा घाटी तथा चीन के यदोंग काउण्टी के मध्य अवस्थित है। इसे जहाँ भारत ‘डोकलाम’ कहता है,तो भूटान ‘डोक ला’, वही चीन इसे ‘डोकलांक’ कहता है। सामरिक दृष्टि से यह स्थान अत्यन्त महŸवपूर्ण है। इसे ध्यान में रखकर चीन यहाँ पर सड़क बनाने जा रहा था,जो भारत की सुरक्षा को खतरा में डालने वाली थी। इस स्थान से भारत इस 20 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र के जरिए अपने पूर्वोत्तर इलाके से जुड़ता है, जिसे ‘मुर्गे की गर्दन‘ (चिकन नेक) कहा जाता है। उस समय 73 दिन तक भारतीय और चीन सैनिक आमने-सामने डटे रहे। तब चीन ने काफी गदड़ी भभकी दीं, किन्तु भारत ने उसे प्रत्युत्तर में समझा दिया कि अब वह सन् 1962 का भारत नहीं रहा, जब उसने धोखे से आक्रमण कर जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के 43,000 वर्ग किलोमीटर के अक्सई चिन के इलाके को हड़प लिया था। अक्साई चिन को चीन तिब्बत का हिस्सा बताकर उसे अपना बता रहा है, जबकि यह जम्मू-कश्मीर का अभिन्न हिस्सा रहा है। इसके राजा ने अपने इस क्षेत्र से तिब्बत और चीन को शिनजियांग आने-जाने की सुविधा दी थी। अक्सई चिन का इलाके का क्षेत्रफल स्विट्जर लैण्ड के बराबर है। इसके पश्चात् चीन ने सन् 1967 में सिक्किम के नाथु ला पर हमला किया,जिसमें भारतीय सेना उसे बुरी तरह पराजित कर दिया, जिसकी चर्चा उसने कहीं किसी से नहीं की। इसमें चीन के 400 सैनिक मारे गए थे। डोकलाम के विवाद के उपरान्त चीन ने कुछ दूर हटकर सड़क बना ली है।यहाँ से 30किलोमीटर हटकर बंकर तथा भूमिगत सुविधाओं का निर्माण कर लिया है। दिलचस्प बात यह है कि सन् 2014में चीन भारतीय सेना पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया था।
सन् 1913 में जब भारत उत्तरी लद्दाख में देसपांग घाटी में एलएसी के निकट अपनी निगरानी सैन्य चौकी का निर्माण कर रहा था,तब चीनी सैनिकों ने उस पर सख्त आपत्ति की। 21दिन तक चले विवाद कोई परिणाम नहीं निकला। इसके बाद चीनी सैनिकों ने दक्षिण लद्दाख के चूमर में सिंचाई के नाली बनाने से रोकने की कोशिश की। जब सितम्बर,सन् 2014को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आमंत्रण पर चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग भारत के अहमदाबाद आए हुए थे,तब चीन के कोई 1000 सैनिक पहाड़ी से जम्मू-कश्मीर के चुमार क्षेत्र में घुस आए। उस समय भारत ने उनसे अपनी आपत्ति जतायी थी। बाद में ये चीन सैनिक अपनी सीमा में लौट गए।इसके बाद भी चीन सैनिक कभी पेंगोंग तो कभी उत्तरखण्ड आदि में घुसपैठ करते आए है। इस बीच भारत एलएसी पर लगातार सामरिक महŸवपूर्ण के 60 नए मार्गों और पुरानों का आधुनिकीकरण करने में जुटा है, जो 2022 तक पूर्ण हो जाएँगे।चीन ने सन् 1962 के युद्ध में भारत को युद्ध सामग्री और नेफा(अरुणाचल) पर भारत के दावे को समर्थन दिया था।अगर अरुणाचल में चीनी सैनिकों की घुसपैठ कर भारतीय सैनिकों से भिड़ता है,उस दशा में अमेरिका इसे सीमा विवाद नहीं, भारत के खिलाफ हमला मानेगा। इस कारण अरुणाचल पर आक्रमण करने से बचता आया है। अमेरिका भारत को उसके चीन से जुड़ी सीमाओं उसकी सभी हरकतों की गोपनीय सूचनाएँ और उन्हें प्राप्त करने के उपकरण उपलब्ध कराता है,इस बारे में सन् 2018में अमेरिका ने भारत के साथ ‘संचार अनुरूपता एवं सुरक्षा समझौता’( सीओसीएएसए) समझौता किया हुआ है। वह इस इलाके में चीन के बढ़ती शक्ति और प्रभाव को रोकने के लिए भारत का साथ लेना चाहता है,ताकि दक्षिण चीन, इण्डो-पैसिफिक में चीन को रोका जा सके। इसके लिए उसने भारत को विश्वस्तरीय युद्धक हेलीकॉप्टर, तोपें, अधिक भार के टैंक,तोपे युद्धस्थल पर ले जाने के लिए हवाई जहाज दिये हैं। विश्व राजनीति में भारत भी उससे राजनयिक, कूटनीतिक, गोपनीय सहायोग की अपेक्षा रखता है। इससे चीन भी बेखबर नहीं है,लेकिन वह अपने विरुद्ध भारत की निर्णय लेने की इच्छाशक्ति तथा सामर्थ्य को आजमाना चाहता है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

मेवात के हिन्दुओं के जुल्मियों को नमूने की सजा जरूरी

डॉ.बचन सिंह सिकरवार
पिछले दिनों ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ की एक रिपोर्ट में हरियाणा के मेवात इलाके में मुस्लिम कट्टपन्थियों द्वारा गैरकानूनी मस्जिदें मजारें, मदरसे बनाकर उनसे मुल्क के खिलाफ की जाने वाली अपनी गतिविधियाँ छुपाने को हिन्दुओं पर जुल्म ढहा कर उन्हें पिछले 25 सालों में यहाँ 50 गाँवों से अपने घर-द्वार छोड़ने को मजबूर किये जाने को लेकर, अब जो सनसनीखेज खुलासा किया है वह अत्यन्त दुखद और रोंगेट खड़े कर देने वाला है, क्योंकि अपना घर छोड़कर कोई यूँ नहीं चला जाता। वैसे हैरानी-परेशानी की बात यह है कि अब तक राज्य और केन्द्र सरकारों को हिन्दुओं पर एक समुदाय के कुछ लोगों द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न और अत्याचारों का पता क्यों नहीं चला? उनसे पीड़ित हिन्दुओं ने भी कभी उन आताताइयों की शिकायत अपने जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन से क्यों नहीं की? शासन-प्रशासन कोई कभी इन पर हो रहे जुल्मों की भनक क्यों नहीं लगी?
मेवात इलाके के नूंह जिले के गाँवों से हिन्दुओं के पलायन की सच्चाई का पता लगाने को गठित ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ की इस समिति में सेवानिवृत जनरल जी.डी.बख्शी , स्वामी धर्मदेव, एडवोकेट चन्दकान्त शर्मा रहे हैं, जिनकी रिपोर्ट पर सवाल खड़े नहीं किये जा सकते। इन्होंने अब अपनी रिपोर्ट में हिन्दुओं के उत्पीड़न की कई वारदातों को जिक्र भी किया है। वैसे मेवात इलाके में कुछ सौ साल पहले बड़ी तादाद में हिन्दुओं से मतान्तरित हुए मुसलमान बसते हैं, जो सालो-साल बहुत से रीति-रिवाज भी हिन्दुओं के मानते थे। लेकिन इस्लामिक कट्टरपन्थियों की तब्लीगी जमात ने उन्हें मजहबी कट्टर बना दिया। यह पूरा इलाका तब्लीगी जमात का बहुत बड़ा अड्डा बना हुआ है। इन कट्टरपन्थियों को देस-विदेश से बड़े पैमाने पर मस्जिद, मदरसों के नाम पर धन मिलता है, जिसका इस्तेमाल ये लोग उस जगह को ‘दारुल इस्लाम’ में तब्दील करने के मकसद में लगाते हैं। इसके लिए पहले अपने मजहबियों को दूसरे धर्म-पन्थ,सम्प्रदायों के लोगों से दूर रखने को कहते हैं। फिर वहाँ के लोगों पर तरह-तरह से मतान्तरित होने का दाबव बनाते हैं। ऐसा न करने पर उनका उत्पीड़न कर उन्हें पलायन को मजबूर किया जाता है। निजामुद्दीन स्थित तब्लीग जमात का एक बड़ा अड्डा नूंह में बताया जाता है। कुछ समय पहले इसी इलाके में विदेशी धन से एक विशाल मस्जिद बनाये जाने की खबर भी आयी थी, जिसमें लगे धन का स्रोत पता करने की बात भी तब कही गई थी।
वैसे मजहबी कट्टरपन्थियों ने ऐसा सिर्फ मेवात में किया हो, ऐसा नहीं है। ऐसी ही वारदातें देशभर के कई दूसरे इलाकों/जगहों पर होती आयी हैं, जहाँ कहीं खुद को अल्पसंख्यक समुदाय का बताने वाले ज्यादा तादाद में हैं ,वहीं उन्होंने दूसरे मजहब के लोगों का जीना दुश्वार कर दिया। देश में इसका सबसे बड़ा उदाहरण जम्मू-कश्मीर है, जहाँ इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने अब से कोई तीन दशक पहले कोई चार लाख कश्मीरी पण्डितों को रातों-रात अपना सबकुछ छोड़ने को मजबूर किया था। इसके लिए उन्होंने उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार तथा बड़ी संख्या में उनकी हत्याएँ कीं। बाद में उनके घरों, खेतो,बागों पर कब्जा कर लिया तथा मन्दिरों को खण्डहरों में तब्दील कर दिया। उसके बाद से ये लोग अब तक जम्मू में शरणार्थी शिविरों तथा देश के अलग-अलग शहरों में खानाबदोश की तरह रह रहे हैं। लेकिन आज तक खुद को कथित पंथनिरपेक्ष सियासी पार्टी बताने वाली काँग्रेस ,वामपन्थियों पार्टियों, सपा, बसपा आदि ने इस मामले में अपनी जुबान खोलने की जहमत नहीं उठायी है, पर जब -जब सुरक्षाबलों ने इस्लामिक कट्टरपन्थी अलगाववादियों और दहशतगर्दों के खिलाफ कार्रवाई की ,तो उसमें उन्हें नरसंहार और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन/हनन दिखायी दिया है। इन सियासी पार्टियों को हर जुम्मे/शुक्रवार को नमाज के बाद हाथ में पाकिस्तानी और इस्लामिक दहशतगर्द संगठन ‘आइ.एस. के झण्डे लिए पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाते युवाओं में भी कभी कोई खोट दिखायी नहीं दिया। पिछले कई साल से पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने हिन्दुओं का रहना दुश्वार कर दिया था। उनका भी बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। इसका एक बड़ा उदाहरण कैराना है, पर राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद इस स्थिति में बदलाव आया है। पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं पर इनके उत्पीड़न की खबरें आती ही रहती हैं, पर राज्य सरकार पीड़ित हिन्दुओं की नहीं, उन पर जुल्म ढहाने वालों की तरफदारी करती आयी है। केरल में मुस्लिम युवा ‘लव जिहाद’ के जरिए हिन्दू, ईसाई युवतियों को प्यार के जाल में फँसाते हैं। फिर उन्हें मतान्तरित कर जेहादी संगठनों या वेश्या वृत्ति में धकेल देते हैं। वहाँ इनकी अनुचित गतिविधियों के विरुद्ध आवाज उठाने के कारण ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरे हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं की निर्ममता हत्याएँ की गईं। लेकिन वहाँ की वामपन्थी गठबन्धन या काँग्रेस मोर्चे की सरकारों का संरक्षण मिला हुआ है,ऐसे में उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की उम्मी करना ही फिजूल है।
स्वतंत्रता के बाद से कुछ राजनीतिक दलों की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की सियासत की वजह से हिन्दुओं की उपेक्षा और अनदेखी होती आयी है, इसकी वजह से इस्लामिक कट्टरपन्थियों के हौसले बढ़े हुए हैं। नतीजा हिन्दू अपने ही देश में दोयम दर्जे की जिन्दगी बसर करने को मजबूर हैं।
अब जहाँ तक हरियाणा की बात है तो इसके गठन के बाद से भले ही काँग्रेस ने अधिक समय तक तो शासन किया हो, पर यहाँ दूसरे राजनीतिक दलों समेत पिछले छह साल से अधिक से भाजपा की सरकार है, जो अपने को हिन्दुओं का सबसे बड़ा पैरोकार बताती आयी हैं, उसने भी कभी हिन्दुओं की तकलीफ जानने की कोशिश क्यों नहीं की? यह सवाल बहुत अखर रहा है।
अब हरियाणा सरकार को चाहिए कि वह विश्व हिन्दू परिषद् की रिपोर्ट के तथ्यों का पता करने के लिए उच्च स्तरीय जाँच कराये। फिर हिन्दुओं के उत्पीड़न और गैरकानूनी मस्जिद, मदरसों, मजारों से देश विरोधियों हरकतों के लिए सभी दोषियों को पता कर उन्हें नमूने की सजा दिलाये, ताकि अपनी धरती पर अपने ही मुल्क के खिलाफ काम करने की कोई जुर्रत न करे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब गाँधी नगर,आगरा-282003मो.नम्बर-9411684054

क्या हासिल होगा नेपाल को भारत से ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकन्द नरवाने ने पड़ोसी नेपाल के भारत के लिए सामरिक महŸव के लिपुलेख- धारचुला मार्ग निर्माण पर आपŸिा जताने के पीछे किसी और इशारे होने की जो बात कहीं है, वह पूर्णतः है। ऐसा कह कर उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि यह विरोध और आपत्ति स्वयं नेपाल नहीं कर रहा है, बल्कि उसके पीछे चीन है। वैसे भी जिस भू-भाग पर इस सड़क का निर्माण वह भारत का है। नेपाल और भारत के बीच काली नदी विभाजक सीमा रेखा है। इसके पश्चिम में भारत तथा पूरब में नेपाल है। यह सड़क काली नदी के पश्चिम में बनी है,जो भारतीय भू-भाग है।
यह सब होने के बाद भी नेपाल अपना नया मानचित्र बनाकर इस इलाके अपना सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है। उसका झूठ इसी से प्रमाणित होता है कि यह सड़क के साल से बन रही है, पर नेपाल ने इतने वर्षों में कभी इस जमीन पर अपना अधिकार नहीं जताया। फिर यकायक उसे इस पर हक जताने की याद कैसे आ गई ?
जहाँ तक भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यन्त महŸवपूर्ण लिपुलेख मार्ग बात है तो वह उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से लिपुलेख तक सड़क मार्ग की दूरी 216 किलोमीटर है। इस गत 8 मई को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्र को समर्पित किया है। यह मार्ग जिला मुख्यालय से गर्बाधार तक सड़क पहले से थी, लेकिन गर्बाधार से चीन सीमा पर अन्तिम पड़ाव लिपुलेख तक सड़क अभाव हमेशा खलता रहा है। इससे भारतीय सेना को साजो-सामान के साथ चीन सीमा तक तीन दिन नहीं अब तीन से चार घण्टे में पहुँचा जा सकता है। इस सड़क से कैलास मानसरोवर यात्रा, आदि कैलास, भारत-चीन व्यापार भी आसान हो गया है। इससे आइटीबीपी और एसएसबी और मजबूत होगी।

वैसे भी चीन एक अर्से से एक-एक भारत के पड़ोसी देशों को भारत से अलग कर उसे घेरने में जुटा है। चीन नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया ही नहीं, पूरे एशिया में भारत किसी भी रूप में उसका प्रतिद्वन्द्वी बने हुए है। चीन भारत के पड़ोसी देशों को नाना प्रकार की सहायता – सहयोग के माध्यम से उन्हें अपने चंगुल फँसाने में लगा है। अब जहाँ तक भारत के नेपाल से रिश्तों का सम्बन्ध है तो नेपाल से भारत के विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक सम्बन्ध है, वैसे किसी अन्य पड़ोसी देश से नहीं है। दूसरे देशों की तरह भारत और नेपाल के लोगों को एक – दूसरे के यहाँ आने – जाने के लिए पासपोर्ट, वीजा की आवश्यकता नहीं पड़ती। नेपाल की कोई 2 करोड़ 80 लाख की आबादी में से लगभग 80 लाख लोग भारत में रहकर तरह – तरह से अपनी जीविकोपार्जन करते हैं। यहाँ तक कि नेपाली युवक भारतीय सेना में भी सेवाएँ देते आये हैं। भारत और नेपाल के बीच मैत्री सन्धि है, जिसके अन्तर्गत को कई विशेषाधिकार प्राप्त रहे हैं। विश्व में नेपाल एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था, जहाँ राजशाही थी। इसके विरुद्ध लोकतंत्रवादियों ने आन्दोलन किये, जिसमें भारत के कई समाजवादियों और लोकतत्रवादियों ने नेपाली नेताओं की सहायता की। परिणामतः यहाँ पंचायती व्यवस्था लागू हुई। उसके पश्चात् यहाँ पर नेपाली काँग्रेस तो राजशाही समर्थक दल सत्ता में आते रहे। बाद में कुछ विदेशी शक्तियाँ विशेष रूप से चीन के षड्यंत्र से राजशाही का अन्त हो गया। उसके बाद नेपाल हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा। नेपाल काँग्रेस अन्तर्कलह से गुटों में बँट कर कमजोर हो गई। चीन बहुत पहले से नेपाल के लोगों साम्यवादी विचारधारा की आड़ में उन्हें आर्थिक सहायता देकर राजनीति रूप से सशक्त बनाया। साम्यवादी मजबूत होते चले गए और सत्ता में आ गए।
जब से साम्यवादी नेपाल की सत्ता पर काबिज हुए हैं, तब से नेपाल भारत के विरोधियों का अड्डा बन गया है। नेपाल की अर्थव्यवस्था में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए उसने विभिन्न परियोजनाओं में बहुत अधिक धन का निवेश किया हुआ है जिनमें कई महŸवपूर्ण राजमार्ग और रेलमार्ग, बिजलीघर, दूसरे कारखाने हैं। चीन ने अपने दोस्त पाकिस्तान को भारत के खिलाफ गतिविधियाँ चलाने के लिए कई तरह की छूटें हासिल की हुई हैं। इसी कारण आज पाकिस्तानी गुप्तचर एजेन्सी ‘इण्टरसर्विसेज इण्टेलिजेन्स’ (आइ.एस.आइ.) साथ-साथ इस्लामिक दहशतगर्दो का अड्डा बना हुआ है। नेपाल की राजनीति में चीन का बोलबाला है। नेपाल ने अपनी विभिन्न परियोजनाओं में चीन के साथ भारत को जोड़ने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उसने चीन की फितरत जानने की वजह से उनमें भागीदार बनने से इन्कार कर दिया। तब नेपाल अपनी निर्भरता भारत से कम कर चीन से हर तरह के सम्बन्ध प्रगाढ़ बनाने में लगा है, इस तरह चीन अपने मकसद में कामयाब हो गया है। वर्तमान में भारत के साथ तो बस दिखावे के सम्बन्ध रह गए हैं। लिपुलेख सड़क के मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट किये जाने के बाद भी अब नेपाल जैसे तेवर दिखा रहा है,उससे यह छुपा नहीं रहा गया है कि वह किस की शह पर झूठा आरोप लगा रहा है। इसलिए उसने भी नेपाल को सबक सिखाने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। इसलिए उसने नेपाल से आने वाले पाम ऑयल पर रोक लगा दी है, जो वह मलेशिया से आयात करता था। मलेशिया के पाक के अन्ध समर्थन की वजह से भारत ने उससे पाम आयल का आयात बन्द कर किया हुआ है। इससे नेपाल फायदा उठा रहा था। अब चीन के इशारे पर नेपाल जो कुछ कर रहा है, उससे भारत से ज्यादा उसे ही नुकसान होगा, यह नेपाल की समझ में जितनी जल्दी आए,उतना ही उसके हित में होगा।
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कब बन्द होगा पाक में हिन्दुओ पर ये जुल्म ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के नवाबशाह की मस्जिद के इमाम हामिद कादरी ने एक हिन्दू जोड़े को जबरन इस्लाम कुबूल कराये जाने की घटना अत्यन्त दुखद होने के साथ यह भी साबित करती है कि यह मुल्क गैर मुस्लिमों के लिए जहन्नुम से कम नहीं है। जब इन दोनों को मुसलमान बनाया जा रहा था उस वक्त बरेलवी आन्दोलन के नुमाइन्दे और पाकिस्तान में इस्लामिक मजहबी संगठन ‘जमात अहले सुन्नत’ के नेता भी मौजूद थे। ये सभी प्रधानमंत्री इमरान खान के भी काफी निकट हैं। इनमें इमाम हामिद कादरी तो सिन्ध प्रान्त में बाकायदा हिन्दुओं और ईसाइयों का मतान्तरण करने की मुहिम चला रहा है। अपने पर होने वाले जुल्मों के खिलाफ अल्पसंख्यक हिन्दू और ईसाई आवाज उठाते आ रहे हैं, पर कहीं पर उनकी सुनवायी नहीं होती। पाकिस्तान सरकार, प्रशासन, पुलिस और मुल्ला, मौलवी, इमाम सभी के बीच गैर मुसलमानों के खिलाफ दुरभि सन्धि है। यहाँ कि गैर मुसलमानों को अदालतों में भी इन्साफ नहीं मिलता,पर कुछ अच्छे‘ – सच्चे मुसलमानों ने भी जब उन पर होने वाले जुल्मों के खिलाफ आवाज उठायी, तो उन्हें भी इस्लामिक कट्टरपन्थियों ने नहीं बख्शा। इसके बाद भी पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान बेशर्मी से भारत सरकार पर मुसलमानों पर जुल्म ढहाने के झूठे इल्जाम लगाते रहते हैं।
वैसे इन सभी की इस बेजां हरकत देखकर तो इनके सच्चे मुजाहिद होने पर ही शक होता है। क्या रमजान के पाक माह में कोई सच्चा मुसलमान ऐसा जुल्म ढहाता है ? यह महीना तो खुदा की इबादत का है, जिसमें किसी के खिलाफ सोचना ही कुफ्र होता है। लेकिन इस्लाम की बिना / बुनियाद पर बने पाकिस्तान ने उसके ही उसूलों की कभी परवाह नहीं की। अगर ऐसा रहा होता, तो क्या इस पाक महीने में पाकिस्तानी सेना जम्मू-कश्मीर की सरहद पर बगैर भड़कावे के भी गोलीबारी कर खून बहाती है। इसमें भारतीय सैनिक ही नहीं, आम नागरिकों ं की भी जानें जाती रहती हैं। इनमें ज्यादातर उनकी हममजहबी यानी मुसलमान है। इन मरने और घायल होने वालों में बच्चे, औरतें, बूढें भी शामिल हैं। इसके बावजूद कभी भी भारत के किसी मजहबी रहनुमा और पंथनिरपेक्षा सियासी पार्टियों के नेताओं ने पाकिस्तान में गैर मुसलमानों पर होने वाले जुल्मों की मजम्मत नहीं की है, जो मौजूदा वक्त में आए दिन केन्द्र सरकार परं मुसलमानों के कभी गैर बराबरी तो कभी जुल्म ढहाने के फर्जी इल्जाम लगाते रहते हैं।
अमेरिका स्थित सिन्धी फाउण्डेशन के अनुसार हर साल 12 से 28 साल तक की करीब एक हजार सिन्धी हिन्दू युवतियों का अपहरण किया जाता है जिनको इस्लाम कुबूल कराने के बाद मुसलमान युवकों से उनका निकाह कर दिया जाता है।
भारत के विभाजन के बाद बने पाकिस्तान में 23 प्रतिशत हिन्दू रह गए थे, जो धार्मिक उत्पीड़न, अत्याचार, अन्याय के कारण या तो देश छोड़कर चले गए या फिर उन्हें इस्लाम कुबूल करने को मजबूर होना पड़ा है। इस वजह से अब पाक में केवल 1.6 प्रतिशत हिन्दू से बाकी बचे हैं। इनमें भी ज्यादातर अनुचित जातियों के है,जो सफाई आदि जैसे कामों में लगे हैं। कुछ सूत्रों के मुताबिक वर्तमान में जिन युवतियों को इस्लाम कुबूल कराया जाता है इनमें 30 फीसदी हिन्दू और 70 प्रतिशत ईसाई युवतियाँ हैं। इनमें से ज्यादातर को चीनी युवकों को बेच दिया जाता है, जिसकी बड़े पैमाने पर मुखालफत हो रही है।
भारत को विश्व मंचों पर पाकिस्तान के इस घिनौने चेहरे को दुनिया के सामने लाना चाहिए,जो इन्सानियत को सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है।

घिनौनी हरकत करता,जिससे दूसरे को हने वालों के रमजान के दौरान शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा, जिस दिन जम्मू-कश्मीर सीमा पाक माह है, जिसमें पाकिस्तान

राज्, चीन के सड़क बनाने के लिए दोनों देशों की बीच जमकर हाथापई हुई। डोकलाम एक पठार है

इससे पहले 5मई को सिक्किम के नाथु ला में चीनी सैनिकों और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प हुई,जिसमें दोनों पक्षों के सैनिकों को हल्की चोटें आयीं। बाद में चीन और भारत के उच्च अधिकारियों ने इन विवादों को सुलझा लिया।
चीन सिक्किम के नाथु ला पर
चीन की पीपुल्स लिबरेन आर्मी(पीएलए)
लेकिन
अपराधी ों की तरह ही भारत भी के आसपास के गाँवों में लोग आज भी जब भी खाना बनाते हैं तो हर घर में 10रोटी अधिक बनती है ताकि जब भारतीय सेनाएँ उन्हें पाकिस्तान से मुक्त कराने आएँगी,तो वे भूखी न जाएँ। वहाँ के लोग आज भी इस इन्तजार में हैं कि एक दिन भारतीय सेना उन्हें पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने आएगी।
पाक की गिलगिट-बाल्टिस्तान को लेकर नई चाल
डॉ.बचन सिंह सिकरवार‘
गत दिनों पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के सामरिक रूप से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गिलगिट-बाल्टिस्तान में इन्तखाब (चुनाव) कराने की मंजूरी दिये जाने वाले फैसले के तुरन्त बाद भारत का उसके उच्चायुक्त आयोग को बुलाकर सख्त लहजे में जैसा विरोध जताया है, वह सर्वथा उचित और सामयिक है। भारत का यह कहना सही है कि यह इलाका उसका अभिन्न अंग और अपरिवर्तनीय भाग है, जिस पर उसने अवैध/नाजायज रूप से कब्जा किया हुआ है। यह क्षेत्र पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक व्यवस्था के अधिकार में नहीं आता, ऐसे में इस इलाके में चुनाव को लेकर उसका किसी भी तरह का फैसला लेना बेमानी है। भारत को पाकिस्तान को इस ़क्षेत्र को तत्काल खाली कराने कहा जाना भी पूर्णतः उचित है। इधर अब गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोग भी पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की खुलकर मुखालफत कर रहे हैं, क्योंकि वे भी पाकिस्तान के असल इरादों से अनजान नहीं हैं।
दरअसल, पाकिस्तान ने यह कदम सोची-समझी रणनीति के तहत अपने सर्वोच्च न्यायालय के जरिया उठाया है, ताकि इस इलाकों पर अपने कब्जे का जायज ठहराया जा सके। ऐसा करने के पीछे पाक सरकार का इरादा गिलगिट -बाल्टिस्तान को अपने दूसरे सूबों की तरह दिखाना है। पाकिस्तान के इस नए कदम के पीछे उसका इरादा चीन की सहायता करना भी हो सकता है, जिसका कोई 20,000 वर्ग किलोमीटर भू-भाग वह चीन को सन् 1963 में ही दे चुका है, जिस पर उसने सामरिक महत्त्व का ‘काराकोरम राजमार्ग’ बनाया हुआ है। अब इस इलाके में चीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सीपीईसी) का निर्माण करा रहा है, जिसमें वह अरबों डॉलर का निवेश कर चुका है। इसका भारत और अमेरिका घोर विरोध करते आए हैं। भारत का कहना है कि चीन जिस इलाके में आर्थिक गलियारा बना रहा है, वह भारत का है। इस कारण चीन भी गिलगिट-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का हक साबित कराने की कोशिश में जुटा है। इसके विपरीत अब गत 5 मई से भारत ने इस इलाके को अपना दावा प्रमाणित करने को मौसम विभाग से पाक के कब्जाए हिस्से को अपने बुलेटिन में शामिल कर मौसम सम्बन्धी आंकड़े और जानकारी प्रसारित करना शुरू करा दिया है, जो कुछ साल पहले बन्द कर दिया था। यह गलियारा चीन के शिनजियांग से लेकर पाकिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह को जोड़ता है, लेकिन इसे लेकर गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोग बेहद नाराज हैं, क्योंकि इसके लिए पाकिस्तान सरकार ने न उनसे सहमति ली थी और न इससे उन्हें अपना कोई फायदा ही नजर आ रहा है। इस गलियारे को बनाने के लिए उन्हें बड़ी संख्या में विस्थापित किया गया है। इसलिए वे इसके निर्माण का खुलकर विरोध कर रहे हैं। वैसे पाकिस्तान अब जिस गिलगिट-बाल्टिस्तान को अपना इलाका/सूबा साबित करने की कोशिश कर रहा है, एक समय जब खुद गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोगों ने इसे पाकिस्तान का आधिकारिक प्रान्त बनाने की माँग की, तब पाकिस्तान ने खुद ऐसा करने मना कर दिया था। तब उसका मनाना था कि ऐसा करने पूरा जम्मू-कश्मीर के मामले को लेकर चल रहे विवाद में उसकी माँग पर विपरीत असर पड़ेगा। लगभग 73 हजार वर्ग किलोमीटर में विस्तृत गिलगिट-बाल्टिस्तान प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न है। इसकी आबादी कोई 20 लाख से ज्यादा है।
वैसे इस इलाके में पहले भी कई दफा चुनाव हुए हैं और मुख्यमंत्री भी बन चुके हैं, पर इस दफा चुनाव अन्तरिम सरकार की निगरानी में होंगे। सामान्यतः पाकिस्तान में नए चुनाव से पहले एक अन्तरिम सरकार का गठन किया जाता है, जो अपनी निगरानी में चुनाव कराती है। इसी लिए अब पाकिस्तान सरकार की पहल पर गत 30 अप्रैल को वहाँ के सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार गिलगित बाल्टिस्तान पर अपना फैसला दिया है। इसमें उसने गिलगिट-बाल्टिस्तान में चुनाव कराने से पहले अन्तरिम सरकार को गठन किये जाने का आदेश दिया है। इस मुद्दे पर पाकिस्तान में बी.बी.सी. उर्दू सेवा के न्यूज एडिटर जीशान हैदर का यह खुलासा बहुत महत्त्वपूर्ण है कि अभी तक गिलगिट-बाल्टिस्तान इलाके के लिए ऐसा नहीं होता था। ऐसा पहली बार हुआ है कि वहाँ एक अन्तरिम सरकार की अगुवाई में सितम्बर, 2020 में चुनाव होंगे।
अब गिलगिट-बााल्टिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान ने भारत के विरोध का जवाब देते हुए कहा कि हिन्दुस्तान को इस पर अपना दावा जताने का कोई हक नहीं है, क्यों जम्मू-कश्मीर एक विवादित इलाका है। ऐसा वह ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय भी मानता है। इस विवाद का फैसला संयुक्त राष्ट्रसंघ (यू.एन.ओ.) के प्रस्तावों के तहत होना चाहिए, जिसमें कश्मीरी अवाम को राय शुमारी (आत्म निर्णय) का हक दिया गया है। इसका फैसला स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमंत्र संग्रह से ही हो सकता है। इतना ही नहीं, उसने उल्टे हिन्दुस्तान पर यह इल्जाम लगाया है कि पिछले साल 5 अगस्त को भारत की तरफ से जम्मू-कश्मीर की आबादी के साथ जो छेड़छाड़ की गई है, वह जिनेवा सन्धि का सरासर उल्लंघन है। उसने गत साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर की स्वायत्ता देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म कर इसे दो केन्द्र शासित प्रदेशांे-जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तब्दील कर दिया है। पाकिस्तान ने यह इल्जाम भी लगाया है कि हिन्दुस्तान गिलगिट-बाल्टिस्तान का मुद्दा उठाकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इससे नहीं भटका सकता कि उसकी सेना कश्मीरी लोगों को कैसे प्रताड़ित करती है ?
इस घटना बाद से इन दोनों मुल्कों के बीच कभी जंग छिड़ जाने की आसार नजर आने लगा है, क्योंकि पाकिस्तान के हुकूमरान इस बात को समझ गए हैं कि हिन्दुस्तान अब पहले जैसा नहीं है। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार जो कहती है, वह करके दिखाती भी है। वैसे जहाँ जब पूरी दुनिया के मुल्क कोरोना विषाणु से फैली महामारी से अपने लोगों को बचाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, वहीं तब पाकिस्तानी सरकार अपने लोगों को अल्लाहताला के रहम/भरोसे छोड़कर अपनी फौज से जम्मू-कश्मीर सरहद पर लगातार युद्धविराम का उल्लंघन करा रहा है। पाक सेना गोलीबारी की आड़ में अपने दहशतगर्द भारत की सरहद में घुसाने मंे लगी, ताकि वे वहाँ जाकर तबाही मचाकर इस्लामी राज कायम करने का रास्ता साफ कर सकें।
वैसे भी पाकिस्तान छल और मजहबी बिना पर बना है। पाकिस्तानी सेना ने देश विभाजन के बाद सन् 1947 में कबाइलों को आगे कर जम्मू-कश्मीर एक बड़े क्षेत्र पर गैर कानूनी कब्जा कर लिया था। इस इलाके को भारत में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) कहा जाता है। सन् 1947-48 में भारत-पाक युद्ध के पश्चात् 27 जुलाई, सन् 1949 को ‘कराची समझौता’ के जरिए युद्धविराम पर हस्ताक्षर किये। उसके बाद तत्कालीन भारत सरकार ने पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के उस भूभाग को फिर से हासिल करने की कभी कोशिश नहीं की। पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का यह इलाका पाकिस्तान का कोई आधिकारिक प्रान्त नहीं है। इस इलाके के बारे में शासकीय अधिकारों को लेकर पाकिस्तान का संविधान मौन है। पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर के इलाके को दो हिस्सों ‘आजाद कश्मीर’ तथा ‘नॉर्दन एरिया’ में बाँट दिया। तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ वर्तमान नियंत्रण रेखा के पश्चिम में मीरपुर मुजफ्फराबाद का क्षेत्र है, जिसकी सरहद जम्मू और कश्मीर घाटी के थोड़ा ऊपर तक लगती है। यह पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का छोटा हिस्सा है, जो उस जमीन का सिर्फ 15 फीसद हिस्सा है। पाकिस्तान ने बड़ी चालाकी से इस इलाके को फर्जी आजादी (छद्म स्वतंत्रता) प्रदान की है। आजाद कश्मीर में अपना वजीर-ए-आजम, सुप्रीम कोर्ट, कुछ संस्थाएँ कायम की गयी हैं। मीरपुर मुजफ्फराबाद का इलाका रावलपिण्डी के पास है, जहाँ पाकिस्तानी फौज का मुख्यालय (जनरल हैड क्वार्टर) है। इस क्षेत्र को आजाद कश्मीर घोषित कर यहाँ से पाकिस्तानी फौज बड़ी आसानी से भारत विरोधी गतिविधियाँ चलाती आयी हैं।
पाकिस्तान के नाजायज कब्जे वाले इलाकों को कायदे से ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ कहना सही होगा, क्योंकि यह क्षेत्र भारत के संवैधानिक रूप से स्वीकृत जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा है। दूसरा तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ में असल कश्मीर की एक इंच जमीन भी शामिल नहीं है। इसके बावजूद इसे ‘आजाद कश्मीर’ कहने के पीछे पाकिस्तान की मंशा और इरादा ऐसा वाक्या तैयार/नैरेटिव सेट किया जाना है, वह कश्मीर के नाम से। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के नाम से नहीं। पाक के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर का दूसरा सबसे बड़ा 85 फीसदी हिस्सा गिलगिट-बाल्टिस्तान है। इसे सन् 2009से पहले तक ‘नॉर्दन एरिया’कहा जाता था, जिसकी सरहद दक्षिण में मीरपुर मुजफ्फराबाद इलाके, कश्मीर घाटी तथा कारगिल से जुड़ती है।
पूर्व में गिलगिट-बाल्टिस्तान की सीमा पॉइण्ट एनजे 9842 तक लेह से लगती है। पॉइण्ट एनजे 9842 के ऊपर सियाचिन ग्लेशियर स्थित है। उसके ऊपर से ‘काराकोरम दर्रा’ है। सियाचिन के ठीक ऊपर ‘शक्सगाम’ घाटी है, जो गिलगिट-बाल्टिस्तान की अंग है। सन् 1970 में पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान को अलग प्रशासनिक इकाई का दर्जा दिया था। फिर सन् 2009 के इस आदेश को सन् 2018 में संशोधित कर दिया गया था। हालाँकि सन् 2018 में पाकिस्तान ने कई तरह के विशेष अधिकार गिलगिट-बाल्टिस्तान विधानसभा को दिये थे,लेकिन उसमें भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण रखी। इससे पहले भी गिलगिट-बाल्टिस्तान पर कोई फैसला करने के लिए एक समिति होती थी, जिसके प्रमुख पाकिस्तान के प्रधानमंत्री होते थे, पर सन् 2009 के आदेश को सन् 2018 में संशोधित कर दिया गया था। अब पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद के नेतृत्व वाली सात सदस्यीय खण्डपीठ ने सन् 2018 में गिलगिट-बाल्टिस्तान सरकार के आदेश को संशोधित करते हुए चुनाव कराने की मंजूरी दी है। गिलगिट-बाल्टिस्तान सरकार का वर्तमान कार्यकाल आगामी जून माह में समाप्त होने जा रहा है। इसके 30दिनों के भीतर आम चुनाव होने चाहिए।
यद्यपि गिलगिट-बाल्टिस्तान ऐतिहासिक रूप से शुरुआत में अलग-अलग राजनीतिक इकाइयाँ थीं। गिलगिट को ‘दर्दिस्तान’ के नाम से जाना जाता था, क्योंकि यहाँ के बाशिन्दे ‘दरर्दी जुबान’ बोलते थे। इसी तरह मध्य काल में ‘बाल्टिस्तान’ को ‘छोटा तिब्बत’ कहा जाता था, तथापि कालान्तर में डोगरा शासन में इनका एकीकरण ‘गिलगिट-बाल्टिस्तान’ सूबे के रूप में हो गया। प्राचीन काल में गिलगिल्ट मौर्य शासन के आधिपत्य में भी रहा। इसका प्रमाण काराकोरम मार्ग पर सम्राट अशोक के 14 शिलालेखों का होना है। फिर 724-761ईस्वी ललितादित्य और तदोपरान्त कार्कोट वंश के काल में ‘गिलगिल्ट-बाल्टिस्तान’ कश्मीर साम्राज्य का अटूट हिस्सा रहा। ललितादित्य ने अपने शासन काल में बाकी हिन्दुस्तान के कश्मीर से ऐतिहासिक सम्बन्धों को सुदृढ़ किया। बाद में गिलगिट -बाल्टिस्तान मुगल शासन का हिस्सा रहा। इसके कमजोर होने पर साठ सालों तक कश्मीर पर अफगानों का शासन रहा। उस दौरान भी गिलगिट-बाल्टिस्तान कश्मीर साम्राज्य का हिस्सा रहा। उस वक्त अफगानों के अत्याचारों से परेशान होकर कश्मीरी पण्डित बीरबल धर की अगुवाई में कश्मीर की जनता ने सिख महाराजा रणजीत सिंह से उनसे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। इस पर 15 जून, सन् 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर पर हमला कर अफगान शासक को युद्ध में हरा कर कश्मीरियों को अफगानों के अत्याचारों से मुक्ति दिलायी।
महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू का इलाका राजा गुलाब सिंह को जागीर के तौर पर दिया। तदोपरान्त कई लड़ाइयाँ हुईं और राजनीतिक व्यवस्थाएँ बदलीं। अँग्रेजों ने सिखों को युद्ध में हरा दिया। 9 मार्च, सन् 1846 में ‘लाहौर सन्धि’ के बाद पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य पर गुलाब सिंह राज कायम हो गया। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध सन् 1917 की रूसी क्रान्ति और सत्ता बदलने की वजह से नए शक्ति सन्तुलन से परेशान अँग्रेजों ने डोगरा महाराजा गुलाब सिंह से गिलगिट एजेन्सी 60 साल के पट्टे पर ले लिया, ताकि रूस को इस इलाके में घुसने से रोक जा सके। सन् 1934 में रूस ने चीन के शिनजियांग सूबे पर कब्जा कर लिया।
अँग्रेजों ने गिलगिट एजेन्सी गठित की और गिलगिट स्काउट्स नामक सैन्य टुकड़ी की बनायी। इसके ज्यादातर अधिकारी अँग्रेज थे। 3 जून, सन् 1947 में लार्ड माउण्ट बेटन योजना की घोषणा के पश्चात् गिलगिट को फिर से महाराजा हरि सिंह को सौंप दिया गया। इसके बाद गिलगिट स्काउट्स भी महाराजा हरि सिंह को अधीन हो गयी। फिर 30 जुलाई, सन् 1947 करे गवर्नर और चीफ ऑफ स्टॉफ को गिलगिट को भेजा, तो उन्हें मालूम हुआ कि गिलगिट स्काउट्स ने पाकिस्तानी सेना शामिल होने का फैसला कर लिया है। 31 अक्टूबर, सन् 1947 को गिलगिट ने गवर्नर निवास को घेर कर अन्तरिम सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है। 4 नवम्बर, सन् 1947 को मेजर ब्राउन ने पाकिस्तान का झण्डा फहरा दिया और 31नवम्बर का खुद को एक पॉलिटिकल एजेण्ट बताने वाले एक पाकिस्तानी ने आकर अड्डा जमा लिया। गिलगिट -बाल्टिस्तान में पाकिस्तान सरकार के अत्याचारों तथा मानवाधिकार उल्लंघन पर ब्रिटिश बैरोनेस एम्मा निकोलसन ने यूरोपियन पार्लियामेण्ट में एक रपट पेश की थी। गिलगिट -बाल्टिस्तान का कोई बाशिन्दा वहाँ कोई रोजगार नहीं प्राप्त नहीं कर सकता। उसे रोजगार/नौकरी के लिए पाकिस्तान के किसी शहर में जाना होगा। पाकिस्तान गिलगिट-बाल्टिस्तान में बाँध का निर्माण कर रहा है, जिसका जल, विद्युत या स्वत्व -शुल्क/रॉयल्टी कुछ भी इस क्षेत्र को नहीं मिलने वाला। इस इलाके के ऊपर से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीइसी) होकर गुजरता है और शक्सगम घाटी से निकटता के चलते चीन बड़ी आसानी से यहाँ अपने कर्मचारी भेजकर निर्माण करा रहा है।
गिलगिट -बाल्टिस्तान में कई प्राचीन भाषाएँ विलुप्त होने के स्थिति में हैं। यहाँ सांस्कृतिक इस्लामी जरूरी है, पर कई इस्लामिक फिरके के लोग रहते हैं, इनमें नूरबक्शी, घुमक्कड़ शिया, सुन्नी मुसलमान भी हैं। यहाँ गैर इस्लामिक लोगों को जबरदस्ती मतान्तरण होता रहा है। यहाँ के लोगों को बुनियादी सुविधाओं भी हासिल नहीं है। स्कर्दू के आसपास के गाँवों में लोग आज भी जब भी खाना बनाते हैं तो वे हर घर में 10 रोटी अधिक बनाते हैं। उन्हें इस बात की प्रतीक्षा की है कि जब भारतीय सेनाएँ उन्हें पाकिस्तान से छुटकारा दिलाने आएगी, उस समय वह भूखी न रहे।
फिलहाल,पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान पर अपना कब्जा जायज साबित करने को जो कदम उठाया,उससे विश्व समुदाय पर कितना असर पड़ेगा,यह तो आने वक्त बताएगा। लेकिन अब भारत ने गिलगिट-बाल्टिस्तान को अपना बताते हुए उसे खाली करने की जो चेतावनी दी है,उससे निश्चय ही उसकी रातों की नींद जरूरी हराम हो गयी होगी।
सम्पर्क-डॉ.बचनसिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

कराने आएँगी,तो वे भूखी न जाएँ। वहाँ के लोग आज भी इस इन्तजार में हैं कि एक दिन भारतीय सेना उन्हें पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने आएगी।

संरचना पर इस्लामी प्रभाव होने के बाद भी विविधता है। यहाँ कई इस्लामिक सम्प्रदाय के लोग रहते हैं यथा- नूरबक्शी सम्प्रदाय, घुमक्कड़ शिया सम्प्रदाय और सुन्नी है। गिलगिट-बाल्टिस्तान के सिंकरी प्रदेश के निवासी गाय को पवित्र मानते हैं, पर इस्लामियों के डर के मारे अब वे अपनी प्राचीन मान्यताओं को तजने के लिए बाघ्य हैं। गिलगिट के निकट स्थित चित्राल घाटी के आसपास कलश समुदाय के लोग रहते हैं। इनकी बेटियों को विवश होकर इस्लाम कबूल करना पड़ता है, क्योंकि गर्मियों में कामान्ध भेड़ियों अपनी हवस मिटाने इनके पास आते हैं। पाकिस्तानी शासन में ऐसी अनेक विषमताओं से जूझते हुए गिलगिट -बाल्टिस्तान और आसपास के लोग कश्मीर नामक स्वर्ग में नर्क भोगने को मजबूर हैं। सन् 2005 में आए भूकम्प के पश्चात् स्थिति और खराब हुई है। कैप्टन सिकन्दर रिजवी अपने भाषणों में में बताते हैं कि वहाँ बच्चों के लिए चीनी जैसी चीज भी विलासिता की वस्तु है।
स्कर्दू के आसपास के गाँवों में लोग आज भी जब भी खाना बनाते हैं तो हर घर में 10रोटी अधिक बनती है ताकि जब भारतीय सेनाएँ उन्हें पाकिस्तान से मुक्त कराने आएँगी,तो वे भूखी न जाएँ। वहाँ के लोग आज भी इस इन्तजार में हैं कि एक दिन भारतीय सेना उन्हें पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने आएगी।
रोजगार नहीं पा सकता।
इस दौरान भारत सरकार के पूरे घटनाक्रम पर शान्त रही और वह हुंजा,स्कार्दू का बचाने में नाकाम रही। इस तरह अँग्रेजों ने गिलगिट -बाल्टिस्तान सहित पूरे जम्मू-कश्मीर का महाराजा हरिसिंह के सौंपे जाने के बाद भी गिलगिट स्काउट्स की गद्दारी की वजह से उस हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया, जबकि 1अगस्त,सन् 1947 को गिलगिट एजेन्सी के सभी इलाके महाराजा हरिसिंह को सौंप दिये थे।
पाकिस्तान सरकार ने तथाकथित ‘आजाद कश्मीर’ में बाहर से आए लोगों के बसने पर प्रतिबन्ध है,पर गिलगिट -बाल्टिस्तान में ऐसी कोई पाबन्दी नहीं है। इस इलाके में पाक से मुसलमानों की आबादी में तब्दील करने और इस्लामिक कट्टरता को बढ़ावा देना चाहता है। के इरादे से
गिलगिट -बाल्टिस्तान में कई प्राचीन भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। यहाँ सांस्कृतिक संरचना पर इस्लामी प्रभाव होने के बाद भी विविधता है। यहाँ कई इस्लामिक सम्प्रदाय के लोग रहते हैं यथा- नूरबक्शी सम्प्रदाय, घुमक्कड़ शिया सम्प्रदाय और सुन्नी है। गिलगिट-बाल्टिस्तान के सिंकरी प्रदेश के निवासी गाय को पवित्र मानते हैं, पर इस्लामियों के डर के मारे अब वे अपनी प्राचीन मान्यताओं को तजने के लिए बाघ्य हैं। गिलगिट के निकट स्थित चित्राल घाटी के आसपास कलश समुदाय के लोग रहते हैं। इनकी बेटियों को विवश होकर इस्लाम कबूल करना पड़ता है, क्योंकि गर्मियों में कामान्ध भेड़ियों अपनी हवस मिटाने इनके पास आते हैं। पाकिस्तानी शासन में ऐसी अनेक विषमताओं से जूझते हुए गिलगिट -बाल्टिस्तान और आसपास के लोग कश्मीर नामक स्वर्ग में नर्क भोगने को मजबूर हैं। सन् 2005 में आए भूकम्प के पश्चात् स्थिति और खराब हुई है। कैप्टन सिकन्दर रिजवी अपने भाषणों में में बताते हैं कि वहाँ बच्चों के लिए चीनी जैसी चीज भी विलासिता की वस्तु है। स्कर्दू के आसपास के गाँवों में लोग आज भी जब भी खाना बनाते हैं तो हर घर में 10रोटी अधिक बनती है ताकि जब भारतीय सेनाएँ उन्हें पाकिस्तान से मुक्त कराने आएँगी,तो वे भूखी न जाएँ। वहाँ के लोग आज भी इस इन्तजार में हैं कि एक दिन भारतीय सेना उन्हें पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने आएगी।
स्कर्दू के आसपास के गाँवों में लोग आज भी जब भी खाना बनाते हैं तो हर घर में 10रोटी ज्यादा बनती है ताकि जब भारतीय सेनाएँ उन्हें पाकिस्तान से छुटकार दिलाने आएगी ,तो वह भूखी न जाए। वहाँ के लोगों आज भी इस वक्त का इन्तजार में हैं कि जब भारतीय सेना उन्हें पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने आएगी।

सम्मिलित होने का
से सन्धि कर

ला
मध्यका के रूप में विकसित हुए
सन, सन् 1963 में शक्सगाम घाटी को पाकिस्तान ने नाजायज तरीके से चीन को दे दिया,जो 20हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र था।
रिक्सागाम,अधियाल’घाटी हैं ोने के साथ-साथ इसमें
—–क्यों लड़े। अब चाय नहीं खून ही पीयेंगे। जब तक मलिक हमारी माँगे नहीं मंजूर करते हम काम नहीं करेंगे।
’’;—-देख 0000 बॉस कह रहे हैं,मना मत कर। अधिकारी को नाराज करके आसानी से नौकरी कर पाना आसान नहीं है।
हांगकांग की आजादी हड़पने को बेताव है चीन अजदहा
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
हाल में हांगकांग में चीन के प्रस्तावित सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के विरोध में विभिन्न प्रकार के नारे लिखे बैनर और पोस्टर हाथ में लिए बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़क पर उतरे और पुलिस के आँसू गैस के गोले चलाने तथा काली मिर्च के पाउडर फैंके जाने के बाद भी जिस बहादुरी से डटे रहे, निश्चिय ही उसे देखकर चीन की नींद हराम हो गई होगी, जो कोरोना विषाणु महामारी फैलाने के बाद आजकल वह भारत और अपने पड़ोसी मुल्कों को न सिर्फ आँखें दिखा रहा है, बल्कि उनकी थल और जल सीमाओं में अतिक्रमण कर अपरोक्ष-परोक्ष रूप से उन्हें के लिए युद्ध को उकसा भी रहा है। ऐसे में हांगकांग के लोग बधाई के पात्र हैं, जो चीनी डैªगन के गुस्से में लाल-लाल आँखें दिखाने और फँॅॅूफकारने से डरने के बजाय पहले की तरह उसकी डट कर बराबर मुखालफत करते आ रहे हैं। सच बाता यह है कि महज 1,054वर्ग किलोमीटर में फैले हांगकांग के सिर्फ 75लाख से कुछ ज्यादा लोगों ने आज दुनिया का दादा बनने का ख्वाब देख रहे चीन की नाक में दम कर रखा है।
वैसे हांगकांग के लोगों का यह उग्र विरोध अकारण नहीं है, ब्रिटेन से हांगकांग के हस्तान्तरण के समय उन्हें जिन स्वतंत्र गतिविधियों के अधिकारों से सम्बन्धित शर्तों का पालन करने का वादा किया है, वह उसके बाद से एक-एक कर उन्हें मानने से मुकरता आ रहा है। उन्हीं शर्ताें के कारण वर्तमान में हांगकांग के लोगों को जैसे विशेषाधिकार मिले हुए हैं, वैसे अधिकार चीन की मुख्य भूमि के निवासियों को प्राप्त नहीं है। अब चीन हांगकांग के लोगोें को मिले सभी विशेषाधिकारों को हड़पने पर आमादा बना हुआ है। हांगकांग 1जुलाई, सन् 1997 को ब्रिटेन से चीन को हांगकांग का हस्तान्तरण करते समय उसने हांगकांग के लिए एक लघु संविधान बनाया था, जिसे ‘बेसिक लॉ’(बुनियादी कानून)कहा जाता है। इस कानून को हांगकांग की विशेष स्थिति को देखते हुए बनाया गया है। हांगकांग के उत्तर में चीन का गुआंग्डोंग और पूर्व, पश्चिम, दक्षिण में दक्षिण चीन सागर है,जो न केवल एक प्रसिद्ध बन्दरगाह पर स्थित है, वरन् एक वैश्विक नगर और विश्व की आर्थिक एवं वित्तीय गतिविधियों का केन्द्र भी है। बेसिक लॉ में हांगकांग के लोगों स्वायत्ता और स्वतंत्रता प्रदान की गई तथा चीन को केवल रक्षा और विदेशी मामले देखने का अधिकार प्रदान किया गया है। बेसिक लॉ के तहत यहाँ निवासियों को जनसभा करने, अपने विचार व्यक्त करने और रखने का अधिकार है। इसमें हांगकांग के लिए एक स्वतंत्र न्यायालय होने का प्रावधान भी है। इसे ही ‘एक देश ,दो व्यवस्थाएँ’नाम दिया गया,जो आगामी 50वर्षों यानी 2047 लागू रहनी है। चीन अब इस वादे को तोड़ रहा है।
वैसे चीन अब जिस ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’को लागू करने जा रहा है,उसे सन् 2003 में भी लागू करने की कोशिश की थी, तब भी उसे लोगों के भारी विरोध के बाद अपने कदम वापस ले लिए थे। इसके बाद जब जुलाई, सन् 2014 चीन ने विवादित ‘प्रत्यार्पण कानून’ हांगकांग पर लागू करने का प्रयास किया, तब भी उसे यहाँ के लोगों का जबरदस्त उग्र विरोध का सामना करना पड़ा था। उस समय 79 दिनों तक चले जनान्दोलन को ‘अम्ब्रेला मूवमेण्ट’ नाम दिया गया । उसमें प्रदर्शनकारियों ने हांगकांग के हवाई अड्डे पर कब्जा कर लिया,ताकि विदेशी भी उनके आन्दोलन के कारणों को जान सकें। तब भी प्रदर्शनकारियों के दमन में हांगकांग की पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इस कारण उसमें हिंसा भी हुई और प्रदर्शनकारियों को जेल में डाल दिया गया। इस आन्दोलन के नेता जोशुआ वांग को देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। उनके प्रयासों से ही आज दुनिया को चीन के अत्याचारों का पता चला। इसके बाद ही चीन के जुल्मों के खिलाफ अमेरिका ने ‘ हांगकांग ह्यमून राइट्स एण्ड डेमोक्रेसी एक्ट’पारित किया है।
हांगकांगवासियों के लिए चीन के प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून फाँसी का फँदा जैसा है,जिससे उनका गला कभी भी घोंट कर जान ली जा सकती है। इस कानून के तहत चीन के विरुद्ध कुछ भी बोलना अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। इसके लिए कठोर दण्ड का प्रावधान है। इतना ही नहीं,इससे हांगकांग में विदेशी गतिविधियाँ सीमित हो जाने का भय है,जो पहले से अब बहुत कम हो गई हैं। परिणामतः यहाँ की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। इसलिए प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून से बेहद नाराज हांगकांग के लोग बड़ी संख्या में गत 24मई को कॉजवे -बे पर इकट्ठे हुए। उसके बाद उन्होंने जमकर चीन सरकार के खिलाफ नारे बाजी की।हालाँकि पहले उनका इरादा विवादास्पद नेशनल एन्थम(राष्ट्रगान) के विरुद्ध प्रदर्शन करने का था। इससे पहले इसी 18मई को जब चीन के राष्ट्रगान को लेकर विधान परिषद् में प्रस्तुत किया गया, तब लोकतंत्र समर्थक सांसदों ने इस विधेयक का जमकर बवाल किया।उस दौरान लोकतंत्र समर्थक और चीन समर्थकों के बीच जमकर मारपीट हुई। इसकी चर्चा अब पूरे विश्व में हो रही है। चीन के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द कर रहे हांगकांग के कुल बाशिन्दों में से 95 प्रतिशत ‘हान’जाति के है,जिसके चीनी हैं,पर हांगकांग में रहते हुए स्वायत्ता और स्वतंत्रता का आनन्द लेने के कारण उन्हें अब चीन केसाम्यवादी शासन की गुलामों की तरह रहना पसन्द नहीं है।
वैसे अब चीन की विदेश मंत्री वांग यी प्रदर्शनकारियों को विश्वास दिलाते हुए कहा,‘‘बेसिक लॉ’के तहत उन्हें स्वतंत्रता और वैध अधिकार दिये जाएँगे। हांगकांग के अधिकांश लोगों के न उनके अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और न शहरी कारोबारी माहौल पर।यह कानून एक देश दो व्यवस्थाओं का बरकरार रखेगा। लेकिन हांगकांग के लोगों के कहे पर भरोसा नहीं है।
चीन के मामलों के विशेषज्ञ लैम ने चिन्ता जताते हुए कहा है कि इस कानूनके तहत लोगों को चीन की आलोचना के आधार पर सजा दी जा सकती है। चीन की मुख्य भू-भाग में ऐसा ही होता है। वस्तृतः चीन हांगकांग में धीरे-धीरे से अपने सारे कानून लागू कर उसे बाकी देश जैसा ही बनाना चाहता है। उसकी इस इरादे से हांगकांग के लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं। अमेरिका भी चीन की इन चालों को जानता है, तभी तो उसके विदेश मंत्री माइक पोम्पियों ने चीन को हांगकांग स्वायत्ता और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है, ‘‘चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा और आधारभूत कानून के तहत हांगकांग स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता पर कोई भी निर्णय निश्चित तौर पर ‘एक देश, दो प्रणाली‘ और क्षेत्र की स्थिति के हमारे आकलन को प्रभावित करेगा।‘‘ उन्होंने चीन सरकार पर यह आरोप भी लगाया है कि चीन सरकार ने अमेरिकी पत्रकारों के काम में हस्तक्षेप करने की धमकी दी है। वैसे भी चीन का यह रवैया कोई नया नहीं है।जब से इस देश साम्यवादी सरकार बनी है,तभी से वह चीन आने वाले की न सिर्फ निगरानी करती है,बल्कि अपने मुल्क के हितों के खिलाफ कुछ भी करनेे भी नहीं देती। ऐसा करने वाले चाहे पत्रकार हों या कोई और,उससे इससे फर्क नहीं पड़ता।
अब जहाँ तक बेसिक लॉ का प्रश्न है तो इसके तहत चीन में लागू कानून जब तक तीसरी अनुसूची में दर्ज न हो जाएँ, हांगकांग में लागू नहीं किया जा सकते हैं। वहाँ पहले से कुछ कानून दर्ज हैं, लेकिन उनमें ज्यादातर प्रावधान गैर विवादास्पद और विदेश नीति से विषयों से सम्बन्धित हैं।
यद्यपि चीन के पास और भी रास्ते हैं। चीन के मुख्य भू-भाग में लागू को हांगकांग में डिक्री यानी कानून का दर्जा रखने वाले आधिकारिक आदेश के जरिए लागू किये जा सकते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि जिसे लागू होने की सूरत में हांगकांग की संसद के अधिकार को नजरअन्दाज कर दिया जाएगा। इधर हांगकांग की मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम ने कहा कि पहले ही कह रखा है कि वह इस कानून को जल्द से जल्द पारित कराने के लिए चीन सरकार का सहयोग करेंगी।उधर चीन के आलोचकों का कहना है कि ‘एक देश-दो व्यवस्थाएँ’ की अवधारणा का सरासर उल्लंघन है,जो हांगकांग के लिए बहुत अधिक महत्त्व रखता है।
चीन के मामलों के विशेषज्ञ प्रो.चान का विचार है कि प्रस्तावित कानून हांगकांग के ‘बुनियादी कानून’(बेसिक लॉ) के अनुच्छेद 23 का भी उल्लंघन करता है। ऐसा लगता है कि चीन बेसिक लॉ को अपनी मर्जी से परिभाषित कर सकता है और ऐसी घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। उनका यह भी कहना है कि चीन जिस कानून को हांगकांग पर लागू करना चाहता है उसका मसौदे से ये संकेत मिलते हैं कि हांगकांग की सरकार ‘बेसिक लॉ’ के अनुच्छेद 23 के तहत भी अलग से एक राष्ट्रीय कानून लागे की जरूरत है। अगर किसी राष्ट्रीय कानून में किसी बात पर रोक लगायी जाती है,तो उसे पहले तीसरी अनुसूची में जोड़ा जाना चाहिए। ये रास्ता हांगकांग की संसद से होकर जाता है,क्योंकि दोनों की न्याय व्यवस्था अलग-अलग है।प्रो.चान का आगे कहना है कि जो ‘आपराधिक न्याय’(क्रिमिनल जास्टिस) लागू है। वह अलग-अलग मूल्यों पर आधारित है। किसी बात को अपराध करार देते है इसका निर्णय हांगकांग को करना चाहिए,न कि चीन की केन्द्रीय सरकार को।
प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर हांगकांग के लोगों की आशंका और भय अकारण नहीं है। हांगकांग की न्याय व्यवस्था चीन जैसी हो जाएगी। हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग के लॉ के प्रोफेसर जोहन ए चान कहते हैं कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े लगभग सभी मामले में बन्द दरवाजे के पीछे सुनवायी होती है।ये कभी नहीं बताया जाता है कि क्या इल्जाम था और क्या सुबूत है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की संकल्पना भी इतनी अस्पष्ट है कि आप किसी भी गतिविधि को इसके दायर ेमंे ला सकते हैं। ऐसे में बहुत से लोगों कि बहुत से लोग को यह लगता है कि जिस किस्म की आजादी आज की तारीख में हासिल है,अगर उसमें कटौती की जाती है तो एक आर्थिक एवं व्यापारिक केन्द्र के रूप में हांगकांग का आकर्षण खत्म हो जाएगा। यह देखते हुए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आज हांगकांग में न केवल राजनीतिक भविष्य ,बल्कि आर्थिक भविष्य भी दांव पर लगा है। । ऐसे में हांगकांग के लोगों का राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर उग्र विरोध जरूरी है,उसका विश्व समुदाय को समर्थन और सहयोग करना चाहिए। सम्पर्क-डॉ.बचनसिंह सिकरवार 63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

हांगकांग में बहुत से लोगों का डर है कि बहुत से लोगों का यह लगता है कि हांगकांग में

चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा और आधारभूत कानून के तहत हांगकांग स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता पर कोई भी निर्णय निश्चि तौर पर ‘एक देश, दो प्रणाली‘ और क्षेत्र की स्थिति के हमारे आकलन को प्रभावित करतेगा।
इधर चीन पर यह आरोप भी लगाया कि वह अमेरिका के पत्रकारों के काम में

अगर चीन ऐसा करता है तो यह निश्चित तौर पर अमेरिका के एक देश दो प्रणाली के आकलन को प्रभावित करेगा। वैसे अमेरिकी विदेश मंत्री की चेतावनी चीन का उस वादे की याद दिलाने वाली है,जिसके तहत ब्रिटेन ने हांगकांग चीन को सौंपा था।

जंग की ही नहीं,पूरी दुनिया को ।

कृषि वानिकी में बकरी पालन
डॉ.अनुज कुमार सिंह सिकरवार
अपने देश के पशु पालन व्यवसाय में अन्य पालतू पशुओं की अपेक्षा बकरी का महत्त्व सबसे अधिक है, जो इसकी शारीरिक, खानपान तथा विविध जलवायुओं में आसानी से समजंस्य स्थापित करने आदि विशेषताओं से सम्बन्धित हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण इसके पालन में लिए न बहुत अधिक बड़े आवास की आवश्यकता होती है और न ही ये आहार के लिए कृषि उत्पादों पर ही निर्भर है। यह अपना पेट/भोजन पहाड़ियों, मरुस्थलों, बीहड़ों, नदी-नालों के आसपास, बंजर, परती जमीनों पर प्राकृतिक रूप से उगी घास, पेड़-पौधों, कंटीली-गैर कंटीली झाड़ियों और दूसरे पेड़ों की पत्तियों से कर लेती हैं, क्योंकि इन्हें न ऊँची-ऊँची पहाडियों पर चढ़कर वहाँ उगी झाड़ियों की पत्तियाँ खाने में कठिनाई होती है और न ही वहाँ से उतर कर नीची घटियों में घास चरने में। इन्हें बहुत देखभाल की भी आवश्यकता नहीं हेाती है। इसलिए लघु, सीमान्त किसानों और भूमिहीन ग्रामीणो द्वारा कृषि वानिकी के माध्यम से बकरियों के चारे का प्रबन्ध कर आसानी से पाला जा सकता है। कृषि वानकी से बकरियों की पालन-पोषण की लागत भी बहुत कम हो जाती है। जहाँ तक बकरियों से प्राप्त लाभ का प्रश्न है तो इनसे ये दूध, मांस, खाल होती है। साथ ही इनके मल/मैैंगनी तथा मूत्र से कार्बानिक खाद भी बनायी जाती है, जो मृदा की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होती है।
कृषि वानकी के अन्तर्गत बंजर, परती भूमि के साथ-साथ कम उपजाऊ, बागानों, खेतों की मेड़ आदि का उपयोग कर बकरियों के लिए अच्छी गुणवत्ता युक्त आहार/चारा उगाया/ प्राप्त किया जा सकता है।
कृषि वानकी-
आमतौर पर खेतों में विभिन्न प्रकार के खाद्यान्न और पशुओं का चारा उगाया जाता है, इसे कृषि कहा जाता है। ऐसे ही जब खेतों में कई तरह के फलों के वृक्षों लगाये जाते है, तो उन्हें ‘बाग’ कहा जाता है। इसी तरह खाली भूमि या वन भूमि पर प्राकृतिक/नैसार्गिक रूप से पेड़-पौधों, वृक्षों के साथ-साथ कई तरह की घासें उग आती हैं और वहाँ पशु अपना पेट भरने के लिए चरने आ जाते हैं, तब वह भूमि ‘चारागाह’ कहलाती है। लेकिन कृषि वानकी के अन्तर्गत कृषि, बाग, चारागाह, वनभूमि पर प्रयत्न पूर्वक बकरियों या अन्य पशुओं के भोजन/आहार के लिए पेड़-पौधे, वृक्ष, झाड़ियाँ, विभिन्न प्रकार की घासें उगायी जाती है। इसे ‘कृषि वानकी’ कहा जाता है।
बकरी पालन के लिए कृषि वानकी में उनके चारे के लिए उपयुक्त पत्तियों और फली वाले पेड़-पौध, वृक्ष, झाड़ियाँ लगायीं और कई तरह की घासें उगायी जाती हैं, जो उनका पेट भरने के साथ-साथ पौष्टिकता से भी भरपूर चारा/आहार उपलब्ध कराती हों। इनकी पत्तियाँ, फलियाँ और घासों को सुखा कर लिया जाता है,ताकि सदी और गर्मी के मौसम में जब चारे की कमी है और ताजा चारा उपलब्ध न होने पर, उसे खिलाया जा सके।
1. खेतों की मेड़ों पर वृक्ष लगान-
2. कृषि वानकी की यह विधि उपजाऊ भूमि पर अपनाते हैं, क्यों कि खेतों में अधिक मूल्यवान खाद्यान्न, दलहन, तिलहन की खेती करना अधिक लाभदायक होता है। ऐसी उपजाऊ भूमि पर किसान अपने पशुओं के लिए चारे की फसल उगाना भी नहीं चाहते। ऐसा करना उसके लिए आर्थिक रूप से नुकसानदेह होगा। सामान्यतः किसान अपने पशुओं के चारे की व्यवस्था खाद्यान्न फसलों के भूसे या करब से कर लेता है। इसलिए किसान अपने खेतों की मेड़ पर ऐसे वृक्ष लगा सकता,जिससे उसकी फसलों को भी अधिक क्षति न पहुँचे और उसकी बकरियों को चारे की कमी वाले मौसम में इन वृक्षों की पत्तियाँ चारे के रूप से आसानी से उपलब्ध हो जाएँ। जैसे -सहजन आदि
2.बागवानी के साथ चारा उगाना-
जिन भूमियों पर विभिन्न प्रकार के फलों के वृक्षों के बाग लगे होते है,उनमें किसी विशेष मौसम ही फल आते है, शेष समय वहाँ कुछ नहीं उगता। ऐसी दशा में जब फलों के वृक्षों के आसपास खाली पड़ी भूमि में चारे की फसल उगायी जाती है, तब उसे ‘बागवानी के साथ चारा उत्पादन’ कहा जाता है।
3.कृषि -बागवानी-
इसमें फल दार वृक्षों के साथ चारे या फिर खाद्यान्न की फसलें उगायी जाती हैं। वृक्षों की कटाई- छटाई से प्राप्त हरी पत्तियों को चारे के रूप उपयोग लाया जाता है। वृक्षों के मध्य में खाद्यान और चारे की फसलें उगाने पर भूसा और चारा मिलता है।
4.बागवानी-
कृषि चारागाह -इसमें बागान में कृषि फसल और चारागाह विकसित किया जाता है। इसमें बागान में उगे चारे को काट कर या सीधे बकरियों को चरा कर उपयोग में लाया जाता है। बागान और चारागाह के बीच दलहनों को पक्तियों में बोया जाता है और उनसे फलियाँ तोड़ ली जाती हैं। उसके बाद बगैर फलियों के दलहनों के पौधों का उपयोग बकरियों के चारे में किया जाता है
5.वन चारागाह-
जब भूमि समतल और सिंचित न हो, उस स्थिति में परम्परागत चारे की फसलें उगाना सम्भव नहीं होता। इसलिए वहाँ वृक्षों के मध्य खाली जगह पर बहुवर्षीय घासें उगा कर चारा प्राप्त किया जा सकता है। वन चारागाहों में जहाँ उगायी जाने वाली बहुवर्षीय घासों में अंजन, पाराघास, सेवन, रोड्स घास, दीनानाथ, ब्लू पैनिक ,गिनी घास आदि मुख्य हैं, इनमें नीम,जामुन, बरगद, पीपल,पापड़ी, खेजरी, बेर, झरबेरी,गूलर, देसी बबूल, सुबबूल, ब्रजबबूल, इजरायली बबूल, लिसोड़ा,शहतूत, शिरिष, इमली, सहजन, बकायन,
हींस, हिंगोटा, खड़ियार(पीलू) आदि।
वन चारागाहों के लिए वहाँ की जलवायु तथा मृदा की किस्म के अनुरूप घासों को चयन कर उगाया जाता है। इसके लिए वृक्षों के बीच उगे अवांछित पेड़-पौधों, झाड़ियों, घास को हटाया जाता है, ताकि चयनित घास को उगने में कोई बाधा न आए। वन चारागाह तैयार करने के लिए ग्रीष्म ऋतु में हल या किसी दूसरे उपकरण से जुताई या खुदाई करके छोड़ देते है, जिससे अवांछित पेड़-पौधे,घासें, हानिकारक कीट इत्यादि तेज धूप में नष्ट हो जाएँ। मानसून शुरू होने पर 4से 6 किलोग्राम घास का बीज मिट्टी में मिलाकर वन भूमि पर बिखेर दिये जाते हैं। फिर बुवाई के बाद उक्त वनभूमि को बाड़ लगाकर सुरक्षित किया जाता है, ताकि पशुओं के समय से पहले चरने से बचाया जा सके।
चारे वाले वृक्षों को चयन-कृषि वानिकी पद्धति के लिए वृक्षों का चयन करते समय उनमें निम्न विशेषताओं देखी जानी चाहिए-1.जो कम समय में तेजी बढ़ते/वृद्धि करते हों। 2.ऐसे वृक्षों पत्तियाँ अधिक लगती हों। 3.इनसे प्राप्त चारा पौष्टिक और पाचक हो। 4. इनकी विशेष देखरेख की जरूरत न हो। 5. ऐसे पेड़ों पर कटाई,छटाई और चराई से विशेष क्षति न पहुँचती हो। 6 इनमें फिर से बढ़ने/पुनर्वृद्धि की विशेष क्षमता हो।
वृक्षों से पत्तियों की कटाई-
वृक्षों से पत्तियों को ऐसे कटा जाना चाहिए कि उससे बहुत कम क्षति पहुँचे। इसके लिए न एक साथ सारे सभी पत्तियों को काटे और न अधिक मोटी शाखाओं को ही। एक बार में एक-चौथाई पत्तियों को छोड़ना उचित होगा,ताकि वृक्ष फिर से वृद्धि कर सके।

वन चारागाहों को बुवाई की पहली साल चराई के लिए नहीं खोलना चाहिए। ऐसा करने से वहाँ पर उगी घास की जड़े अधिक गहरी न होने के कारण चराई के समय उखड़ सकती है।उस दशाा में चारागाह बर्बाद हो सकता है। इसलिए दूसरे वर्ष उसे चारायी के खोलना उचित होगा। पहली साल वहाँ उगी घास को काट कर बकरियों को खिलाया जा सकता है। वन चारागाहों की घासों को अधिक पौष्टिक बनाने के लिए उनके साथ दलहनों को भी मिलाकर भी उगाया जा सकता है।
प्रमुख चारे के वृक्षों से चारे की प्राप्ति का समय
अलग -अलग प्रजातियों के वृक्षों से चारा प्राप्ति होने का समय भी अलग-अलग होता है। यथा- अरडू से जनवरी-फरवरी महीने, शिरिष, देसी बबूल से फली-चारा अप्रैल-मई माह में मिलता है। सिंचित क्षेत्र में सुबबूल से पूरे साल हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। सुबबूल के साथ चारे वाली फसलें उगाने से कुल चारा उत्पादन में केवल चारा फसल उगाने की अपेक्षा 11प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी देखी गई है। मृदा में कार्बानिक पदार्थ और उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा में धनात्मक बढ़ोत्तरी भी देखी गई है।

इस्तेमाल
लेकिन यदि खेतों में खाद्यान्न फसलों और चारागाहों में वृक्षों और चारे के लिए उपयुक्त घासों
इस कारण इसे कश्मीर से लेकर दक्षिण भारत के सभी राज्यों,गुजरात से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों में आसानी से पाला जा सकता है। ऐसी स्थिति यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि बकरी सभी पालूत पशुओं में भारत के विविधता पूर्ण जलवायु के होते हुए भी सबसे अधिक अनूकुल है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता हैं- भारत के कुल क्षेत्रफल में से कृषि योग्य भूमि का क्षेत्र एक तिहाई के लगभग और उसमें से एक तिहाई के करीब सिंचित भूमि है। देश में बाकी भूमि में पत्थरीली और गैरपत्थरीली पहाड़ियाँ, ऊसर, बंजर, परतीहै। वर्तमान में कोई 22प्रतिशत भूमि कई तरह के वनों में है। अब जो भूमि कृषि के योग्य है। उसी से 60 प्रतिशत से अधिक लोग अपनी जीविकोपार्जन करते हैं।बढ़ती आबादी घटती भूमि के कारण देश में अधिकांश किसानी लघु और सीमान्त किसान है और बड़ी तादाद में भूमिहीन हैं, जो अपना पेट पालन कृषि कार्यों में श्रमिक बनकर और पशुपालन के माध्यम से करते हैं। इन लघु,सीमान्त किसानों के साथ-साथ निर्धन और भूमिहीन ग्रामीणों के पशु पालन की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त पशु है।
नहीं, देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या को भूमि वनांे से आच्छदित

बचपन सारे क उसे ख्याल कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में लॉकडाउन की घोषणा कर लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा दी। ऐसे में घरों पर कम करने वाली महिलाओं का भी दूसरे के काम पर जाना बन्द हो गया। चन्दा बचपन सारे क उसे ख्याल कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में लॉकडाउन की घोषणा कर लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा दी। ऐसे में घरों पर कम करने वाली महिलाओं का भी दूसरे के काम पर जाना बन्द हो गया। चन्दा
कहानी-
सबक
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
जब से सुरभि ने टी.वी. पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश में ‘लॉकडाउन’ करने की घोषणा का समाचार सुना, तभी से अचानक बगैर बुलाए मेहमान की तरह आ गई, इस भयावह विकट समस्या के बारे में सोच-सोच कर वह विचलित और बेचैन हो गई। उसे लगातार यह डर सता रहा था कि अब उसकी पहले जैसी दिनचर्या कैसे चलेगी ? चन्दा नहीं आएगी, तो घर के काम कैसे होंगे ? उसकी इस मनोदशा को पास में बैठे उसके पति हेमन्त ने तत्काल भांप लिया। फिर वह गौर से सुरभि के चेहरे पर आ रहे भावों को पढ़ने लगे। जब उन्होंने उसे बहुत अधिक विचलित और व्यथित होते देखा, तब हेमन्त से रहा न गया। उसने सुरभि से पूछा,‘‘ क्या बात है,जो इतनी आकुल-व्याकुल-सी दिखायी दे रही हो?’’
‘‘अब हम लोग ऐसे कैसे रहेंगे?’’ सुरभि ने व्यथित स्वर में कहा
हेमन्त ने सुरभि का हाथ अपने हाथ में लेकर कह कर ढांढस बँधाते हुए कहा ,‘‘डोण्ट वरी, हम जैसे रह रहे थे, वैसे ही रहेंगे।’’
फिर उसने देर तक सुरभि के सिर पर धीरे -धीरे हाथ फेरते हुए उसकी कई बार पीठ थपथायी।
फिर भी सुरभि की उद्विग्नता में कोई विशेष कमी नहीं आयी।
हेमन्त ने फिर से उसे समझाते हुए कहा, ‘‘सुरभि ! लॉकडाउन की घोषणा सरकार ने मजबूरी में की है, तुम्हें तो मालूम है कि चीन के वुहान शहर पैदा हुए और फैले कोरोना विषाणु से उत्पन्न इस महामारी ने देखते-देखते अब पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है।’’
‘‘मुझे मालूम है, फिर भी सरकार ने ऐसा क्यों किया? सरकार को सभी लोगों का ख्याल रहना चाहिए था।’’ सुरभि ने गुस्से में हेमन्त का हाथ झटकाते हुए कहा।
हेमन्त ने फिर उसे शान्त करने की कोशिश करते हुए,‘‘ देखो, सुरभि! इस महामारी से अपने लोगों के जीवन को बचाने के लिए वैसे तो भारत ने बहुत पहले से ही सर्तकता-सावधानी बरतनी शुरु कर दी थी। लेकिन दूसरे देशो से कोरोना संक्रमित लोगों के लौटने से यह महामारी किस तरह से देश के विभिन्न राज्यों में अपने पाँव पसारने लगी है, यह भी तुम्हें पता है ?’’
सुरभि ने सहमति में अपना सिर हिलाया।
लेकिन अगले पल फिर तमकते हुए कहा,‘‘पर हेमन्त ! सरकार को हम जैसे लोगों को ख्याल तो हर हाल में रखना चाहिए था, जिनके बच्चे उनके पास में नहीं रहते हैं,जो अपने काम भी खुद नहीं कर सकते ?’’
‘‘कैसा ख्याल ?’’ हेमन्त ने चौंकते हुए कहा।
इस पर सुरभि ने अपनी नाराजगी जताते हुए कहा‘‘यही है कि हम अब कैसे रहेंगे ?’ तब हेमन्त ने गुस्से में तेज आवाज में सुरभि से प्रति प्रश्न करते हुए कहा, ‘‘ तुम्हारे जैसे लोगों के ख्याल के लिए, क्या सरकार अपने लोगों को मरने के लिए यों ही छोड़ देती ?’’
सुरभि हेमन्त के उग्र रूप और ऊँचे स्वर का सुनकर घबरा गई। उसकी बोलती बन्द हो गई।
लेकिन हेमन्त ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा,‘‘ सरकार को जो सेवाएँ जरूरी लगीं, उनमें में छूट दी गई है। यही कारण है कि इस दौरान केवल चिकित्सको, चिकित्सा, पुलिस, सफाई कर्मियों आदि को छोड़कर सभी लोगों के अपने घरों से बाहर निकलने पर रोक लगा दी है। प्रधानमंत्री मोदी के इस फैसले से हमें खुश होना चाहिए, जिन्हें हम सभी के प्राणों का बचाने की इतनी चिन्ता है। यह कह कर हेमन्त ने फिर सुरभि को छेड़ते हुए माहौल बदलने की कोशिश की।
इतना सुनने के बाद भी सुरभि के चेहरे पर छाई निराशा और हताशा कम होने का नाम नहीं ले रही थी। लेकिन हेमन्त ने उसे दिलासा देने की कोशिश जारी रखते हुए फिर कहा,‘‘फिर जीवन में आयी हर मुसीबत हमें उससे जूझने और पार पाने का तरीका भी सिखाती है। वह हमारे धैर्य, साहस और उससे सामना करने की क्षमता भी परखती है।’’
लेकिन इससे सुरभि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता दिखायी नहीं दे रहा था। वह हेमन्त की बातों पर गौर करने के बजाय खिड़की से बाहर खाली सड़क को निहार रही थी, जहाँ कल तक लोगों और वाहनों के आवागमन के कारण होने वाले शोर से परेशान होकर उसे न चाहते हुए अक्सर खिड़की बन्द करनी पड़ती थी।
जब घर में दो लोग हों,उनमें से भी एक उदासी ओढ़कर बैठ जाए,तो दूसरा की चिन्ता बढ़ जाना स्वाभाविक था। इसलिए हेमन्त बराबर सुरभि को उसकी हिम्मत बढ़ाने और समझाने में जुटा रहा।
उसने फिर कहा,‘‘तुम देखना ,सुरभि! जिस तरह से जीवन में अब तक आयीं विभिन्न कठिनाइयों से जूझकर हम लोग यहाँ तक पहुँेचे हैं, उसी तरह से इस मुसीबत पर भी पार पा करके दिखायेंगे। अब बस तुम हौसला बनाए रखो। मेरा विश्वास करो, जो होगा, वह अच्छा ही होगा।’’
लेकिन हेमन्त के इतने सारी बातें कहने के बाद भी सुरभि पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हुई।
इस बीच उसके मन में रह-रह कर तरह-तरह के विचार आते-जाते रहे। फिर न जाने कब उसकी आँख लगी गई, यह बात उसे ही नहीं, हेमन्त को भी पता नहीं चली, जो उसके पास बिस्तर पर लेटे रूसी लेखक डी.जी.जातूला एस.ए.मामेदेवा की पुस्तक ‘वायरस-फ्रेण्ड और एनमि‘( विषाणु-मित्र या शत्रु ) का हिन्दी अनुवाद पढ़ रहे थे, ताकि विषाणुओं के बारे में विस्तार से जान सकें।
वैसे भी जब से कोरोना विषाणु से महामारी फैली है, तब से ही हेमन्त विषाणुओं के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ गई थी। हालाँकि हेमन्त ने वनस्पति शास्त्र में एम.एससी.की थी, पर तब उसकी इस विनाशकारी शक्ति के बारे में इतनी गहरी से जानकारी नहीं थी। उसके मस्तिष्क मंे यह विचार बार-बार कौंध रहा था कि जो देश आज अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों के माध्यम से प्राकृतिक पर विजय पाने का अहंकार कर रहे थे, आज उसी प्रकृति ने नंगी आँखें, तो क्या सामान्य सूक्ष्मदर्शी से भी दिखायी न पड़ने वाले एक विषाणु ने चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रान्स, इटली, स्पेन आदि विकसित देशों को अपने आगे घुटने टेकने को मजबूर कर दिया है। अपने दुश्मन से लड़ने के लिए इन्होंने बड़े-बड़े परमाणु बम, अन्तरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र और न जाने कौन-कौन से हथियार बनाए हुए हैं, पर कोरोना के इलाज का न इनके पास कोई टीका और न दवा ही। फिर भी ये कैसे स्वयं को विश्व का भाग्य विधाता और सर्वशक्तिमान समझ बैठे है? धिक्कार इन्हें।
हेमन्त ने अपने मस्तिष्क में उमड़-घुमड़ रहे इन विचारों से छुटकारा पाने को आँखें बन्द कर ली,पर उनका सिलसिला पहले जैसा ही बना रहा। वह सोचा रहा था कि यह किसी विडम्बना है कि इन विकसित देशों के धनी लोग जो अपनी धन-सम्पत्ति से दुनिया की हर चीज खरीदने की हैसियत रखते हैं, पर उस दौलत से खुद और अपनों की जिन्दगियाँ भी नहीं बचा पा रहे हैं। अपने देश समेत दुनिया के दूसरे देशों के धनी लोग उनके यहाँ अपनी लाइलाज बीमारियों का इलाज कराने जाते हैं, वे मुल्क आज कोरोना से बीमार हुए लोगों का इलाज नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में यह कहें, तो कुछ गलत न होगा कि कोरोना महामारी के जरिए प्रकृति ने आदमी को उसकी हैसियत समझा दी है, जो खुद को इस दुनिया का खुदा समझने की भूल कर रहा था।

सुबह हुई तो सुरभि ने हर रोज की तरह चाय बनायी। फिर पलंग पर लेटे-लेटे अखबार पढ़ रहे अपने पति हेमन्त को एक कप चाय देकर स्वयं बालकनी में पड़ी कुर्सी पर बैठकर चाय पीने लगी। कुछ देर बाद वह चाय के दोनों कप उठाकर वॉश बेसिन में रख आयी। कुछ देर बाद जब हेमन्त अपनी चाय समाप्त करने के बाद शौच को चले गए, तो उसने भी देश और दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी से सम्बन्धित खबरें जानने के लिए हेमन्त की मेज पर रखे अखबार को उठा कर पढ़ने लगी। उसमें देश के लगभग सभी राज्यों में कोरोना से संक्रमित होने और उससे तमाम लोगों के मरने की खबरों से भरी पड़ी थीं। अखबार में मुम्बई, अहमदाबाद, सूरत, दिल्ली, कोलकाता जैसे बड़े शहरों से हजारों की संख्या मंे मजदूरों के भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गाँवों को लौटने की खबरें तथा तस्वीरों देखकर उसका मन दुःख और विषाद से भर गया।
सुरभि ने मन ही मन कहा , ‘‘देश में लोग कितने परेशान हैं ? फिर भी उनके चेहरों से नाउम्मीदी नजर नहीं आ रही है, उनकी तुलना में हमारी समस्या तो कुछ भी नहीं है।’’
फिर उसकी नजर कोरोना महामारी से बचाव को लेकर सरकार द्वारा प्रकाशित विज्ञापन पड़ी, जिसमें इस महामारी से बचने से जुड़ी सावधानियों और उससे बचाव के तरीके लिखे थे। इनमें शारीरिक दूरी यानी फिजीकल डिस्टेंसिंग पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता बतायी गयी थी। सुरभि को अचानक ख्याल आया कि आज तो चन्दा काम करने नहीं आएगी, वह कल ही कह गयी थी कि मेम साहब! पुलिस वाले उसके मुहल्लें में कल से अपने घरों से निकलने नहीं देने की हिदायत दे गए हैं।
सुरभि के सामने चन्दा का बेबसी भर चेहरा बार-बार सामने आ रहा था। जब उसने लाचारी भरे लहजे में कहा,‘‘ फिर मेम साहब ! मैं जिस इलाकों में रहती हूँ, वह तो लोग इस बीमारी से बचने के लिए अब जो बातें बतायी जा रही हैं, वैसा वहाँ कुछ कर नहीं रहे हैं।’’
इस सुरभि ने कहा,‘फिर लोगों को बचाव के लिए कुछ तो करना ही चाहिए?’’
‘‘क्या करना चाहिए ? मेम साहब! चन्दा ने प्रति प्रश्न करते हुए कहा
इस पर सुरभि ने सवाल किया, ‘‘अपनी जान बचाना तो बहुत जरूरी होता?’’
‘‘हाँ’’,सही कहा अपने, मेम साहब! चन्दा ने आवेश में आकर कहा
सुरभि कुछ जवाब देती। उससे पहले चन्दा फिर बोल पड़ी। ‘‘मेम साहब! आप हम जैसे लोगों की मजबूरियाँ नहीं समझतीं।इसलिए कह रही हैं।’’
इस सुरभि ने कहा ,‘‘तुम्हारा यह कहना ठीक है कि मैं तुम लोगों की परेशानी के बारे कुछ ज्यादा नहीं जानती। बस ,मेरी समझ में जो आया ,वह तुमसे कह दिया।’’
तब चन्दा ने दर्द भरी आवाज में कहा,‘‘नहीं, मेम साहब! हर आदमी को अपनी जिन्दगी प्यारी है,लेकिन सच्चाई यह है कि यह सब करने की हम लोग हालत में ही नहीं है‘ं’।
तब सुरभि ने चन्दा से कहा,‘‘मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था, बस अपना समझ कर ,जो दिल में आया वह कह दिया।’’
‘‘मेम साहब! सरकार ने हम लोगों से घर न निकलने को तो कह दिया है,पर क्या हम अपने घरों में सुरक्षित रह पाएँगे?फिर बगैर काम के क्या खाएँगे?’’
तब सुरभि ने कहा, ‘‘क्यों? फिर सरकार ने तो कुछ सोच-विचार कर ही यह आदेश जारी किया होगा?’’
इस पर चन्दा गुस्से में जो कुछ कहा था। सुरभि को उसकी पीड़ा दिल में गहरे तक उतर गई।
उसके शब्द सुरभि के कानों में अब तक गूँज रहे थे, ‘‘मेम साहब! हम जैसे लोगों के बारे में न आप कुछ जानती है और न सरकार ही। क्या उसे नहीं पता कि हम जैसे लोग छोटे-छोटे घरों के बहुत ही छोटे-छोटे कमरों में कई -कई लोग एक साथ रहते हैं। बस्ती और उसके आसपास का माहौल भी अच्छा नहीं है।’’
सुरभि कुछ कहती। उसे पहले चन्दा बोल पड़ी,‘‘ मेम साहब!मेरा छोटा बेटा शानू बता रहा था कि उसके स्कूल मास्टर साहब बता रहे थे कि कोरोना छूत की बीमारी है, जो किसी को दिखायी भी नहीं देती। ऊपर से उसका न कोई टीका और न दवा ही।’’
मेम साहब! शानू कह रहा था कि इस बीमारी से तो दुनिया के सबसे बड़े देश अमेरिका भी अपने लोगों को नहीं बचा पा रहा है। इसलिए मेम साहब! मेरी वजह से किसी को यह बीमारी लग जाए, ऐसा मैं नहीं चाहती। कोरोना विषाणु से फैली इस महामारी के बारे में इतनी जानकारी चन्दा होगी, यह सुरभि के कल्पना के बाहर की बात थी। लेकिन यहाँ जीवन-मरण का प्रश्न था। इसलिए चन्दा के कल से काम पर न आने के बात कहने पर उसने चुप रहने में भलाई समझी। लेकिन अब उसे ही घर के झाडू-पोंछे, बर्तन साफ करने समेत नाश्ता, खाना सभी कुछ बनाना है, जो उसने बचपन से कभी किये़ ही नहीं थे। हालाँकि उसकी माँ सावित्री अक्सर कहा करती थीं कि साधन सम्पन्न होने के ये माने नहीं हैं, हम अपने सारे कार्य दूसरों से करायें और स्वयं अकर्मण्य बने रहे। पता नहीं, कब कैसा वक्त आ जाए ? सीता,कुन्ती द्रौपदी, तारामती, दमयन्ती सभी राजकुमारियाँ थीं, पर समय आने उन्हें न केवल वन-वन भटकना पड़ा, बल्कि स्वयं दूसरों के यहाँ सेवक बनने को भी विवश होना पड़ा, लेकिन माँ की इस सीख की मैं अनसुनी ही करती रही। आज उसे बचपन में माँ की कहीं ये सारी बातें एक-एक याद आ रही थीं।
कुछ देर बाद सुरभि ने झाडू उठायी और बालकनी और ड्राइंग रूम में जैसे-तैसे झाड़ू लगायी, इतने से ही उसके हाथ और कमर में दर्द होने लगा और पसीने से नहा गई। उसने रसोईघर, दूसरे कमरों की सफाई का विचार ही त्याग दिया। इसके बाद सुरभि नाश्ता बनाने पर विचार करने लगी। लेकिन उसे तो कुछ पकाना ही नहीं आता था। फिर उसने सोचा आज तो ब्रेड सेक लेते है, उस पर थोड़ा मक्खन लगाकर नमक ही तो छिड़कना होता, इतना तो वह कर ही लेगी ? उसने गैस जलाई। फिर टोस्टर मंे ब्रेड फसाकर उन्हें सेकने लगी, पर वह भी कुछ जल गईं। आज उसे अपने पर शर्म आ रही थी कि ऐसी जली हुई ब्रेड क्या हेमन्त खा पाएँगे ? लेकिन अब विकल्प ही क्या था ? तब तक हेमन्त भी आ गए। उन्होंने प्लेट में रखी ब्रेडों पर नजर डालते हुए सुरभि से कहा, परेशान होने की जरूरत नहीं, लॉकडाउन की वजह से सही तुम्हारी कुछ पकाने की शुरुआत तो हुई। उसके बाद हेमन्त ने खुशी-खुशी से उन जली हुई ब्रेडों को चाय के साथ खा लिया। यह देखकर सुरभि को सन्तोष हुआ। इसके बाद सुरभि नहाने चली गई और पूजा करने बैठ गई। उसके बाद सुरभि को ध्यान आया कि उसने कपड़े तो बाथरूम में बिना धोए ही छोड़ दिये है। अब उन्हें कौन धोएगा ? तब तक हेमन्त आ गए। उन्होंने सुरभि को देखते हुए कहा, ‘‘अब किस दुविधा में पड़ गईं?
तब सुरभि ने झेंपते हुए कहा,‘कुछ भी तो नहीं’।
‘कुछ तो हैं?’ हेमन्त ने पूछा
फिर हेमन्त ने कहा, ‘तुम तो नहा लीं, मैं भी नहा आऊँ।’
उसके बाद वह नहाने चले गए।
बाथरूम में हेमन्त ने सुरभि के वस्त्र बिना धुले देखकर उसकी परेशानी समझ आ गई।
हेमन्त ने नहाने के बाद अपने और सुरभि के कपड़े भी बाल्टी में थोड़ा साबुन का पाउडर डालकर रख दिये।
जब हेमन्त नहाकर निकल आया, तो सुरभि को हेमन्त ने कपड़े धोए या नहीं, यह देखने की इच्छा प्रबल हो गई।
जब वह बाथरूम में गई, तो यह देखकर खुश हुई कि हेमन्त ने कपड़े साफ करने का रास्ता निकाल लिया है।
उसके बाद सुरभि विचार करने लगी कि वह दोपहर में ऐसा क्या खाने को बनाया जाए, जो थोड़ा इधर-उधर से पूछ कर बनाया जा सके। इस बीच उसे ध्यान आया कि अब बेटी इंजीनियर ऐश्वर्या से बात कर ली जाए। उसकी बेटी ऐश्वर्या एम.सी.ए.करने बाद पिछले तीन साल से बैंगलूरु की एक मल्टीनेशनल आइ.टी.कम्पनी में कार्यरत है।
सुरभि ने ऐश्वर्या से सामान्य हालचाल पूछे। वैसे इसके पीछे असल इरादा तो उससे खाने की व्यवस्था के बारे में पता करना था, क्यों कि उसे भी खाना बनाने की सीखने की आवश्कता नहीं थी। इसके कारण ही सुरभि अब स्वयं परेशान है। लेकिन जब ऐश्वर्या ने यह बताया,‘‘ मम्मी! मेरे साथ रहने वाली राधिका ने मेरे लिए खाना बनाने की जिम्मेदारी ले ली है, इसलिए आपको मेरी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।’’ यह जानकार सुरभि को संतोष की सांस ली। सुरभि स्वयं से बात करते हुए कहने लगी,‘‘ चलो, राधिका तमिलनाडु के कोयम्बटूर की रहने वाली होने के कारण वह उत्तर भारतीयों की रोटियाँ भले ही न बनना जानती हो, पर कम से कम वह ऐश्वर्या को भूखा नहीं रहने देगी।’’
इस बीच सुरभि को ख्याल आया कि क्यों न खाने की रेसपीज जानने के लिए इण्टरनेट की मदद ली जाए ?
इसके बाद वह मोबाइल लेकर रेसपियाँ देखने लगी, पर भारी भरकम प्रक्रियाएँ देखकर उन्हें बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पायी। आखिर में उसने विचार किया कि विनीता जिस किसी दिन ऑफिस से देर से आती थी, तो खिचड़ी बना लेती थी। उसका कहना होता था कि इसमें न ज्यादा मेहनत लगती है न ही कुछ सोचना ही पड़ता। इसके बाद सुरभि ने फिर इण्टरनेट खंगलना शुरू किया, ताकि वह खिचड़ी बना सके।
इसके बाद उसने रसोई में चावल, मंूग की छिलका दाल और नमक तलाशा, क्यों कि ये सभी कहाँ रखे होते हैं, यह जानने की उसे जीवनभर कभी जरूरत ही नहीं पड़ी थी और उसने भी जानने की जरूरत ही समझी?
सुरभि ने जैसे-तैसे खिचड़ी बना ली, पर नमक का सही अन्दाज न होने की वजह से अधिक पड़ गया, पर जब इस बार भी हेमन्त ने उसे खुशी-खुशी खा लिया। तब अपनी इस सफलता पर सुरभि मन ही मन खुश भी हुई । इसके बाद उसे अपने पर यह भरोसा तो होने लगा कि किसी न किसी तरह वह कुछ न कुछ तो खाने को बना ही लेगी। फिर सुरभि सोचने लगी कि चन्दा से सब्जी या दाल में जब कभी जरा भी कमी हो जाती थी, तब वह उसे कितना सुनाती थी, जबकि उसके खाने की सभी मेहमान बहुत तारीफ ही करके जाते थे। चन्दा सुबह से रात हर काम बगैर कुछ कहे, अपने मन से करती रहती थी और कभी आलस नहीं दिखाती थी, यह सोच कर सुरभि को अब चन्दा की अहमियत समझ आ रही थी। फिर अचानक हेमन्त के बदले बर्ताव के बारे में विचार करने लगी, क्यों कि उसने न तो नाश्ते में जली ब्रेडों को लेकर कुछ कहा और न खिचड़ी में नमक ज्यादा होने पर। हेमन्त में आए इस बदलाव को लेकर सुरभि म नही मन बहुत खुश था,पर उसने हेमन्त पर जाहिर नहीं होने दी।
लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर बनी न रह सकी। यकायक एसी बन्द हो गया। उसने सोचा शायद एसी में कोई खराब आ गयी होगी। इसके बाद उसने कई बार एसी, टयूब लाइट, बल्व, पंखे समेत दूसरे बिजली के सभी उपकरण देख डाले, पर इनमें से कोई न चला। अब तो यह निश्चित हो गया कि बिजली ही चली है। मई माह में वैसे भी दोपहर को गर्मी अधिक पड़ती है और कल से गर्म हवा वाली लू भी चलने लगी है। ऐसे में बगैर एसी के वह और हेमन्त कैसे रह पाएँगे? लॉकडाउन से एक दिन पहले इनवर्टरें खराब हो गया था, इसलिए उसे तत्काल ठीक कराने की तब जरूरत महसूस नहीं हुई,क्योंकि वैसे भी आगरा में बिजली भी बहुत कम जाती है । वह बहुत बेचैन होकर इधर-उधर टहलने लगी, तभी हेमन्त आ गए। उन्होंने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘क्यों खामखां में परेशान हो रही हो? शायद कुछ देर के लिए चली गई होगी, जल्दी आ जाएगी।’’
तभी सुरभि की नजर वर्मा जी के बरामदे में चल गई, जहाँ उसे पंखा चल रहा है। फिर उन्होंने देखा गुप्ता जी के कमरे से टी.वी.की भी आवाज आ रही है। यह देख कर उसने अन्दाज लगाया कि जरूर हमारी कोठी का बिजली का फ्यूज उड़ गया है। अब प्रश्न यह है कि उसे ठीक किससे करायें ? उसे और हेमन्त को तो आता नहीं था। जब कभी ऐसा हुआ, तब किसी नौकर या बिजली वाले को बुलवा कर लिया जाता था। अब लॉक डाउन में तो यह सम्भव नहीं था। तभी सुरभि की निगाह एक किशोर पर पड़ी, जो अक्सर उसकी कोठी के पास के खाली प्लाट में क्रिकेट खेलते रहते थे, जब कभी उनकी गेंद उसकी कोठी में आ जाती थी, तब उन्हें बगैर उनकी गेंद दिये डॉट कर भगा देती थी। उस समय हेमन्त सुरभि के स्वभाव को देखते हुए उन लड़कों थोड़ा डॉट कर उनकी गेंद लौटा देते थे। सुरभि को लगा कि यह लड़का जरूर बिजली का फ्यूज जोड़ना जानता होगा। अगर नहीं भी जनता होगा, तो पूछने में क्या जाता है? लेकिन सुरभि की उससे लड़के से अपने बर्ताव की वजह से यह पूछने की हिम्मत नहीं पड़ी। तभी उसे ख्याल आया कि यह काम हेमन्त उससे जरूर करा लेंगे।
सुरभि ने कुछ दूर खड़े हेमन्त से कहा ,‘‘ इस लड़के से पूछ लो, शायद यह बिजली का फ्यूज जोड़ना जानता हो ?’’ इस पर हेमन्त ने उस लड़के को इशारा कर पास बुलाया, तब वह लड़का सुरभि को देख डरते-डरते पास आकर बोला,‘‘बाबू जी! कोई गलती हो गई ?’’
‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हैै। क्या तुम बिजली का फ्यूज जोड़ना जानते हो ?’’
इस पर उस लड़के ने कहा,‘‘ साहब! मैं तो नहीं जानता, पर मेरा दोस्त लालू जरूर जानता होगा ,क्योंकि उसके पिता जी बिजली का ही काम करते हैं।’’
फिर वह बोला,‘‘मैं अभी लालू या फिर उसके पिता जी को लेकर आता हूँ,साहब जी!’’
यह सुनकर सुरभि सन्तोष की गहरी सांस ली।
थोड़ी ही देर में वह लालू को लेकर आ गया। कोराना विषाणु महामारी की वजह से लॉक डाउन को देखते हुए उन दोनों अपने मुँह पर अंगोछा बाँधा हुआ था। लालू ने आते ही पूछा, ‘‘आपका बिजली का मीटर कहाँ है,साहब जी ?’’ हेमन्त उसे इशारा करते हुए जगह दिखाने के साथ ही फ्यूज वायर और प्लास भी दे दिया। उसके बाद वे दोनों उसे जोड़ने में जुट गए।
फ्यूज जुड़ते ही घर में बिजली आ गई। सुरभि और हेमन्त ने राहत की सांस ली। इसके बाद वे दोनों किशोर जाने लगे,तब हेमन्त ने कहा,‘रुको’। फिर पचास रुपए का नोट जेब से निकाल कर देते हुए हेमन्त ने कहा,‘‘अपना मेहनताना तो लेते जाओ।’’ इस पर लालू ने चौंकते हुए कहा, ‘‘कैसा मेहनताना,साहब जी।’’
अरे भाई! तुम लोगों ने बिजली ठीक है,उसका मेहनताना तो बनता’’ हेमन्त ने समझाते हुए जोर देकर कहा।
‘‘अरे साहब जी! ऐसी बात है तो अपने न जाने कितनी बार हमारी गेंद वापसी की। क्या आपने हमसे मेहनताना लिया? फिर अपने पड़ोसियों से मदद के बदले भले कोई मेहनताना लेता। ’’
लल्लू की ये बातें सुनकर सुरभि अचम्भित रह गई। उसे समझ न आ रहा था कि जो लड़के दस रुपए की गेंद वापस लेने के लिए कितनी मिन्नतें करते थे,वे आज पचास रुपए लेने से मना कर रहे हैं।
हेमन्त न फिर उन्हें समझाने के अन्दाज में कहा,‘‘नहीं बेटे! मैं अपनी खुशी से दे रहा हूँ, इन्हें लेने में संकोच मत करो।’’
‘हरगिज नहीं, साहब जी! आप हमें अपना पड़ोसी माने या न माने, पर हम अपने को आपका पड़ोसी जरूर समझते हैं। ऐसे में आप से मेहनताना लेने का कोई सवाल ही नहीं हैं। यह कहते हुए लल्लू का गला भरा आया फिर वे दोनों किशोर अपनी आँखों में आए आँसू पोंछते हुए बगैर मेहनताना लिए घर लौट गए।
यह देखकर सुरभि और हेमन्त हैरान रह गए। ।
उनके जाने बाद बहुत देर तक सुरभि उन दोनों के बारे में सोचती रही। उन दोनों के शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे। उसकी गरीब लोगों को लेकर अब तकमन-मस्तिष्क बनी धारणाएँ ध्वस्त होती लगीं।
इसके बाद हेमन्त और सुरभि अपने कमरे में जाकर टी.वी.पर समाचार देखने लगे, क्योंकि कोरोना के संकट ने उनकी आराम से कट रही जिन्दगी में ऐसा भारी व्यवधान डाल दिया था, जिसकी उन दोनों ने कभी कल्पना नहीं की थी। ऊँचे सरकारी औहदों पर रहते हमेशा नौकरों की कभी कोई कमी नहीं रही। रिटायरमेण्ट के बाद भी हजारों रुपए की पेंशन के मिलते थे, उसमें भी नौकर रखे जा सकते थे और वह रख भी रहे थे। लेकिन इस महामारी ने तो उनसे नौकर भी छुड़ा दिये या उन्हें स्वयं अपने प्राणों की रक्षा के लिए उन्हें छोड़ने को विवश होना पड़ा।
शाम 5बजे सुरभि की नींद खुली, तो देखा टी.वी.अब भी चल रहा था। देश में संक्रमितों और मृतकों संख्या लगातार बढ़ रही थी। यहाँ तक अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, जर्मनी आदि देशों में मृतकों को दफनाने को ताबूतों की कमी हो गई। कई देशों कब्रिस्तान में जगह कम पड़ रही थी। इस कारण दफनाने को नई जगहें तलाशी जा रही थीं। यह देख-सुन सुरभि बहुत घबरा गई। उसके बाद उसने अमेरिका के न्यूयार्क में रह रहे अपने डॉक्टर बेटे राहुल को फोन किया, जिससे वहाँ के हालचाल पता लगेंगे। राहुल ने सुरभि का बताया,‘‘ मम्मा! मुझे सामान्य दिनों की अपेक्षा आजकल कई-कई घण्टे अस्पताल में ही रहना पड़ रहा है।’’
फिर सुरभि ने बेटी ऐश्वर्या की तरह राहुल से भी खाने की समस्या जानना जरूरी समझा। ‘‘बेटे! खाने की आज का आजकल क्या चल रहा है?’’ सुरभि ने प्रश्न किया।
उत्तर में राहुल कहा,‘‘ममा! यहाँ के कैफेटेरिया और होटल बन्द हो गए। बहुत मुश्किल से पैक्ड फूड मिल रहा है, वह भी कभी अपनी पसन्द का नहीं होता। पहले तो भारतीयों द्वारा चलाए जा रहे होटलों में उसे भारतीय खाना ही नहीं, उसका मनपसन्द खाना मिला जाता था। यहाँ तक कभी भी तो वह ऑर्डर देकर अपनी पसन्द की दाल, सब्जी भी बनवा लेता, पर अब ऐसा नहीं है। ’’
‘‘फिर तो बहुत मुश्किल हो रही होगी,बेटे’’ सुरभि ने पूछा

इस पर राहुल ने कहा,‘‘ ममा! थोड़ी परेशानी तो है,लेकिन संकट भी तो ऐसा है,जिससे निपटना आसान नहीं है। वैसे मैं ब्रेड और पेक्ड सब्जियाँ गर्म कर खा कऱ रहा हूँ ।’’
यह सुनकर सुरभि बहुत दुखी हो गई। अब उसे अपनी माँ का यह कहना बार-बार याद आ रहा है कि आदमी कितना ही धनी हो जाए, उसे भोजन बनाने से लेकर आम जीवन की चीजें ठीक करना जरूर आना चाहिए, पता नहीं कब कैसी हालत का सामना करना पड़ जाए। आदमी को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दूसरों का सहयोग-सहायता करनी चाहिए। परिवार और समाज में रहने के माने भी ये ही हैं। अगर ऐसा न होता,तो न परिवार की जरूरत पड़ती और न ही समाज की। जिन्हें हम सभी छोटा, गरीब, अनपढ़, गंवार आदमी समझते हैं, उन्होंने ही हमारी यह दुनिया बनायी है, हमारे लिए खाने-पीने का अन्न, पानी, फल, सब्जियाँ पैदा करने से लेकर भोग-विलास की सारी वस्तुएँ उन्होंने अपने अथक परिश्रम से बनायी है। यह घर, पलंग, गलीचा, बिस्तर, चादर, कपड़े ,जूते, मोजे, कुर्सी, मेज, लिखने को कापी, पेन्सिल, कागज, पेन, कार-मोटर सब कुछ, पर क्या हम उन्हें उनके यह सब करने के लिए उनका वांछित सम्मान करते हैं ?कितने कृतघ्न है, हम सभी ?
एक बार हमारी नौकरानी अपने खेत में उगी कुछ सब्जियाँ लेकर आयी, तब मेरी ताई जी उन्हें लौटते हुए कहा था,‘‘ हम लोग इन सब्जियों को नहीं खाते , इन्हें तो गरीब-गुर्बे खाते हैं।’’ इस पर मेरी माँ ने कहा,‘‘ हर चीज को उसके महँगे-सस्ते की तुला पर नहीं, उसके पीछे की भावना को देखना चाहिए, बहन जी!। किसी की प्यार से दी गई चीज को लौटाना उसका अपमान करना है।’’
तब मेरी ताई जी ने मुँह बनाते हुए अहंकारपूर्ण स्वर में कहा,‘‘गरीबों और दूसरों की चाकरी करने वालों का कैसा मान-अपमान?
इस मेरी माँ ने कहा,‘‘नहीं,बहन जी! जे देने या किसी के लिए कुछ करने का भाव रखता हो,वह भला गरीब कैसे हो सकता है?’’
इस पर ताई जी कुछ कहतीं। इससे पहले मेरी माँ ने कहा,‘‘ बुरा मत समझना,बहनजी, अपने विचारों से आदमी छोटा-बड़ा होता है,सिर्फ धन-दौलत से नहीं।’’
इस बार ताई जी चुप नहीं रहीं। तुनक कर बोली,‘‘दूसरों के यहाँ चाकरी करने वालों को क्या रईस कहें?’’
पलट कर जवाब देते हुए माँ ने कहा,‘‘ चाकरी करना, कोई भीख माँगना नहीं होता। दुनिया में ऐसा कोई नहीं, जिसे कभी किसी की सहायता की जरूरत न पड़ी हो। ’’
फिर सुरभि ने हेमन्त से कहा,‘‘मेरी माँ करती थीं कि जीवन में आयीं मुसीबतों को देखकर हमें डर कर घर में दुबक कर नहीं बैठ जाना चाहिए, बल्कि पूरी शक्ति और सामर्थ्य से उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए। ’’
सुरभि को आँखें बन्द कर मुस्कराते देख हेमन्त चौंका। फिर उसने सुरभि से पूछा,‘‘क्या सोच कर मुस्करा रही थीं। पहले तो सुरभि हेमन्त को बताने से बचती रही। अन्त में उसने अपनी माँ की सीख उसे भी बता दीं। तब हेमन्त ने कहा,‘‘अब क्या सोचा है ?’’
इस पर सुरभि ने तपाक से कहा ,‘‘कुछ नहीं, अब तो हम दोनों को मिलकर इस कोरोना को हराना है।’’
‘‘अगर ऐसा है,तो मुझे भी घर और रसोई की कुछ जिम्मेदारियाँ दे दो।’’यह कह दोनों हँसते हुए एक-दूसरे से लिपट गए।
-समाप्त

जानने लगी। का देश बचपन सारे क उसे ख्याल कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में लॉकडाउन की घोषणा कर लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा दी। ऐसे में घरों पर कम करने वाली महिलाओं का भी दूसरे के काम पर जाना बन्द हो गया। चन्दा
चीन के वुहान शहर से फैलनी शुरू हुई कोरोना विषाणु से उत्पन्न महामारी ने देखते-देखते पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। इससे अपने लोगों के जीवन को बचाने के लिए भारत ने भी सर्तकता-सावधानी बरतनी शुरु की कर दी।फिर भी दूसरे देशों से लौटे कोरोना संक्रमितों के कारण इस महामारी ने अपने देश के विभिन्न राज्य में अपने पाँव पसने लगी। यह सब देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश को पूरी तरह बन्द(लॉकडाउन) की घोषणा को विवश होना पड़ा। इस दौरान चिकित्सको, चिकित्सकर्मियों,पुलिस,सफाईकर्मियों आदि को ही घर से बाहर निकलने पर रोक लगा दी।टी.वी.पर प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा से सुनकर सुरभि बहुत बेचैन हो गई। एक-एक कर देश के विभिन्न

समय

बन खाने बनाने पर विचार करने लगी।

क्योंकि बिजली चली गई।
तअच्छा,तो मैं भी नहा आ
‘अजान’ के फैसले पर फिर खामोशी ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मस्जिदों से लाउडस्पीकर से ‘अजान’ देने पर रोक लगाने और इस फैसले को लागू कराने को लेकर जो निर्णय दिया है, वह इस मुल्क के आईन (संविधान) के बुनियादी हकों (मूलभूत अधिकारों) और सेक्यूलर उसूलों (पंथनिरपेक्ष सिद्धान्तों) के हिसाब से निहायत उम्दा फैसला है, जो इंसानी सेहत के लिहाज से भी सौ फीसद बेहतरी से जुड़ा है। उच्च न्यायालय ने अपने इस निर्णय से गाजीपुर के जिलाधिकारी के कोरोना संकट के दौरान मस्जिद से लाउडस्पीकर से अजान न देने के उस निर्देश को सही ठहरा दिया है, जिसे कुछ लोगों अपने मजहब के खिलाफ मानते हुए इस न्यायालय में याचिका दायर की थी। वैसे इस फैसले में इस्लाम मजहब के खिलाफ कुछ भी नहीं है और सभी नागरिकों के बुनियादी हकों की हिफाजत तथा इन्सानी सेहत का ख्याल रखकर दिया है। यह देखते हुए अदालत के इस फैसले की जितनी तारीफ जाए, वह कम ही होगी, पर अब इसके उलट हो रहा है। इस फैसले से कुछ को छोड़कर इस्लाम के मानने वाले ज्यादातर लोग इससे बेहद नाराज है।
वैसे भी अपने मुल्क में किसी मजहबी मुद्दों पर इनसे आसानी से रजामन्द होने की उम्मीद करना ही बेमानी है, जो अपनी सहूलियत के हिसाब से कभी मजहब को अव्वल, तो कभी आईन को अव्वल कहते/बताते आए हैं। अब इस फैसले को लेकर ज्यादातर मजहबी रहनुमा, मुल्ला, मौलवी, इमाम अपनी-अपनी तरह नाराजगी जताते हुए इसे मजहब के काम में गैरजरूरी दखल मान रहे हैं। इनमें से कुछ इस फैसले के खिलाफ देश के सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कह रहे हैं। इस मुद्दे पर हमेशा की तरह देश की कथित सेक्यूलर सियासी पार्टियों के नेता और देश के संविधान और कानून के शासन का राग अलापने वाले खामोश बने हुए हैं। इस मामले में अपवाद स्वरूप खुद को प्रगतिशील, सेक्यूलर बताने-जताने के बाद भी कट्टर मजहबी ख्यालत रखने वाले मशहूर शायर, फिल्मी संवाद लेखक, गीतकार जावेद अख्तर ने मस्जिद से लाउडस्पीकर से अजान देने की मुखालफत जरूर की है, इसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।
मस्जिदों से लाउडस्पीकर से अजान दिये जाने को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस निर्णय को समझने के लिए पूरी घटना को समझना जरूरी है। इस्लाम मजहब में मस्जिद से अजान देने की रवायत/परम्परा सदियों पुरानी है, जिसके जरिए मस्जिद का मोहज्जिन तेज आवाज में ‘अजान’ लगाते आए हैं, ताकि उसे सुनकर इस्लाम को मानने वाले नमाज कर सकें। लेकिन कुछ सालों से अब हर छोटी-बड़ी मस्जिदों से लाउउस्पीकर से अजान लगायी जाने लगी है, चाहे वह कोई भी जगह हो, यहाँ तक कि वहाँ इस मजहब के चन्द लोग ही रहते हों। भले ही मस्जिद न्यायालय या अस्पताल परिसर में ही क्यों न हो, लेकिन इससे बेपरवाह मोइज्जिन अपने हिसाब से अजान लगाते आए हैं। यह देखते हुए पहले भी कुछ लोगों द्वारा लाउडस्पीकर से अजान लगाने पर विरोध जताया जाता रहा है, पर किसी ने उस पर ध्यान देने की आवश्यकता अनुभव नहीं की, क्योंकि इससे सियासी पार्टियों को इस समुदाय के एकमुश्त वोट खोने का डर सताता रहा है। गत वर्ष न्यायालय भी इस मुद्दे पर अपना निर्णय भी दे चुका हैं, पर शासन-प्रशासन ने अल्पसंख्यक समुदाय की नाराजगी को देखते हुए उस फैसले को लागू करने की कभी जहमत नहीं उठायी।
अब कोरोना संकट के समय जब सरकार ने सभी धार्मिक स्थलों को बन्द कर दिया, तब उत्तर प्रदेश गाजीपुर जिले के जिलाधिकारी ने मस्जिद के मोइज्जिन से लाउडस्पीकर से अजान न देने का मौखिक निर्देश दिया था। इसके खिलाफ गाजीपुर के सांसद अफजल अंसारी और फरुर्खाबाद के सैयद मोहम्मद फैसल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उस पर उच्च न्यायालय ने अपने इस अहम फैसले में कहा है कि लाउडस्पीकार से ‘अजान’देना इस्लाम का धार्मिक हिस्सा नहीं है। हालाँकि ‘अजान’ देना अभिन्न हिस्सा है। मस्जिद से मोइज्जिन बगैर लाउडस्पीकर के अजान दे सकते हैं। अपने इस फैसले के मुख्य आधार को स्पष्ट करते हुए न्यायालय ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण मुक्त नींद का अधिकार जीवन के मूल अधिकारों का हिस्सा है। किसी को अपने मूल अधिकार के लिए दूसरे के मूल अधिकारों का उल्लंघन करने अधिकार नहीं है। ऐसा कहकर न्यायालय ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पूजा-अर्चना/नमाज/प्रार्थना को अपना मूलभूत अधिकार समझ कर लाउडस्पीकार का इस्तेमाल करने अथवा कोई ऐसा कार्य करता है, जिसके कारण दूसरे व्यक्ति/समुदाय के मूलभूत अधिकारों पर विपरीत प्रभाव/उसके मूल अधिकारों का उल्लंघन/हनन होता है, तब उस हालत में उसे संविधान से प्राप्त मूलभूत अधिकारों के कोई माने नहीं रह जाते हैं। अब अधिक तेज आवाज में बिना अनुमति के लाउडस्पीकर बजाने की छूट किसी को नहीं है। अब इस आदेश को सभी जनपदों के जिलाधिकारियों के जरिए लागू किया जाएगा।
अब इस फैसले के आने के बाद बरेली के दरगाह आला हजरत से जुड़ी प्रमुख शख्सियत की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। इसी शहर के एक अन्य उलमा ने अपनी असहमति जरूर जतायी है। वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात भी कह रहे हैं। बरेली की खानकाह नियाजिया के प्रबन्धक शब्बू मियाँ नियाजी ने कहा कि वह सज्जादानशीन से बात कर अपनी राय रखेंगे। आगरा में भी मस्जिद, मदरसों से जुड़े लोग इस फैसले के खिलाफ हैं। इनमें से एक का कहना है कि अल्लाह के रसूल ने फरमाया था कि अजान की आवाज जितनी दूर तक जाएगी, उतनी दूर तक शैतान नहीं ठहर पाएगा, तो दूसरे का कहना है कि जिस चीज से इस्लाम या मुसलमानों को सहूलियत हो, इन्सानों की भलाई होती हो,वह काम गलत कैसे हो सकता है? पर यहाँ उनसे सवाल यह है कि फिर उन्हें तत्काल तीन तलाक, हलाला और दूसरी कुरीतियाँ इन्सानियत के खिलाफ क्यों नजर नहीं आतीं?
धार्मिक स्थलों और धार्मिक आयोजनों में बहुत तेज आवाज में लाउडस्पीकरों पर भजन – कीर्तन / जागरण/ रामायण / भगवात या फिर मस्जिदों में ‘अजान’ देने से सोने / पढ़ने / हृदय या किसी गम्भीर रोग से पीड़ित लोगों पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ता है। वे शोर के कारण अच्छी तरह सो या फिर पढ़ नहीं पाते। शोर/ तेज आवाज से गम्भीर रोगों से ग्रस्त लोगों की बेचैनी बढ़ जाती है। कभी – कभी ऐसी स्थिति में उनकी जान भी चली जाती है। इस कठोर सच्चाई को जानते हुए भी लोग अपने – अपने निहित स्वार्थों के कारण तेज आवाज/शोर मचाने से से बाज नहीं आते। अब जहाँ तक इस्लाम मानने वालों का सवाल है तो वे अक्सर अपनी मजहबी ग्रन्थों की नजीर पेश करते हैं। उसमें किसी तरह के बदलाव को वे शरीयत के खिलाफ मानते थे। तत्काल तीन तलाक और कई दूसरे मुद्दों पर इनका सहारा लेकर वे देश के कानून से ऊपर इस्लामिक कानून या शरीयत को बताते आए हैं। लेकिन जब ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम – 2019 का मसला आया, तो ये लोग ही न केवल संविधान के समानता के अधिकार की दुहाई देने लगे, बल्कि ये साबित करने में भी जुट गए कि वे इस मुल्क के संविधान के सबसे बड़े रक्षक और उसके हर कानून को मानने वाले हैं। फिर संविधान की आड़ में पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे, आगजनी, सम्पत्ति को बर्बाद किया।
दरअसल, अपने मुल्क में समुदाय विशेष की तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से यह वर्ग स्वयं को विशेषाधिकारी समझने लगा। इनमें से कुछ लोग खुद को हिन्दुस्तानी पुरखों की औलाद न मानते हुए विदेशी हमलावरों – गौरी, तुगलक, खिलजी, लोदी, मुगलों का वारिस समझ कर इस मुल्क पर फिर से हुकूमत का ख्वाब देखने और उसे हकीकत में तब्दील करने में जुटे हैं। इनमें से कुछ वतनफरोशों और दहशतगर्दों की हिमायत करने तक की हिमाकत करते आए हैं, लेकिन सत्ता लोभियों ने उनके गैरकानूनी और मुल्क के खिलाफ किये जा रहे उनके कामों की तरफ अपनी आँखें मूँद लीं। इस कारण देश के सारे कानून केवल बहुसंख्यक हिन्दुओं तक सिमट कर रह गए हैं। ऐसे लोगों के हौसले इतने बुलन्द हैं कि अपने मुल्क के खिलाफ काम करने के बाद वे कानून को ठेंगा दिखाने से बाज नहीं आते। ये लोग मजहबी कट्टरता की बुनियाद पर बने पाकिस्तान के हालात से भी कोई सबक सीखना नहीं चाहते। इन लोगों को यह भी दिखायी नहीं देता कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, यमन, लीबिया, सीरिया आदि इस्लामिक मुल्कों की क्या हालत है? क्या वाकई इस्लामिक मुल्कों की तुलना में भारतीय मुसलमानों की स्थिति खराब है ? उम्मीद करनी चाहिए कि इस देश के मुसलमान अपने संविधान, दूसरे कानून को मानेंगे और अदालतों के फैसलों की भी दिल से इज्जत करेंगे और बाकी बाशिन्दों से खुद को हर तरह से बेहतर साबित करके भी दिखायेंगे।
सम्पर्क-डॉ.बचनसिंह सिकरवार,63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
बकायदा
ध्वनि प्रदूषण मुक्त नींद का अधिकार सभी को है
उसे ऐसा करने का
नहीं करना चाहिए।

में जो संवैधानिक व्यवस्था और तर्क प्रस्तुत किये हैं, वे न केवल देश के संविधान में प्रदत्त मूल अधिकारों और पंथनिरपेक्षता के सिद्धान्तों के अनुरूप हैं,बल्कि इंसानों के सेहत के लिए भी मुफीद है।

उससे इस्लाम के मानने वाले भले ही सहमत न हों,पर एक आधुनिक और पंथनिरपेक्ष देश में नागरिक होने के नाते न्यायालय के फैसले पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। अप लेकर जो निर्णय दिया है मामले में स्थिति स्पष्ट करते हुए यह निर्णय देना कि का इस्लाम पर प्रतिबन्ध लगाने का जो अति महŸवपूर्ण निर्णय दिया है।को लेकर

सुरभि ने प्रश्न यह था कि उसे तो कुछ बनाना आता ही नहीं था।
बचपन सारे क उसे ख्याल कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में लॉकडाउन की घोषणा कर लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा दी। ऐसे में घरों पर कम करने वाली महिलाओं का भी दूसरे के काम पर जाना बन्द हो गया। चन्दा

पाकिस्तान ने इस इलाके को दो हिस्सों में गिलगिट-बाल्टिस्तान तथा आजाद कश्मीर में बाँट दिया। उसने गिलगिट-बाल्टिस्तान का 20हजार वर्ग किलोमीटर भूमि चीन को भंेट कर दी है,जिसमें उसने सड़क बना ली है। उसे यहा खाली करे जब सन् 1947 में जब देश अँग्रेजी साम्राज्य से आजादी मिली,तब जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में उस प्रकार नहीं हुआ,जिस प्रकार दूसरी रियासतें भारत संघ का अंग बनीं। जम्मू-कश्मीर राज्य भू-राजनीतिक विविधताओं से भरा पड़ा है।
सन् 1947-48 में भारत-पाक युद्ध के पश्चात् 27जुलाई,सन् 1949 को ‘कराची समझौत’ में युद्धविराम पर हस्ताक्षर कर तत्कालीन सरकार उस भूमि को पुनः प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया,जिस पर पाकिस्तान ने जबरन कब्जा कर लिया था।
जानने लायक बात यह भी है कि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान का कोई आधिकारिक प्रान्त नहीं है। आज जिसे हम ‘पी.ओ.के.’ या ’पी.ओ.जे.के.’ कहते हैं। उसके शासकीय अधिकारों पर पाकिस्तान का संविधान मौन है।बहरहाल, पाकिस्तान ने जो भूमि हथियाई थी उसे दो भागों में बाँटा । एक नाम ‘आजाद कश्मीर’ तथा दूसरे को ‘नॉर्दन एरिया’। कथित आजाद कश्मीर दरअसल नियंत्रण रेखा के पश्चिम में मीरपुर मुजफ्फराबाद का क्षेत्र है,जिसकी सीमा जम्मू और कश्मीर घाटी के थोड़ा ऊपर तक लगती है। यह पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का छोटा भाग है।यह उस भूमि का मात्र 15प्रतिशत भाग है जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा किया था। पाकिस्तान ने बड़ी चालाकी से इस क्षेत्र को छद्म स्वतंत्रता प्रदान की है। शेष पाकिस्तान से अलग यहाँ एक वजीर-ए-आजम, सुप्रीम कोर्ट आदि कायम किये गए है। मीरपुर मुजफ्फराबाद का इलाका रावलपिण्डी के समीप है,जहाँ पाकिस्तानी फौज का जनरल हैड क्वार्टर स्थित है। इसलिए रणनीतिक रूप से पाकिस्तानी फौज को इस क्षेत्र को आजाद कश्मीर घोषित कर यहाँ से भारत विरोधी गतिविधि संचालित करने की सुविधा होती है। पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र को कायदे से ‘पाकि अधिकृत कश्मीर’ कहना चाहिए। इसके दो कारण हैं- पहला यह कि भारत के संवैधानिक रूप से स्वीकृत जम्मू-कश्मीर राज्य का भाग है।सुबह हुई तो सुरभि ने हर रोज की तरह चाय बनायी। फिर पलंग पर लेटे-लेटे अखबार पढ़ रहे अपने पति हेमन्त को एक कप चाय देकर स्वयं बालकनी में पड़ी कुर्सी पर बैठकर चाय पीने लगी। कुछ देर बाद वह चाय के दोनों कप उठाकर वॉश बेसिन में रख आयी।कुछ देर बाद जब हेमन्त अपनी चाय समाप्त करने के बाद शौच को चला गए, तो उसने भी देश और दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी से सम्बन्धित खबरें जानने के लिए हेमन्त की मेज रखे अखबार को उठा लायी और उसे पढ़ने लगी। उसमें देश के लगभग सभी राज्यों में कोरोना से संक्रमित होने और उससे मरने के साथ-साथ मुम्बई,अहमदाबाद, सूरत,दिल्ली,कोलकाता जैसे बड़े शहरों से हजारों की संख्या मंे मजदूरों के भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गाँवों को लौटने की खबरांे तथा तस्वीरों से भरा पड़ा था। सुरभि उन्हें पढ़कर सिहर उठी। फिर उसकी नजर कोरोना महामारी से बचाव को लेकर सरकार द्वारा प्रकाशित विज्ञापन पड़ी, जिसमें इस महामारी से बचने से जुड़ी सावधानियों और बचाव के तरीके लिखे थे। इनमें शारीरिक दूरी यानी फिजीकल डिस्टेसिंग पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता बतायी गयी थी। सुरभि को अचानक ख्याल आया कि आज तो चन्दा काम पर नहीं आएगी नहीं,वह कल ही कह गयी थी कि मेम साहब! पुलिस वाले उसे अपने घरों से निकलने नहीं दे रहे हैं। फिर मेम साहब! मैं जिस इलाकों में रहती हूँ, वह तो लोग इस बीमारी से बचने के लिए जो बातें बतायी जा रही है,वैसे कुछ कर नहीं रहे है। वैसे सच्चाई यह है कि यह सब करने की हालत में भी नहीं हैं। छोटे-छोटे घरों के बहुत ही छोटे-छोटे कमरों में कई -कई लोग रहते हैं। बस्ती और उसके आसपास का माहौल भी अच्छा नहीं है। फिर मेरा छोटा बेटा शानू बता रहा था कि यह छूत की बीमारी है, जो किसी को दिखायी भी नहीं देती।ऊपर से उसका न कोई टीका और न दवा ही। मेम साहब! शानू कह रहा था कि इस बीमारी से तो दुनिया के सबसे बड़े देश अमरीका भी अपने लोगों को नहीं बचा पा रहा है। इसलिए मेम साहब! मेरी वजह से किसी को यह बीमारी लग जाए,ऐसा मैं नहीं चाहती।सुरभि को कोरोना विषाणु से फैली इस महामारी के बारे में इतनी जानकारी होगी,यह उसके कल्पना के बाहर की बात थी। लेकिन यहाँ जीवन-मरण का प्रश्न था। इसलिए वह चन्दा के कल से काम पर न आने के बात कहने पर चुप रहने में भलाई समझी।लेकिन अब उसे ही घर के झाडू-पोंछे ,बर्तन साफ करने समेत नाश्ता, खाना सभी कुछ बनाना है, जो उसने कई दशक पहले ही छोड़ दिये थे। हालाँकि उसकी माँ सावित्री अक्सर कहा करती थींकि साधन सम्पन्न होने के ये माने नहीं हैं,हम अपने सारे कार्य दूसरों से करायें और स्वयं अकर्मण्य बने रहे। पता नहीं,कब कैसा वक्त आ जाए? अपने सीता, द्रौपदी, तारामती, दमयन्ती सभी राजकुमारियाँ थीं,पर समय आने उन्हें न केवल वन-वन भटकना पड़ा,बल्कि स्वयं दूसरों के यहाँ सेवक बनने को विवश होना पड़ा,लेकिन उनकी सीख में हमेशा अनसुनी ही करती रही। आज उन्हें बचपन में माँ की कहीं सारी बातें एक-एक यादें आ रही थीं। कुछ देर बाद सुरभि ने झाडू उठायी और बालकनी और ड्राइंग रूम में जैसे-तैसे झाड़ू लगायी, इतने में उसका हाथ और कमर में दर्द होने लगा और पसीने से नहा गई। उसकी रसोईघर, दूसरे कमरों और दूसरी जगहों की सफाई का विचार ही त्याग दिया।इसके बाद सुरभि ने नाश्ता बनाने की सोचनी लगी।लेकिन उसे तो कुछ पकाना ही नहीं आता था। फिर उसने सोचा आज तो ब्रेड सेक लेते है,उस पर थोड़ा मक्खन लगाकर नमक ही तो छिड़कना होता,यह वह कर ही लेगी।उसने जैसे-तैसे गैस जलाई। फिर टोस्टर मंे ब्रेड फसाकर उन्हें सेकने लगी,पर वह कुछ जल गईं। आज उसे अपने पर शर्म आ रही थी कि ऐसी जली हुई ब्रेड लेकर हेमन्त को खा पाएगा? लेकिन अब विकल्प ही क्या था?तब तक हेमन्त भी आ गए। उन्होंने प्लेट में रखी ब्रेडों पर नजर डालते हुए सुरभि से कहा, परेशान होने की जरूरत नहीं,लॉकडाउन की वजह से सही कुछ पकाने की शुरुआत तो हुई। सुरभि ने प्रश्न यह था कि उसे तो कुछ बनाना आता ही नहीं था।बचपन सारे क उसे ख्याल कोरोना वायरस से फैली महामारी के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में लॉकडाउन की घोषणा कर लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा दी। ऐसे में घरों पर कम करने वाली महिलाओं का भी दूसरे के काम पर जाना बन्द हो गया। चन्दा

जन्मदिन पर विशेष
समस्त मानवीय गुणों के समुच्च्य थे राजेद्र रघुवंशी
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
राजेन्द्र रघुवंशी ने अपने जीवन काल में एक साथ लेखक, पत्रकार, कहानीकार, उपन्यासकार, कवि, व्यंग्यकार, अभिनेता, नाट्यकार, साम्यवादी विचारक, समाज सुधारक आदि की एक साथ भूमिकाओं का निर्वहन किया, जो किसी आम आदमी के लिए कठिन ही नहीं असम्भव-सा है, लेकिन उनके लिए ये सभी भूमिका निभाना इसलिए सम्भव हो सका, क्योंकि वे अत्यन्त संवेदनशील होने के साथ सभी मानवीय गुणों से ओतप्रोत थे। वह कुछ लोगों के आदर्श, पथप्रदर्शक, प्रेरणा स्रोत तो कुछ के सहायक और सहायता देने वाले रहे। रघुवंशी जी साम्यवादी विचारधारा के जीवन पर्यन्त रहे, पर इस कारण उन्होंने दूसरे राजनीतिक विचार रखने वालों को अपने दूर नहीं रखा। यही कारण है कि वह जहाँ श्रमिकों, कलाकारों, साहित्यकारों, कवियों, रंगकर्मियों, सांस्कृतिक प्रेमियों, तो दूसरी ओर अपने को आभिजात्यवर्ग का मानने महाविद्यालय के शिक्षकों, चिकित्सकों, व्यापारियों, उद्योगपतियों को अपने साथ लेने में सफल रहे। अपनी इस गुणवत्ता/विशेषता के कारण पूरे आगरा शहर को कई मामलों में आपस में एकजुट रखने में भी कायम रहे।
रघुवंशी जी में लोगों को अपना बनाने में महारत हासिल थी, जिसका कारण उनका हर किसी के साथ आत्मीयतापूर्ण व्यवहार रहा। उन्हें वैचारिक रूप से धुर विरोधियों को न केवल अपना बनाया, बल्कि सामाजिक/सांस्कृतिक कार्यों में उनका सहयोग/सहायता लेने में सफल रहे।
राजेन्द्र रघुवंशी जी के पथदर्शन के कारण हीं देशभर के पत्र-पत्रिकाओं में मेरे लेखों का कम उम्र प्रकाशन सम्भव हुआ।
सन् 1977 में मैंने दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद पर चल रही तत्कालीन गोरी सरकार के विरुद्ध ‘संघर्षरत अश्वेत स्वतंत्रता सेनानी स्टीव बीको‘ को फाँसी देने को लेकर उन पर लेख लिखा, जिसे दैनिक अमर उजाला में प्रकाशित होने के लिए अपने मित्र अनिल शर्मा को दिया, जो उस समय फुलट्टी बाजार के पास कूँचा साधूराम में रहते थे और उस समय दैनिक अमर उजाला का कार्यालय धूलियागंज में हुआ करता था।
अनिल शर्मा ने मेरा लेख वहाँ सम्पादकीय विभाग में कार्यरत राजेन्द्र रघुवंशी जी को दिया। कुछ दिनों बाद मेरा लेख दैनिक अमर उजाला के रविवासरीय अंक में प्रकाशित हुआ। उस लेख पढ़ने के बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बैठक में मुझे बुलाया गया। जब मेरे मित्र अनिल शर्मा दूसरा लेख लेकर रघुवंशी जी के पास पहुँचे, तब उन्होंने अनिल शर्मा को ही मुझे (बचन सिंह सिकरवार) समझ कर भविष्य में दूसरे पत्र-पत्रिकाओं में लेख छपने की सलाह देने लगे। इस पर अनिल शर्मा ने कहा,‘‘ मैं बचन सिंह सिकरवार नहीं हूँ, बल्कि मैं उनका दोस्त हूँ। मेरा घर आपके कार्यालय के पास होने कारण वह मुझे अपना लेख मुझ से भिजवा देते हैं। इसके बाद रघुवंशी जी ने कहा कि उन्हें मेरे पास भेजना। जब मैं उनसे दैनिक अमर उजाला के कार्यालय में अनिल शर्मा का सन्दर्भ और अपना परिचय देकर मिला, तब उन्होंने कहा कि तुम संवेदनशील और देश-दुनिया के घटनाओं पर नजर रखकर लेखन करते हो, तुम्हारे लेख देश के दूसरे समाचार आदि में भी प्रकाशित हो सकते हैं। जहाँ तक दैनिक अमर उजाला की बात है तो यहाँ बामुश्किल साल में दो-तीन लेख छपने से ज्यादा की सम्भावना नहीं है। इसलिए मैं तुम्हें एक पता देता हूँ, जिन्हें मेरा सन्दर्भ देते हुए अपने लेख भेजा करो। उन्होंने मुझे सोमदेव जी का तानसेन मार्ग, बंगाली मार्केट, नयी दिल्ली का पता दिया, जो उस समय ‘पब्लिकेशन सिण्डीकेट’ चलाते थे, जो अपने देश के बड़े सिण्डीकेटों में से एक था। बाद में ज्ञात हुआ कि सोमदेव जी आगरा के ही रहने वाले हैं, जो वरिष्ठ पत्रकार डॉ.हर्षदेव की बड़े भाई तथा रावतपाड़ा के प्रसिद्ध वैद्य शिवकुमार के पुत्र हैं। वह पहले जयपुर से प्रकाशित दैनिक ‘राष्ट्रदूत’ के सम्पादकीय में जय सिंह राठौर तथा दैनिक ‘राजस्थान पत्रिका’के संस्थापक गुलाब चन्द कोठारी के साथ कार्य कर चुके हैं। जब मैंने पब्लिकेशन सिण्डीकेट को रघुवंशी जी का सन्दर्भ का उल्लेख करते हुए अपना न्यूट्रोन बम पर लेख भेजा, तो वह देश के कई बड़े नगरों से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ। जब मैं उस प्रकाशित लेख की कतरनें लेकर रघुवंशी जी के पास गया, तो उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा मुझे भविष्य और अधिक लिखने का आशीर्वाद दिया। इसके बाद उन्होंने मुझे देश-दुनिया में मशहूर मयकश अकबराबादी का साक्षात्कार लेने का सुझाव दिया, जिनका मेवा कटरा, सेव के बाजार में आवास है। यह साक्षात्कार भी दैनिक अमर उजाला के बरेली संस्करण में छपा। रघुवंशी जी के पास सोवियत संघ और अन्य जगहों के तमाम पत्र-पत्रिकाएँ आया करती थीं, जब भी रघुवंशी को लगता था कि इस विचार/मुद्दे की देश के लोगों को भी जानकारी दी जाए, तब वह मुझे उस पत्रिका को देकर कहते थे कि इसे पढ़कर इस विषय पर लेख लिखो। उनका उद्देश्य ‘तीसरी दुनिया‘ यानी एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमरीकी देशों में पूँजी देशों के अप्रत्यक्ष रूप उनके प्राकृतिक संसाधनों के अन्धाधुन्ध दोहन, अपनी उत्पादों के अधिक कीमतों पर बेचकर उनका आर्थिक शोषण, उनके यहाँ अपने सैन्य अड्डे बनाकर, वहाँ धन देकर विभिन्न राजनीतिक गुटों का आपस में लड़ाकर अशान्ति और अराजकता का वातावरण बनाए रखना, अपने यहाँ के परमाणु रियेक्टरों का रेडियो एक्टिव कचरा उनके देशों में ठिकाने लगाने को भेजने आदि के काले कारनामों को लेकर जागरूक बनाना था।
तत्पश्चात रघुवंशी जी जब कोई भी विशेष व्यक्ति उनके यहाँ आता वह मुझे बुलाते और उससे मेरा परिचय कराते। उन्हीं की वजह से मैं प्रख्यात फिल्म अभिनेता बलराज साहनी की धर्मपत्नी सन्तोष साहनी, ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ (एन.एस.डी.), दिल्ली के निदेशक नेमीचन्द जैन की धर्मपत्नी श्रीमती रेखा जैन, मशहूर शायर, गीतकार कैफी आजमी आदि से भेंट करने और उनके विषय में लिखने का अवसर मिला। श्रीमती रेखा जैन दिल्ली में ग्रीष्म अवकाश में बच्चों का नाटक आदि का प्रशिक्षण दिया करती थीं, ताकि नाट्य क्षेत्र के लिए युवा कलाकार उपलब्ध हो सकें और बच्चों को बचपन से ही नाट्य गतिविधियों के माध्यम से अपनी संस्कृति से परिचित कराके उन्हें अच्छे संस्कार दिये जा सकें। उन्हीं के सुझाव पर रघुवंशी जी ने आगरा में ‘लिटिल इप्टा’ की शुरुआत की गई।
मेरा उनके प्रति आकर्षण सन् 1971 में तब बढ़ा, जब मैंने एक नाट्यदल बनाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम करने शुरू किये। सन् 1979 में मणिपुर के शोध छात्र सापाम तोम्बा सिंह की पहल पर हम लोगों ने ‘अखिल भारतीय अनुवादक मण्डल’का गठन किया, जिसमें देशभर के कोई दो दर्जन राज्यों के छात्रों को सम्मिलित हुए, जो केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के विभिन्न पाठ्यक्रमों के अध्ययनरत थे। इस संगठन का सापाम तोम्बा सिंह अध्यक्ष, कश्मीर के गिरधारी लाल पण्डित उपाध्यक्ष मैं महासचिव, राजेन्द्र फौजदार कोषाध्यक्ष तथा दूसरे राज्यों के लिए छात्र सचिव और कार्यकारिणी के सदस्य बने। इसके गठन का समाचार दैनिक अमर उजाला में चित्र सहित प्रमुखता से प्रकाशित हुआ। उस समय मेरे मन में अनुवादक मण्डल के तत्वावधान में देशभर की विभिन्न भाषाओं-बोलियों का कवि सम्मेलन कराने के विचार आया। इस सम्बन्ध में मैंने रघुवंशी जी से चर्चा की, तो उन्हें मेरा यह विचार पसन्द आया। उस समय मैं कन्हैयालाल माणिक मुंशी हिन्दी एवं भाषा विज्ञान विद्यापीठ से पोस्ट एम.ए.डिप्लोमा इन ट्रान्सलेशन’ का छात्र था तथा उस इस पीठ के निदेशक प्रख्यात साहित्यकार डॉ.विद्यानिवास मिश्र थे। मैंने उनसे कवि सम्मेलन की मुख्य अतिथि करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उस अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की अध्यक्षता राजेन्द्र रघुवंशी जी ने की, जिसमें 26 से अधिक भाषा- बोलियों के कवियों ने अपनी और अपने यहाँ प्रसिद्ध कवियों की रचनाओं का पाठ किया। इसमें डॉ.विद्यानिवास मिश्र से भोजपुरी में, जितेन्द्र रघुवंशी ने रूसी भाषा, राजेन्द्र रघुवंशी जी ने ब्रज भाषा की, सापाम तोम्बा सिंह ने मणिपुरी, गिरधारी लाल पण्डित ने कश्मीरी आदि ने काव्य पाठ किया। इस कवि सम्मेलन पधारे कुछ सिन्धी कवियों तथा उनके साथ कुछ संन्यासियों भी कहा कि ऐसा कवि सम्मेलन हमने केवल आजादी से पहले लाहौर में देखा था कि आज देखा-सुना है। इस कवि सम्मेलन को सफल कराने में राजेन्द्र रघुवंशी जी की अहम भूमिका रही।
सन् 1990 में दैनिक अमर उजाला में सम्पादकीय विभाग में रहते हुए पत्रकारों के संगठन ‘उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसियेशन’ का जिलाध्यक्ष निर्वाचित हुआ। उस दौरान हमारे संगठन के तŸवावधान में ‘आयरन फाउण्डर्स एसोसियेशन‘ के उत्तर विजय नगर कॉलोनी स्थित सभागार में कार्यक्रम आयोजित किया गया। उसमें तत्कालीन नगरप्रमुख रमेशकान्त लवानिया, दैनिक ‘आज’ के स्थानीय सम्पादक शशि शेखर, दैनिक जागरण के स्थानीय सम्पादक श्याम बेताल, साप्ताहिक ब्लिट्ज के सम्वाददाता रामगोपाल इगलासिया मंचासीन हुए। उसमें राजेन्द्र रघुवंशी ने अपने सम्बोधन में पत्रकारों को अपने संगठन के महŸव बताते हुए उनसे गरीब, अभावग्रस्त, श्रमिकों, किसानों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाने का आह्नान किया।
रघुवंशी जी में असीम जीवटता थी। 30 मई, हिन्दी पत्रकारिता दिवस के लिए मैंने उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसियेशन की स्थानीय इकाई के अध्यक्ष के नाते उन्हें मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया। रघुवंशी जी उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। नगला अजीता निवासी ओमप्रकाश पाराशर ने अपने आवास पर आयोजन रखा। जब हम लोग रघुवंशी जी को लेकर उनके आवास पर पहुँचे, तब ज्ञात हुआ कि पाराशर जी कार्यस्थल अपने आवास की दूसरी मंजिल पर रखा और वहाँ तक के लिए बहुत संकरी सीढ़ियाँ थीं। यह स्थिति देखकर परेशान हो गया और पाराशर जी को रघुवंशी जी की पैरों की समस्या न बताने पाने के लिए पछतावा कर रह था, क्योंकि रघुवंशी घुटने के कारण बहुत मुश्किल से धीरे-धीरे चल पाते थे, पर उन्होंने मेरी स्थिति को भाँपते हुए कहा परेशान होने की जरूरत नहीं मैं चढ़ जाऊँगा। वे किसी तरह घिसटते हुए ऊपर पहुँच गए, लेकिन उनकी साँसे तेजी से चली रही थीं। उनकी इस हालत से हम लोग घबरा रहे थे, किन्तु उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, अब तो मैं आ गया, फिर क्यों परेशान हो ? हम सोच रहे थे कि उनकी जगह कोई और होता, तो हमारी नासमझी/चूक तमाम उलाहने देता, पर उन्होंने इसकी विपरीत व्यवहार किया। हम उनकी इस सहृयता देखकर मन ही मन नतमस्तक हो गए।
सन् 1995 मैंने पाक्षिक ‘राष्ट्रवन्दना’ तथा साप्ताहिक ‘अनुगूँज’का प्रकाशन शुरू करने की योजना बनायी, तब रघुवंशी जी ने इनके प्रकाशन में आने वाली तमाम कठिनाइयाँ बताते उनसे जझूने के तरीके भी बताएँ। इसके साथ ही बहुत सारे सुझाव दिये। मैं उन्हें दोनों ही पत्र नियमित भेजता था, उस वह सम्यक् समीक्षा कर पत्र लिखकर सुझाव दिया करते थे। एक बार मैंने उनके व्यक्ति-कृतिव्य पर लेख प्रकाशित किया। कुछ समय पश्चात उन्होंने लिखा कि एक छात्रा उन पर अपना शोध कर रही है। उसने तुम्हारे लेख को अपने शोध की रूपरेखा (सिनोपसिस) का हिस्सा बनाया है। मेरे दोनों बेटे अनुज कुमार सिंह तथा अपूर्व सिंह बचपन से ही लिटिल इप्टा से जुड़े रहे, जहाँ उन्हें राजेन्द्र रघुवंशी से सगे बाबा जैसा प्यार और व्यवहार मिला। ये दोनों आज ही उनका स्मरण करते रहते हैं।
यूँ तो आगरा नगर में अपनी-अपनी विधाओं के एक से एक दिग्गज रहे हैं, लेकिन रघुवंशी जी ने कार्य- व्यवहार से विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, जाति, मजहब के लोगों को जिस तरह जोड़ा, उसकी किसी ओर से तुलना करना असम्भव है।
सम्पर्क-63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054

आगरा के तत्कालीन नगरप्रमुख रमेश कान्त लवानिया, दैनिक आज के स्थानीय सम्पादक शशि शेखर, राजेन्द्र रघुवंशी, साप्ताहिक ‘ब्लिट्ज’ के सम्वाददाता रामगोपाल इगलासिया, दैनिक जागरण के स्थानीय सम्पादक श्याम बेताल, उपजा के अध्यक्ष डॉ.बचनसिंह सिकरवार

प्रख्यात शायर कैफी आजमी की पत्रकार वार्ता में जितेन्द्र रघुवंशी, राजेन्द्र रघुवंशी, डॉ. बचन सिंह सिकरवार

सपनीली इच्छाएँ
पवन शर्मा
हर महीने की पहली तारीख को
घर भर की आँखों में
सुनहरी चमक उभर आती है
मेरी आँखों में भी
साथ ही
कई प्रकार की इच्छाएँ
घर भर की आँखों में देखता हूँ
अम्मा की आँखों में
दद्दा की आँखों में
भाई की आँखों में
छोटी बहन की आँखों में
यहाँ तक कि
अपनी आँखों में भी
लेकिन देखकर ही क्या होगा?
सोचता हूँ
हर महीने की पहली तारीख को
दफ्तर से घर लौटते हुए
हमेशा सोचता हूँ ,कि
लाना है इस माह
अम्मा की नई साड़ी
दद्दा की ऐनक
भाई के लिए जूते
छोटी बहन के लिए रोल्ड गोल्ड के कंगन
और भी तो
कई-कई सपने देखते हैं हम- सब
वो भी क्या पूरे के पूरे
सच होते हैं
सपने तो सपने ही होते हैं
आँख खुली और
टूट जाते हैं
यथार्थ तो यही है,कि
अभावों की चादर
अनन्त तक फैली हुई है
मैं आज तक
ये नहीं जान पाया
कि, आखिर
हमारी इच्छाएँ
मर क्यों नहीं जातीं!
सम्पर्क-पवन शर्मा शा.कन्या मा.षा.डुगरिया जिला-छिन्दवाड़ा, मध्य प्रदेश-480553

कहानी
मोह
-अनीता सिंह
रामनगर में एक पहुँचे हुए महात्मा पधारे। नाम तो उनका था श्रीकृष्ण कुमार दीक्षित मगर अधिकतर लोग उन्हें पण्डित जी ,या सतीबाबा कहते थे। वह सीधे रामू की चौपाल पर गए। रामू उस समय खाट पर बैठा हुक्का पी रहा था। पास ही उसके दो-चार व्यक्ति बैठे हुए थे। रामू ने जैसे ही उन महात्मा को देखा,‘‘तुरन्त खड़ा होकर उनकी तरफ अत्यन्त आदरपूर्वक बोला,‘‘ पाएँ लागू पण्डित जी!’’
महात्मा जी मुस्कराते हुए बोले,‘‘ चिंरजीव रहो बेटा!’’
महात्मा जी उस खाट पर बैठ गए। पूरे अस्सी साल पूरे करने के बाद भी उनकी आँखों की रोशनी कम नहीं हुई थी। वह शरीर से जरूर कुछ कमजोर आ नजर रहे थे।
‘‘रामू! हमने सोचा है कि इस बार हम काशी तीर्थ करने जाएँगे। वैसे और जगह तो हम कई बार घूम आए हैं। काशी जाने की एक बार और इच्छा है।’’

महात्मा जी बोले-‘‘ बेटा! मगर एक समस्या है। मेरी हालत तो तुम देख ही रहे हो, शरीर से कुछ कमजोर हो गया हूँ। इसलिए किसी ऐसे सहारे की जरूरत है,जो काशी तक मेरे साथ चले। रामू! तुम क्यों नहीं चलते मेरे साथ? रामू महात्मा जी के पैरों की तरफ बैठा हाथ जोड़ते हुए बोला,‘‘ बाबा! आपके साथ चलने में मुझे कोई ऐतराज नहीं है। मैं तो अपने आप को भाग्यशाली समझता हूँ, जिसे आपने इस लायक तो समझा, किन्तु परेशानी यह है, आप तो जानते ही हैं कि मैं अपने माता-पिता का इकलौता बेटा हूँ। मेरी पत्नी सुबह आँखें मेरा चेहरा देखकर ही खोलती है। मेरे बिना वह एक पल भी नहीं रह सकती।’’
महात्मा जी ने गहन हुँकार भरी।
‘‘हूँ’ तो यह बात है। ठीक है न चलो, मगर एक काम कर सकते हो।’’
‘आप हुकूम कीजिए।’’
‘‘कुछ देर तुम साँस रोक कर लेट सकते हो?’’
रामू फुर्ती से बोला,‘‘ ये कौन-सी बड़ी बात है,लो अभी लेट जाता हूँ।’’
‘‘अभी यहाँ नहीं। घर में जहाँ सभी हों, वहाँ तुम एकदम से गिर कर साँस रोक लेना । बाद में क्या करना है वह मैं कर लूँगा।’’
रामू घर पहुँचा। उसकी माँ उसके नन्हें से बेटे को गोद में लिए बैठी हुई थी। रामू की पत्नी चावल साफ कर रही थी। रामू मौका देखकर आँगन में धड़ाम से गिर पड़ा। उसकी पत्नी और माँ दौड़ उसके पास आयीं, साँस देखी, जो बन्द थी। वह दोनों जोर-जोर से विलाप करने लगीं। उनका रोना सुनकर पड़ोस से कुछ लोग आ गए। रामू के पिता को खबर लगी, तो वह भी दौड़ते हुए घर पहुँच गए और दीवार से सिर मारकर रोने लगे। तभी महात्मा जी भी वहाँ पहुँच गए। रामू के पिता ने महात्मा जी के पैर पकड़ कर कहा, ‘‘सती बाबा! मेरे बच्चे को बचा लीजिए, वरना हम बर्बाद हो जाएँगे। हमारे परिवार के चिराग को बुझने से बचा लीजिए। मैं आपके पैर पड़ता हूँ।’’
महात्मा जी ने अपने पैर छुड़ाते हुए कहा,‘‘ जाओं, एक गिलास दूध लेकर आओ।’’
रामू की माँ दौड़ कर गई तुरन्त दूध देकर लेकर आ गयी।
महात्मा जी ने दूध का गिलास तीन बार रामू के ऊपर घुमाया। फिर कहा,‘‘ बच्चा आपका जीवित हो जाएगा। परन्तु जो इस दूध को पीएगा, वह मर जाएगा और रामू जीवित हो जाएँगा।’’
रामू के पिता ने उसकी माँ से कहा,‘‘रामू की माँ! तू ही क्यूँ नहीं पी लेती? वैस भी अब तुमसे काम-धाम तो होता नहीं।’’
रामू की माँ ने भौंहे चढ़ाकर कहा,‘‘ तुम ही कौन-से पत्थर तोड़ते हो? तुम ही क्यूँ नहीं पी लेते? तभी वह दोनों रामू की पत्नी के पास जाकर बोले,‘‘ बेटी! तुम ही हमारे बिखरते हुए घर को बचा सकती हो। बेटी! तुम इस दूध को पी लो, तुम्हारा नाम हो जाएगा। सब कहेंगे अपनी जान देकर अपने पति को बचा लिया। पत्नी हो तो तुम्हारे जैसी। हम दोनों अपने बेटे की जिन्दगी की तुम से भीख माँगते हैं। ’’
रामू की पत्नी गुस्से में बिगड़ते हुए बोली,‘‘अच्छा, तो तुम दोनों मुझे ही बलि का बकरा बनाना चाहते हो? मैं क्यूँ मरुँ? मुझे तो अभी बहुत कुछ देखना बाकी है।’’ उसने झटके से अपना मुँह फेर लिया। तब बाबा बोले,‘‘ ठीक है, अब मैं ही इस दूध को पी लेता हूँ।’’ महात्मा जी ने पलभर में दूध का गिलास खाली कर दिया। रामू से कहा,‘‘ रामू! उठ जाओ।’’ रामू जैसे ही उठा, वैसे ही उसके माता-पिता और पत्नी उसकी ओर लपके। रामू जोर से चिल्लाया, ‘‘दूर हट जाओ,मेरा कोई भी नहीं। मैंने तुम सभी को कितना चाहा। तुम तीनों तो कहते थे, कि मुझे कुछ हो गया, तो हम जीवित नहीं रह पाएँगे। क्या तुम सभी का यही प्यार था ? मैं तुम सब से नफरत करता हूँ। मेरा कोई नहीं। मेरा कोई नहीं……….’’ यह कहकर रामू सिसक-सिसक कर रोने लगा।
महात्मा जी ने रामू के सिर पर हाथ फेरते हुए,‘‘ अब चुप हो जाओ, रामू! ये सभी तुम्हारे हैं। अभी तुमने जो कुछ देखा, उसमें न दोश तुम्हारा है और न ही इनका। यह तो प्रभु ने ही बनाया है। मनुष्य मुँह से कुछ भी बोलता है, जैसे मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह पाऊँगा। तुम्हें कुछ हो गया, तो मैं अपनी जान दे दूँगा। मगर वक्त आने पर वह ऐसा कुछ नहीं करता। सच बात तो यह है कि मनुष्य ही क्या हर जीव अपने प्राणों से अधिक मोह किसी और से नहीं करता। अब गलत ख्याल अपने दिमाग से निकाल दो। ये सभी तुम्हारे अपने हैं।’’ रामू ने छुक महात्मा जी के चरण स्पर्ष करते हुए,‘‘ बाबा जी आपने मेरी आँखें खोल दीं। आज इन तीनों की जगह अगर मैं भी होता, तो यही करता, जो इन्होंने किया। आज वाकई मुझे पूर्ण विश्वास हो गया, मनुष्य प्राणों से ही मोह करता है। बाबा जी! मैं कल आपके साथ काशी चलूँगा। रामू ने एक फिर महात्मा जी के पाँव छूए। फिर वह काशी जाने की तैयारी में जुट गया।
सम्पर्क-अनीता सिंह गली न.2 लोधीपुरम,पीपल अण्डा,सहावर रोड,एटा-2070013,उ.

जरूरी है जमातियों के मंसूबों की जाँच
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनो जब कोरोना विषाणु से देश और दुनियाभर के देषों में महामारी लगातार फैल रही है, उससे संक्रमित होकर लोग हजारों की तादाद में बेमौत मार रहे हैं। इस कारण विश्वभर में त्राहि-त्राहि मची है। इसे लेकर दुनियाभर के मुल्क उससे अपने लोगों की जान बचाने में लगे हैं, ऐसे भयावह हालात में दिल्ली के निजामुद्दीन तब्लीगी मरकज के कर्Ÿााधर्Ÿाा मौलाना मोहम्मद साद ने जिस तरह देश के सभी कानून को धता बताते हुए दो हजार से अधिक देशी और कई सौ विदेशी जमातियों का जमावाड़ा किया, वह कोई अनजाने में की गई भूल नहीं, बल्कि सुविचारित नीति के तहत इस मौलाना और इन जमातियों ने देश के कानून और सरकार को खुले-ए-आम चुनौती दी, यहाँ तक कि वह पुलिस के निदेशों की बराबर अवहेलना करते रहे। फिर अपने खिलाफ मुकदमा दर्जे होते ही गायब हो गए। इससे उनकी मंशा और इरादों का अन्दाज लगाना मुश्किल नहीं। इससे यह भी जाहिर होता है कि ये वे लोग हैं, जो इस मुल्क के कानून से अपने मजहब और शरीयत को ऊपर मानते आए हैं जो यहाँ और पूरी दुनिया के विभिन्न मुल्कों को ‘दारूल हरब’ से उन्हें ‘दारूल इस्लाम’ तब्दील करने का महज ख्वाब नहीं देख रहा, इसके लिए अपनी पूरी ताकत से जीन-जान से जुटा है। यह तब्लीगी जमात कहने को अपने को मजहबी इल्म देने की बात करती है, पर असल में इसकी शिक्षा का इस्लाम की सबसे पाक पुस्तक ‘कुरान’ से भी कुछ खास लेना-देना नहीं है। अगर हकीकत में ये इस्लाम के सच्चे मुजाहिद होते, तो क्या दुनिया भर के लोगों के लिए बेमौत मारने की वजह बनते ? ऐसे में इनके मंसूबों की गहन जाँच बहुत जरूरी है, जिनकी अब तक की हरकतों से पूरे देष में कोरोना विषाणु का संक्रमण फैलाने का सन्देह होता है। इतना ही नहीं, तब्लीगी जमात का इस्लामी दहशतगर्द संगठनों से जुड़ाव का पुराना इतिहास रहा है। वैश्विक संगठन तब्लीगी जमात का पाकिस्तान स्थित प्रतिबन्धित दहशतगर्द संगठन ‘हरकत -उल-मुजाहिदीन से जुड़ाव का पुराना इतिहास रहा है, जो ‘हरकत-उल-जिहाद अल इस्लामी’(हूजी) से अलग होकर सन् 1985 में गठित हुआ था, इसने अफगानिस्तान से तत्कालीन सोवियत संघ गठबन्धन की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए पाकिस्तान समर्थक जिहाद में भाग लिया था। तब्लीगी जमात की पाकिस्तान और बांग्लादेश स्थित शाखाओं में हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल जिहाद अल इस्लामी,लश्कर-ए-तयैबा, जैश-ए-मुहम्मद जैसे संगठन का जुड़ाव बना रहा है।
इस मरकज से 2363 जमातियों को निकालने में पुलिस को पूरे 36 घण्टे लगे। इन जमातियों में से बड़ी संख्या में लोग ‘कोरोना विषाणु’ संक्रमित पाए गए, जिन्हें विभिन्न अस्पतालों और दूसरी जगहों पर जाँच और इलाज के लिए रखा गया। यहाँ से निकले से कोराना संक्रमित जमातियों की देश के विभिन्न राज्यों में मौतें भी र्हुइं और उनसे बहुत सारे दूसरे लोग संक्रमित भी हुए हैं। अपने को अल्लाह का सच्चा बन्दा बताने वाले इन जमातियों की तलाश में गए पुलिसकर्मियों पर इन्होंने कहीं पत्थर-गोलियाँ बरसायी हैं, तो कहीं इनके इलाज में लगे डॉक्टरों पर थूक कर/गाली-गलौज कर और नर्सों के साथ बदसलूकी की गई है। यहाँ तक कि गाजियाबाद में ये लोग नर्सों के साथ अश्लील हरकतें करने से भी बाज नहीं आए। उ.प्र.के मुजफ्फरनगर, रामपुर, अलीगढ़, शामली, बिजनौर, म.प्र. के इन्दौर, बिहार के जहानाबाद, मधुबनी, झारखण्ड के राँची, महाराष्ट्र के मुम्बई के धारावी, अहमद नगर आदि में जमातियों और इनके जैसी जहनीयत/प्रवृत्ति रखने वालों की काली करतूतों से पूरे देश के लोग अच्छी तरह से वाकिफ हैं। ऐसा लगता इन्होंने कोरोना विषाणु के जरिए भारत को तबाह करने की ठान ली है, तभी तो पहले सीएए के नाम पर आम रास्तों पर दिल्ली के शाहीन बाग सरीखे मजमे लगाकर आम लोगों और सरकार को हैरान-परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। साथ ही अजमेर शरीफ दरगाह में 10लोगों की शासन से अनुमति लेकर 100से ज्यादा लोगों को दरगाह के समारोह में शामिल करने से लगता है कि उनकी मानसिकता भी जमातियों से बहुत अलग नहीं है।
इस तब्लीगी जमात के आयोजक मौलाना मोहम्मद साद उच्च शिक्षित हैं, वह कोरोना विषाणु के खतरे से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं, उन्हें से इससे बचाने के लिए देशभर में चलाये जा रहे अभियान की भी जानकारी है। इसके बावजूद इस मौलाना ने न केवल गैरकानूनी तरीके से जमातियों का अपने यहाँ जमावड़ा किया, बल्कि उसमें अपनी तकरीरों से जमातियों और बाकी मुसलमानों में सरकार के खिलाफ यह कहकर अविश्वास फैलाने/भरमाने की कोशिश की, वह ‘कोरोना’ के बहाने उन्हें मस्जिद में नमाज पढ़ने से रोकने की साजिश कर रही है। मस्जिद में सामूहिक रूप से नमाज पढ़ने से कोरोना का असर नहीं होता। अगर इससे मौत आती भी है, तो मस्जिद में मौत होने से अच्छी क्या बात हो सकती है ? कोराना के मामले में मुसलमानों को सिर्फ उन मुसलमानों डॉक्टरों की सलाह माननी चाहिए, जो मस्जिद में सामूहिक नमाज पढ़ने से रोकने की मनाही न करता हो। हालाँकि अब मौलाना मोहम्मद साद अपनी बात से पलट कर डॉक्टरों से इलाज की सलाह दे रहे हैं। तब्लीग जमात सुन्नी मुसलमानों का ऐसा संगठन है, जो चाहता है कि दुनिया भर के मुसलमान वैसे ही रहें जैसे कि पैगम्बर मुहम्मद साहब के समय में रहते थे। माना जाता है कि इस जमात के दुनिया भर में कोई 20 करोड़ सदस्य हैं। सन् 1927 में गठित इस संगठन का मजबूत गढ़ दक्षिण एशिया है, लेकिन करीब सौ से ज्यादा देशों में इसकी पहुँच बताई जाती है। इसकी स्थापना भारत के हरियाणा के मेवात में मुहम्मद इलियास अल कन्धालवी ने की थी। तब्लीगी जमात के छह सिद्धान्त हैं-कलमा, सलाह, इल्म ओ जिक्र, इकराम-ओ-मुस्लिम, इखलाक-ए-नीयत और दवात ओ तब्लीगी। इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है। इससे विदेश
तक लोग जुड़े हुए हैं। दिल्ली में तब्लीगी जमात का सम्मेलन 13 से 15 मार्च के बीच हुआ, जिसमें दो हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे। इनमें 700से 800 तक विदेशी नागरिक थे, जो पर्यटक वीजा लेकर आए थे। उनका मजहबी सम्मेलन में हिस्सा लेना गैरकानूनी था। इसके लिए उन्हें कान्फ्रेंस वीजा लेना चाहिए था। पाकिस्तान में 11 मार्च से 15 मार्च तक तब्लीगी जमात का बहुत बड़ा जलसा हुआ, जिसमें तकरीबन ढाई लाख लोगों ने हिस्सा लिया, पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त की सरकार ने ‘कोरोना’ के बजाए खराब मौसम की वजह से यह जलसा न करने की सलाह दी थी, फिर भी इसका आयोजन किया गया। अब पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण के मरीजो की संख्या 1400 से ज्यादा हो गई है। इसमें हिस्सा लेकर लौटे दो फलस्तीनियों में कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है। ट्यूनिसिया, कुवैत जैसे मुल्क पिछले कुछ दिनों से कोरोना वायरस के संक्रमण के तार जमात के लाहौर के जलसे से जुड़े हुए है। पाकिस्तान की तरह मलेशिया में ही इस जमात का एक जलसा हुआ। इसमें सोलह हजार लोग शामिल हुए। इनमें बु्रनेई, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया समेत छह दक्षिणी पूर्वी मुल्कों में कोरोना वायरस का प्रसार हुआ है। यही वजह है कि तब्लीगी जमात समूचे एशिया में कोरोना फैलाने वाला सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है। उन्होंने ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी कोरोना के खतरे को नजरअन्दाज करते हुए वहाँ भी सम्मेलन किया, जिसकी वजह सेे वहाँ कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। अब वहाँ 42 हजार जमातियों की तलाश में 52,000 पुलिसकर्मी लगे हुए हैं।
तब्लीग जमात का कथित मकसद और उसकी प्रसांगिकता भी विचारणीय है, इनके जरिए दुनिया और इन्सानों को कितना भला होगा, वह इनकी गतिविधियों से ही स्पष्ट है। हैरानी की बात यह है कि तब्लीगी जमात के इतने खतरनाक इरादे जानते हुए अब देश में इसकी गहन जाँच की बहुत जरूरी है, ताकि देश को भविष्य में इनकी विध्वंसक गतिविधियों से बचा जा सके।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार 63ब,गाँधीनगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
कौन हैं ये अपनी, कौम और मुल्क के दुश्मन
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
‘कोरोना विषाणु’ से उत्पन्न महामारी से बचाने के लिए देश में लॉक डाउन किये दो हफ्ते से अधिक समय हो गया और इससे संक्रमितों के सात हजार से अधिक पहुँच गई है और दो सौ से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी हैै। फिर भी पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और म.प्र.के होशंगाबाद की मस्जिदों में जुम्म (10 अप्रैल)े की नमाज के लिए बड़ी संख्या में नमाजियों को जुटना यह साबित करता है कि उन्हें न तो कोरोना से फैल रही महामारी की फिक्र है और न देश के कानून और सरकारी आदेशों की। वर्तमान में समाचारों तथा सूचनाओं के विभिन्न संचार माध्यमों के रहते हुए यह सम्भव नहीं कि उन्हें बड़ी तादाद में एक जगह भीड़ जुटने और जुटाने के नतीजों को न जानते हों। दिल्ली के निजामुद्दीन के तब्लीग मरकज से निकाले गए जमातियों की वजह से आज पूरे मुल्क में कोरोना संक्रमितों की संख्या बहुत तेजी से बड़ी और उनके कारण लगातार बढ़ भी रही है। इतना ही नहीं, जहाँ-जहाँ इन जमातियों को क्वारण्टाइन या इलाज के लिए रखा गया है, उनमें से बहुत से अस्पतालों या क्वारनटाइन शिविरों में चिकित्सकों, महिला चिकित्साकर्मियों से बदतमीजी, गाली-गलौज, हाथापाई, अश्लील हरकतें, उन पर थूकने, भागने, खुले में शौच करने, सामूहिक रूप से नमाज पढ़ने से रोकने पर पुलिसकर्मियों पर हमला कर घायल करने,उन पर गोली चलाने, अस्पतालों में मनपसन्द खाने आदि की माँग को लेकर लड़ाई- झगड़े की वारदातें की हैं। जमातियों के ऐसे बर्ताव से यह कतई नजर नहीं आता कि हकीकत ये अपने मजहब के सच्चे मुजाहिद हैं।
वैसे उनकी इस जहालत पर हैरान-परेशान होने की जरूरत नहीं, क्यों कि ये जमाती जिस तब्लीग मरकज से जुड़े हैं, उसका मौलाना मोहम्मद साद खुद अपनी तकरीर में कहता था कि सरकार हमें एक साथ नमाज पढ़ने से रोकने साजिश कर रही है। फिर मौत के लिए मस्जिद से बेहतर कौन-सी जगह हो सकती है। यहाँ तक कि उसने चिकित्सकों से अपना इलाज कराने से भी मना किया था। ऐसे में उससे जुड़े जमातियों की जहालत पर सवाल उठाना ही बेकार है। वैसे अपने मजहब के मुजाहिदों का जमातियों के कोरोना से संक्रमित होकर बेमौत मरने वालों को देखकर यह यकीन कर लेना चाहिए कि महामारी का यह विषाणु न किसी का मजहब देखता है, न जाति-सम्प्रदाय या अमीरी-गरीबी। इसलिए उनके लिए ‘सामाजिक दूर बनाते हुए अपने घरों में साफ-सफाई से रखने ही उनके बेहतर ही नहीं, उनकी जान बचाने का एकमात्र तरीका है।
वैसे जब पूरा देश ‘कोरोना विषाणु’ जैसे से उत्पन्न महामारी से बचाने के लिए जंग लड़ रहा है, जिसका न कोई टीका (वैक्सीन) और औषधि /दवा (मेडिसीन) ही, वहीं चन्द लोग देश के विभिन्न नगरांे में उसे हर तरह से नाकाम करने में बड़ी बेशर्मी से अब भी जुटे हुए हैं। ये लोग इस रोग से बचने के लिए एक ओर सरकार और चिकित्सकों द्वारा बताये गए निर्देशों जैसे ‘सामाजिक दूरी’ (सोशल डिस्टेंसिग) आदि का पालन नहीं कर रहे है, वहीं दूसरी ओर इनके नेता बयानों तथा युवा ‘सोशल मीडिया’ के जरिए न सिर्फ सरकारी एवं चिकित्सकों के निर्देशों को इस्लाम के खिलाफ बताते हुए उन्हें न मानने, तरह-तरह की अफवाहें फैलाने के साथ-साथ इसकी रोकथाम में लगे पुलिसकर्मियों तथा चिकित्सकों पर हमले भी कर रहे हैं।
‘ये बीमारी नहीं, अल्लाह का अजाव है’, ‘मेरे रब ने ‘एन.आर.सी.’ लागू कर दी है, इसमें कौन मरेगा, कौन रहेगा। मास्क क्यों लगाया हुआ, इससे क्या होगा ?, 5 वक्त नमाज से कुछ नहीं होगा। एक वीडियो में एक युवक 5,00 रुपए के नोट पर नाक – थूक लगा कर दिखा रहा, वह इसके जरिए कोरोना बीमारी फैलाएगा। ऐसे एक-दो नहीं, सैकड़ों वीडियो वायरल हो रहे हैं फिर भी कुछ इस्लामिक रहनुमाओ के सिवाय ज्यादातर चुप्पी ही साधे हुए हैं । इसके बाद भी कुछ सियासी पार्टियों और मजहबी रहनुमा, मुल्ला-मौलवी यहाँ तक जनसंचार माध्यमों (समाचार पत्र,टी.वी.चैनलों) में कार्यरत उनके हिमायतियों ने उल्टे कहना शुरू कर दिया कि उनके मजहब या तब्लीगी मरकज को नाम लेकर खामखा बदनाम किया जा रहा है। सरकार संक्रमितों तथा मृतकों की संख्या में अलग से मरकज के जमातियों की तादाद क्यों दिखायी जा रही है ?
ऐसी विषम हालत में भी पश्चिम बंगाल की तृणमूल काँग्रेस की सरकार ने एक समुदाय को खुश रखने से ‘लॉकडाउन‘ का खुलेआम तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं, उसने ‘शब-ए-बरात’ फूलों और मछली बाजार को खुला रखा। देश में दूसरे इलाकों में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जो सब्जियाँ और दूसरी वस्तुएँ खरीदते समय ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का कतई ख्याल नहीं रखते, क्या ऐसे लोगों यह ख्याल नहीं कि वे जिन परिजनों के लिए यह सब खरीद रहे है, उन्हीं के ‘कोरोना विषाणु’ की महामारी को ले जा रहे हैं। गत 12अप्रैल को पंजाब के पटियाला में पुलिसकर्मियों द्वारा कर्फ्यू पास माँगे जाने पर बेरीकेडिंग तोड़कर भागती कार को रोकने पर उस बैठे निहंगों ने तलवारों से उनपर हमला कर दिया और गुरुद्वारा में घुस गए, जिसमें कई गम्भीर रूप से घायल हो गए हैं।बाद में उन्हें कमाण्डो कार्रवाई तथा एक घण्टे तक गोलीबारी के बाद सात निहंगों को गिरफ्तार किया जा सका। इसी दि नही पंजाब के संगरूर में ही एक बुजुर्ग ने मास्क पहनने की कहने पर पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया। इससे यह स्पष्ट है कि जाहिल, मुल्क और समाज के दुश्मन किसी एक कौम या मजहब के लोग नहीं होते। वैसे इस नाजुक वक्त में भी कुछ सियासत पार्टियाँ अपनी गन्दी सियासत करने से बाज नहीं आ रही हैं, वे कोरोना से बचाव के लिए उठाए कदमों की प्रशंसा तो दूर उनमें तरह-तरह के खोट निकाल कर लोगों को हतोत्साहित करने में जुटी हैं। वह तब जब दुनिया भर विशेष रूप से अमेरिका, ब्रिटेन जैसे विकसित देश भी भारत द्वारा कोरोना विषाणु के खिलाफ लड़ी जा रही जंग की तारीफ करने में कोई कोताई नहीं बरत रहे हैं,जिसके कारण एक अरब 30 करोड़ जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में उनके भोजन, दवा, इलाज आदि की व्यवस्था रखने के साथ विभिन्न प्रकार के प्रतिबन्धों समेत लॉकडाउन के जरिए कोरोना जैसी महामारी को एक सीमा तक थामने में सफल हो रहे हैं। इसकी कामयाबी में हम सभी का हर तरह का सहयोग और सहायता आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। अगर कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही इस जंग में कुछ भी गलत करता है, तो वह खुद अपना, कौम और मुल्क का दुश्मन नही समझा तथा माना जाएगा।
सम्पर्क –
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
63ब,गाँधीनगर,
आगरा-282003
मो.नम्बर-9411684054

कुछ राजनीतिक पार्टी वहाँ

सामूहिक को कह रहे हैं पालन न करने को कह रहे हैं,बल्कि
‘तब्लीग जमात का कथित मकसद और उसकी प्रसांगिकता भी विचारणीय है, इनके जरिए दुनिया और इन्सानों को कितना भला होगा, वह इनकी गतिविधियों से ही स्पष्ट है। हैरानी की बात यह है कि तब्लीगी जमात के इतने खतरनाक इरादे जानते हुए अब देश में इसकी गहन जाँच की बहुत जरूरी है, ताकि देश को भविष्य में इनकी विध्वंसक गतिविधियों से बचा जा सके।

वस्तुतः यह वर्ग मौजूदा केन्द्र सरकार से इस वजह से बेहद नाराज हैं कि उसने उनके एजेण्डे का खत्म करने की हिमाकत कैसे दिखायी? जब यह वर्ग तत्काल तीन तलाक विरोधी अधिनियम, जम्मू-कष्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 तथा 35ए के खत्म किये जाने, सर्वोच्च न्यायालय का श्रीरामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद विवाद फैसला आने पर आम मुसलमान द्वारा इन सभी खुलकर मुखालफत न करने से बेहद हताष-परेषान था। तब उसने नागरिकता संषोधन अधिनियम-2019 के बारे गुमराह करते हुए और उन्हें एनपीआर,एनसीआर का डर दिखाकर उग्र विरोध को ही नहीं,दंगा और हिंसा करने को जमकर उकसाया/भड़काया है।

इस मरकज से 2363जमातियों को निकालने में पुलिस का 36घण्टे लगे। इनमें जमातियों में से बड़ी संख्या में लोग कोरोना सवंमित पाए गए,जिन्हें विभिन्न अस्पतालों और दूसरी जगहों पर जाँच और इलाज के लिए रखा गया। यहाँ से निकले से कोराना संक्रमित जमातियों की देश के विभिन्न राज्यों में मौतें हुई और उनसे बहुत सारे दूसरे लोग भी संक्रमित हुए हैं। अपने को अल्लाह का सच्चा बन्दा बताने वाले इन जमातियों न केवल इनकी तलाष में गए पुलिसकर्मियों पर पत्थर बरसाये है,बल्कि इन इलाज में लगे डॉक्टरों और नर्सों के साथ बदसलूकी की है। यहाँ तक ये नर्सों के साथ अष्लील हरकतें करने से भी बाज नहीं आए। उ.प्र.में मुजफ्फरनगर, रामपुर, अलीगढ़, षमली, बिजनौर, म.प्र.इन्दौर, बिहार में जहानाबाद, मधुबनी, झारखण्ड में राँची, महाराश्ट्र में मुम्बई के धारावी, अहमद नगर आदि में
में यह जताने की कोषिष की
दरअसल, अपने देष में मुसलमानों का एक वर्ग है,जो हमेषा से इस मुल्क सभी कानून से बढ़कर इस्लाम और षरीयत मानता आया है और यहाँ और पूरी दुनिया को ‘दारूल हरब’ से इसे ‘दारूल इस्लाम’तब्दील करने का महज ख्वाब नहीं देख रहा,इसके लिए पूरे तौर से जीन-जान से जुटा है। यह तब्लीगी जमात कहने को अपने को मजहबी इल्म देने की बात करती है,पर असल में इसकी षिक्षा का इस्लाम की सबसे पाक पुस्तक ‘कुरान’से भी कुछ खास लेना-देना नहीं है।
कानून की धज्जियाँ की उड़ाते हुए
तब्लीग जमात सुन्नी मुसलमानों का ऐसा संगठन है,जो चाहता है कि दुनिया भर के मुसलमान वैसे ही रहें जैसे कि पैगम्बर मुहम्मद साहब के समय में रहते थे। माना जाता है िकइस जमात के दुनिया भर में करीब 20करोड़ सदस्य हैं। सन् 1927 में स्थापित इस संगठन का मजबूत गढ़ दक्षिण एषिया है, लेकिन करीब सौ से ज्यादा देषों में इसकी पहुँच बताई जाती है। इसकी स्थापना भारत के हरियाणा के मेवात में मुहम्मद इलियास अल कन्धालवी ने की थी। तब्लीगी जमात के छह सिद्धान्त हैं-कलमा, सलाह, इल्म ओ जिक्र, इकराम ओ मुस्लिम, इखलाक ए नीयत और दवात ओ तब्लीगी। इसका मुख्यालय दिल्लीके निजामुद्दीन इलाके में स्थित है। इससे विदेष तक लोग जुड़े हुए हैं।
को लाहौर में का
क्या है तब्लीग जमात?
‘तब्लीग जमात’ के माने और उसका इतिहास – यह अरबी जुबान/भाषा के दो लफ्जों(शब्दों) ‘तब्लीग’ और ‘जमात’ से मिलकर बना है। ‘तब्लीग’ का मतलब/माने मजहब के प्रचारक, मजहब को फैलाने/प्रचार-प्रसार में दुनियादारी से कोई वास्ता नहीं रह जाता है। इस तरह ‘तब्लीगी’से मतलब मजहब का प्रचार करने वाली जमात यानी समूह से जुड़ा आदमी।ऐसे ही ‘जमात‘ लफ्ज के माने/मतलब/शाब्दिक अर्थ- कक्षा,श्रेणी, समुदाय, वर्ग है,पर यहाँ से मतलब किसी खास मकसद के लिए जमा होना है। इसमें तलबगार/’इच्छुक लोग कुछ वक्त के लिए खुद को पूरी तरह तब्लीग के सुपुर्द हो जाते हैं।
जमात के उसूल(सिद्धान्त)-
1. ‘ईमान‘ यानी अल्लाह पर पूरा भरोसा/यकीन। 2. नमाज पढ़ना। 3.इकराम-ए-मुस्लिम यानी एक-दूसरे की इज्जत (सम्मान) करना। 4. नीयत का साफ होना। 5. रोजाना के कामों से दूर रखना। 6.इल्म का जिक्र।
तब्लीगी जमात की शुरुआत-

उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जिलों में स्थित कान्धला(शामली), जलालाबाद, देवबन्द, गंगोह(सहारनपुर) इस्लामी विचारधारा के बड़े केन्द्र हैं। यहाँ के इस्लामिक मजहबी रहनुमा(धर्मगुरुओं) की मुस्लिम मुल्कों में बहुत ज्यादा मान्यता है। उ.प्र.के शामली जनपद के कान्धला के इस्लामिक गुरु मौलाना मुजफ्फर हुसैन का नाम इस्लामिक दुनिया में बड़े अदब से लिए जाने के साथ उन्हें बड़ें इस्लामिक विद्वानों में शुमार किया जाता है। अट्ठाहरवीं सदी यानी सन्1838 में मौलाना मुजफ्फर हुसैन ने कान्धला स्थित अपने घर से की और इसे ही जमात का मरकज भी बनाया। उस वक्त मुगल सल्तनत के खत्म होने और देश मंे इस्लाम से वापसी की विचारधारा शुरुआत हो रही थी।यहीं से उन्होंने 42 साल तक जमात चलायी। सन् 1880 में उनका इन्तकाल हो गया।उसके बाद मुजफ्फर हुसैन के बेटे मौलाना इस्माइल ने जमात को आगे बढ़ाया। उसने बड़ी तादाद में मस्जिदें,मदरसे स्थापित करने शुरू कर दिये। सन् 1927 में मोलाना इलियास ने जमात को बाकायदा अमलीजामा पहनाया।इस तरह जमात पूरे मुल्क में फैल गई।

उनकी सरपरस्ती में बड़ी तादाद में लोग खुदगर्जी से दूर होकर तब्लीग जमात की खिदमत में जुड़ गए। उस वक्त मौलाना अशरफ उल थानवी की सलाह पर इलियास कान्धलवी ने कौम के इल्मी(शिक्षित/पढ़े-लिखे) लोगों को जोड़ा। इस सिलसिले में मौलाना अली मियां नदवी और मौलाना मंजूर नौमानी जैसी अजीम शख्सियत निजामुद्दीन मरकज से जुड़ गई। मौलाना इलियास के इन्तकाल के बाद इस पर खानदान(परिवारवाद) तारी हो गया। मौलाना के खानदानियों ने उनके बेटे मौलाना युसुफ को जमात का ‘अमीर’(प्रमुख)बना दिया।इसके बाद मौलाना अली मियां नदवी और मौलाना मंजूर नौमानी मरकज छोड़कर लखनऊ आ गए। मौलाना युसुफ ने जमात के काम को बहुत ज्यादा फैलाया। इस काम में मौलाना रहमतुल्लाह उनके हमकदम( बराबर के सहयोगी)बने रहे।ै
मौलाना युसुफ के इन्तकाल के बाद मौलाना रहमतुल्ला जमात के अमीर बनने के असल हकदार थे,पर खानदान का न होने की वजह से उन्हें तवज्जो नहीं दी गई। उस वक्त इस बात को लेकर विवाद हुआ,तो मौलाना युसुफ के ससुर और फजाइले आमाल के लेखक शेखउल हदीस मौलाना मोहम्मद जिकारिया ने अपने दूसरे दामाद इमानुल हसन को जमात का ‘अमीर’ बना दिया। इस तरह अमीरियत फिर से खानदान में ही रह गई। मौलाना रहमतुल्ला मरकज से चले गए।
शूरा समिति का गठन
मौलाना इमानुल हसन ने जमात में जम्हूरियत सिस्टम(लोकतांत्रिक व्यवस्था) कायम करने के लिए मकसद से 13सदस्यीय शूर समिति का गठित की,ताकि किसी तरह का नाइंसाफी न हो सके। मौलाना इमानुल हसन के इन्तकाल के बाद अमीर बनने को लेकर खानदान में विवाद शुरू हो गया,किन्तु इसके लिए बीच का रास्ता निकाला गया। इसके तहत इनामुल हसन के भाई मौलाना इजहार उल हसन ,बेटे मौलाना जुबैर, मौलाना मोहम्मद साद और मेवात निवासी नियाजी मेहराब जमात का काम मिल-जुलकर देखने लगे। इसके अलावा मौलाना अहमद लाट और मौलाना इब्राहिम भी खिदमात को अंजाम देते रहे। ये दोनों मौलाना साद के उस्ताद भी हैं। बताते हैं कि इन बुजुर्गों का इतना अहतराम था कि इज्तिमा में मौलाना अहमद लाट का खास बयान होता था और दुआ इनामुल हसन कराते थे।
मौलाना साद की हठधार्मिता
मौलाना इजहार उल हसन ,मौलाना जुबैर और मेहराब के इन्तकाल के बाद जमात में अमीर बनने को लेकर फिर विवाद शुरू हो गया। मौलाना साद की नीयत में फर्क आ गया।
पाकिस्तान के रायविण्ड शहर में तब्लीगी जमात का सलाना जलसा आयोजित किया गया।इसमें भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश समेत देशों के उलमा इकराम ने शिरकत की। इसमें जमात के अमीर बनने का मुद्दा उठाया गया। जलसे में मौलाना साद हठधर्मिता दिखाते हुए खुद को जमात का अमीर होने का ऐलान कर दिया। इसे लेकर वहाँ हंगामे की हालत पैदा हो गए। तमाम बुजुर्गाने दीन ने काफी लानत-मलामत दी, लेकिन मौलाना साद टस से मस नहीं हुए। शूर समेत सभी आलिमों की राय को दरकिनार कर दिया। जमात में खातूनों (महिलाओं) की शिरकत की इजाजत देने को लेकर भी मौलाना साद विवादों में रहे।
जमात की टूट
मौलाना साद के अमीर बनने के बाद मौलाना अहमद लाट ,मौलाना इब्राहिम, मौलाना जुहैर और मौलाना याकूब मरकज से अलग हो गए और दिल्ली में ही तुर्कमान गेट स्थित मस्जिद फैज-ए-इलाही में अलग से जमात का गठन कर दिया। फिलहाल, ये आलिम अलग से अपनी जमात चला रहे हैं।
दारुल उलूम में जमात की गतिविधियों पर लगी थीं पाबन्दी
दारुल उलूम कुरआन और हदीस की गलत व्याख्या करने के कारण मौलाना साद से इस कदर खफा था कि दारुल उलूम संस्था के भीतर और बाहर तब्लीगी जमात की सभी गतिविधियों पर पाबन्दी लगा दी थी। संस्था ने इस बाबत बयान जारी कर दिया था। मोहतमिम ने सख्त रुख अपनाते हुए यहाँ तक कहा था कि दोनों जमातों से दारुल उलूम का कोई ताल्लुक नहीं है। अगर कोई छात्र जमात की गतिविधियों में संलिप्त पाया गया,तो उसके खिलाफ कार्रवाई अमल मंे लायी जाएगी। ()भारत लेकर खानदान
मौलाना करोड़ांे लोग इससे जुड़ गए, लेकिन मौलाना के इन्तकाल के बाद जमात पर परिवारवाद हावी हो गया। मौलाना साद ने तो इन्तिहा ही कर दी। उन्होंने तमाम बुजुर्गा ने दीन का दरकिनार कर खुद को जमात का ‘हाफिज’/अमीर घोषित कर दिया। नतीजतन, तब्लीगी जमात अपने मूल मकसद से ही भटक गई। जानकारों का मानना है कि फिलवक्त जमात के कुप्रबन्धन और हठधार्मिता के कारण ही कोरोना वायरस प्रकरण को लेकर जिल्लत झेलनी पड़ रही है।
तब्लीगी जमात का आतंकवादी संगठनों से जुड़ाव का पुराना इतिहास
इस्लामी मिशनरियों के वैश्विक संगठन तब्लीगी जमात का पाकिस्तान स्थित प्रतिबन्धित आतंकवादी संगठन‘ ‘हरकत-उल-मुजाहिदीन (एचयूएम) से जुड़ाव का इतिहास पुराना है। भारतीय जाँचकर्ताओं और पाकिस्तानी विश्लेषकों के अनुसार ‘हरकत-उल-मुजाहिदीन’ के मूल संस्थापक तब्लीगी जमात के सदस्य थे।
हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी(हूजी)से टूटकर सन् 1985 में बने ‘हरकत-उल-मुजाहिदीन’ ने अफगानिस्तान से तत्कालीन सोवियत संघ गठबन्धन की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए पाकिस्तान समर्थक जिहाद में भी हिस्सा लिया था। खुफिया अनुमानों के मुताबिक छह हजार से ज्यादा तब्लीगियों को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी शिविरों में प्रशिक्षित किया गया था। अफगानिस्तान में सोवियत संघ की हार के बाद ‘हरकत-उल-मुजाहिदीन’ और हूजी कश्मीर में सक्रिय हो गए थे और उन्होंने सैकड़ों बेगुनाहों नागरिकों की हत्या की। हरकत-उल-मुजाहिदीन के सदस्य बाद में मसूद अजहर के नेतृत्व में बने आतंकवादी संगठन‘ ‘जैश-ए-मुहम्मद’ में शामिल हो गए। गोधरा में कारसेवकों को जिन्दा जलाने में तब्लीगी जमात पर सन्देह जताया गया थां भारतीय गुप्तचर अधिकारी और सुरक्षा विशेषज्ञ बी.रमन अपने एक लेख में लिखा था कि तब्लीगी जमात की पाकिस्तान और बांग्लादेश स्थित शाखाओं के हरकत-उल-मुजाहिदीन ,हरकत-उल-जिहाद अल इस्लामी, लश्कर -ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ जुड़ाव को लेकर समय-समय ध्यान जाता रहा था। रमन ने इस बात का खास तौर पर उल्लेख किया था कि हरकत-उल-मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठनों के सदस्य खुद को तब्लीगी जमात का प्रचारक दर्शाकर वीजा हासिल करते थे और विदेश जाकर पाकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण के लिए मुस्लिम युवाओं की भर्ती करते थे।जमात ने चेचेन्या, रूस के दागिस्तान क्षेत्र, सोमालिया और कुछ अफ्रीकी देशों में बड़ी संख्या में समर्थक तैयार कर लिए थे। इन सभी देशों की खुफिया एजेन्सियों को सन्देह था कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन अलग-अलग देशों के मुस्लिम समुदायों में स्लीपर सेल तैयार करने के लिए इन प्रचारकों का इस्तेमाल कर रहे थे।
तब्लीगी जमात का असल मकसद-

यह जमात सौ साल से ज्यादा पुरानी है, लेकिन कभी किसी ने इसके खतरनाक इरादों पर गौर फरमाने की जरूरत महसूस नहीं की। यहाँ तक कि महात्मा गाँधी भी इसके मकसद से बेखबर थे और अनजाने में उसको मुसलमानों में भरोसेमन्द जमात की पहचान दिलाने में मददगार भी बन गए।इस जमात का असल मकसद एकदम साफ है। वह इस मुल्क के मुसलमानों को ‘पक्का मुसलमान’ बनाने की गरज उनके दिमाग की धुलाई कर (ब्रेनवॉश) उन्हें अपने हिन्दू पुराखों और उनके हर तरह आचार-विचार से जुदा करना है। एक तरह से उनकी हिन्दुस्तानी जड़ों को उखाड़ कर उन्हें उनसे दूर करना ही नहीं, हमेशा-हमेशा के लिए उनका खात्मा कर नई पहचान देकर कथित ‘नया इन्सान’ (कट्टरपंथी मजहबी)या ‘शरीयत पाबन्द बनाना चाहते हैं। नयी पहचान देने के लिए उनका लिवास/पोशाक, उनका खान-पान ही नहीं, जुबान/भाषा, उनका नजरिया/सोच-विचार,मान्यताएँॅ/आस्थाएँ आदि सबकुछ बदल देना है। दरअसल, कुछ कट्टरपन्थियों को मुसलमानों का हिन्दुओं से बहुत ज्यादा मेलजोल गंवारा नहीं था,वे इसके सख्त खिलाफ थे। इसे वे हमेशा अपने मजहब के लिए खतरे के तौर पर देखते थे। उन्हें अपनी कौम/मजहब के लिए सबसे बड़ा खतरा उनको हममजहबियों का अपने पुरखों के मजहब और उनके तमाम रीति-रिवाजों से लगाव-जुड़ाव बने रहना था। इनमें से कुछ का गोमांस ना खाना,नजदीकी रिश्तों- चचेरी, ममेरी, फुफेरी बहनों से निकाह न करना, कड़ा, कुण्डल,मुसलमान खातूनों/औरतों के लिवास भी हिन्दू स्त्रियों जैसे पहनने साथ-साथ निकाह और दूसरे मौकों पर ज्यादातर हिन्दू रीति-रिवाज को अपनाना। खासतौर पर ऐसा दिल्ली के निकटवर्ती इलाकों, मेवात के अलवर, नूहँ आदि। यहाँ तक कि इनमें कुछ चूटिया और हिन्दुओं जैसे नाम भी रखते थे और हिन्दुओं के त्योहार मनाते थे या फिर हिन्दुओं के साथ उनमें बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे। उनकी भाषा-बोली,खान-पान,लिवास हिन्दुओं बहुत ज्यादा अल्हदा नहीं था। ग्रामीण इलाकों में कुछ मुसलमान ‘कलमा’ तक पढ़ना तक नहीं जानते थे। मौलाना मोहम्मद इलियासी इन्हें ‘गैर इस्लामिक’ मानते थे और इसे वह ‘बुरा असर से अलग करना’ कहते थे। इन वजहों कट्टरपन्थी मुसलमान रहनुमाओं को कहीं न कहीं उनकी मजहब वापसी का खतरा नजर आना था। एक वक्त इस खतरे को आर्य समाज के शुद्धिकरण अभियान ने और बढ़ा दिया, जिसके अन्तर्गत आर्य समाज मुसलमानों पुनः हिन्दू बनाने की कोशिश कर रहे थे। देश में कुछ जगह पर ऐसा हो भी गया। यह सब देखकर मौलाना इलियास कान्धलवी को बहुत तकलीफ और रंज होता था। उन्हें इसमें हिन्दुस्तान में इस्लाम के खत्म होने के आसार नजर आ रहे थे। यह देखते हुए मौलाना मोहम्मद इलियास मुसलमानों को बाकी हिन्दुओं से एकदम अलग करना चाहता था,ताकि मुसलमान किस भी तरह से हिन्दुओं के प्रभाव में न आए।उन्हें दूर से देखकर ही पहचाना जाना सके या उनमें फर्क नजर आए।
इसी मकसद को लेकर अट्ठाहरवीं सदी यानी सन् 1838 में मौलाना मुजफ्फर हुसैन ने अपने कान्धला स्थित घर से ही जमात का आगाज किया और उसे ही जमात का मरकज बनाया, जब मुगल सल्तनत के खत्म होने और देश मंे इस्लाम से वापसी का दौर का खतरा बढ़ रहा था। इसे उन्होंने 42 साल तक कान्धला से ही चलाया। जब सन् 1880 में उनका इन्तकाल हो गया, तब उनका बेटे मौलाना इस्माइल ने जमात का संचालन किया। इसने देश में जगह-जगह मस्जिदें और मदरसे तामीर किये,जहाँ दीनी/शरीयत तालीम दी जाती थी। फिर सन् 1927 में मौलाना इलियास ने जमात को बाकायदा अमलीजामा पहनाते हुए पूरे मुल्क में इसे फैलाया। उनकी सरपरस्ती में बड़ी तादाद में लोग खुदगर्जी से दूर होकर तब्लीग जमात की खिदमत में जुड़ गए। मौलाना इलियास के इन्तकाल के बाद इस पर खानदान(परिवारवाद) तारी हो गया। मौलाना के खानदानियों ने उनके बेटे मौलाना युसुफ को जमात का ‘अमीर’(प्रमुख)बना दिया। मौलाना युसुफ ने जमात के काम को बहुत ज्यादा फैलाया। मौलाना युसुफ के इन्तकाल के बाद उनके ससुर और फजाइले आमाल के लेखक शेखउल हदीस मौलाना मोहम्मद जिकारिया ने अपने दूसरे दामाद इमानुल हसन को जमात का ‘अमीर’ बना दिया। मौलाना इमानुल हसन ने जमात में जम्हूरियत सिस्टम(लोकतांत्रिक व्यवस्था) कायम करने के लिए मकसद से 13सदस्यीय शूर समिति का गठित की,ताकि किसी तरह का नाइंसाफी न हो सके। मौलाना इमानुल हसन के इन्तकाल के बाद अमीर बनने को लेकर खानदान में विवाद शुरू हो गया,किन्तु इसके लिए बीच का रास्ता निकाला गया। इसके तहत इनामुल हसन के भाई मौलाना इजहार उल हसन ,बेटे मौलाना जुबैर, मौलाना मोहम्मद साद और मेवात निवासी नियाजी मेहराब जमात का काम मिल-जुलकर देखने लगे। मौलाना इजहार उल हसन ,मौलाना जुबैर और मेहराब के इन्तकाल के बाद जमात में अमीर बनने को लेकर फिर विवाद शुरू हो गया। मौलाना साद की नीयत में फर्क आ गया। पाकिस्तान के रायविण्ड शहर में तब्लीगी जमात का सलाना जलसा आयोजित किया गया।इसमें भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश समेत देशों के उलमा इकराम ने शिरकत की। इसमें जमात के अमीर बनने का मुद्दा उठाया गया।
बाद में पाकिस्तान के रायविण्ड शहरी में तब्लीगी जलसे में मौलाना साद हठधर्मिता दिखाते हुए खुद को जमात का अमीर होने का ऐलान कर दिया।
इसे लेकर वहाँ हंगामे की हालत पैदा हो गए। तमाम बुजुर्गाने दीन ने काफी लानत-मलामत दी, लेकिन मौलाना साद टस से मस नहीं हुए। शूर समेत सभी आलिमों की राय को दरकिनार कर दिया। जमात में खातूनों (महिलाओं) की शिरकत की इजाजत देने को लेकर भी मौलाना साद विवादों में रहे।

क्या है तब्लीगी जमात का असल मकसद?
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
पिछले कई माह से जहाँ अपना देश ‘कोरोना विषाणु’ से फैली वैश्विक महामारी से लोगों को बचाने को लेकर रात-दिन जंग सरीखी लड़ रहा है, उसमें हर तबके से सरकार को सहयोग-सहायता भी मिल रही है, वहीं ‘तब्लीगी जमात’ के रहनुमा और उनके जमातियों की हरकतें उनसे एकदम जुदा नजर आती हैं, जो इस महामारी के भारी खतरों को जानते-बूझते हुए भी उससे बचाव में मददगार बनना तो दूर , उसे फैलाते ज्यादा दिखायी दे रहे हैं। इनकी वजह से पूरे मुल्क में कोरोना विषाणु से संक्रमितों की तादाद में भी भारी इजाफा हुआ है,इसके रहनुमा अपनी गलती मानना तो दूर , जहाँ कहीं उन्हें क्वारण्टाइन को रखा गया है, वहाँ स्वास्थ्यकर्मी से गाली-गलौज,नर्सों से अश्लीलता,उन पर थूकना,गन्दगी फैलाना, शौच करना और मारपीट, करने के साथ-वहाँ से भाग कर छिपने की कोशिश करते हैं। जहाँ कहीं पुलिसकर्मी उनकी तलाश को गए, वहाँ उनके साथ इन्होंने मारपीट ही नहीं, उन पर गोलियाँ तक चलायी गई हैं। ऐसा ही नहीं कि जमात से सिर्फ कम शिक्षित लोग ही जुड़े हों, इसमें डॉक्टर और विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भी हैं, जो सरकार के बार-बार कहने के बाद भी खुद निकल कर उपचार को सामने आने के बजाय खुद और दूसरे जमातियों को मस्जिदों और दूसरी जगह में छिपाने में मददगार बने हुए हैं। इसके बाद भी ये जमात और उनके हिमायती सरकार और मीडिया पर उन्हें और मुस्लिम समुदाय को बेवजह बदनाम करने का इल्जाम लगा रहे हैं। आखिर ऐसा क्या है, तब्लीगी जमात के नजरिए में, जो इनसे ऐसी बेजां हरकतें करा रहा है;यह सवाल आज मौजूं है।
‘तब्लीग जमात’ -यह अरबी जुबान/भाषा के दो लफ्जों(शब्दों) ‘तब्लीग’ और ‘जमात’ से मिलकर बना है। ‘तब्लीग’ का मतलब/माने मजहब के प्रचारक, मजहब को फैलाने/प्रचार-प्रसार में लगने वाले,जिनका दुनियादारी से कोई वास्ता नहीं रह जाता है। इस तरह ‘तब्लीगी’से मतलब मजहब का प्रचार करने वाली जमात यानी समूह से जुड़ा आदमी। ऐसे ही ‘जमात‘ लफ्ज के माने/मतलब/शाब्दिक अर्थ- कक्षा, श्रेणी, समुदाय, वर्ग है, पर यहाँ इससे मतलब किसी खास मकसद के लिए जमा होना है। इसमें तलबगार/’इच्छुक लोग कुछ वक्त के लिए खुद को पूरी तरह तब्लीग के सुपुर्द हो जाते हैं। हाल में इनके ‘निजामुद्दीन स्थित तब्लीगी ‘मरकज’का नाम आया। ‘मरकज’ लफ्ज भी अरबी जुबान का है,जिसका मतलब ‘केन्द्र’/मुख्यालय है।
इस तब्लीगी जमात के उसूल(सिद्धान्त) हैं- जैसे 1. ‘ईमान‘ यानी अल्लाह पर पूरा भरोसा/यकीन। 2. नमाज पढ़ना। 3.इकराम-ए-मुस्लिम यानी एक-दूसरे की इज्जत (सम्मान) करना। 4. नीयत का साफ होना। 5. रोजाना के कामों से दूर रखना। 6.इल्म का जिक्र। इनमें कोई खोट नजर नहीं आता, पर इसका असल मकसद इतनाभर नहीं है, खतरा इनके ‘जेहाद’ के जरिए ‘दुनिया को ‘दारुल इस्लाम‘ या ‘खलीफा का शासन’ बनाने के असल मकसद से है।
यह जमात सौ साल से ज्यादा पुरानी है, लेकिन कभी किसी ने इसके खतरनाक इरादों पर गौर फरमाने की जरूरत महसूस नहीं की। यहाँ तक कि महात्मा गाँधी भी इसके मकसद से बेखबर थे और अनजाने में इसे मुसलमानों में भरोसेमन्द जमात की पहचान दिलाने में मददगार भी बन गए। इस जमात का असल मकसद एकदम साफ है। वह इस मुल्क के मुसलमानों को ‘पक्का मुसलमान’ बनाने की गरज उनके दिमाग की धुलाई कर (ब्रेनवॉश) उन्हें उनके हिन्दू पुराखों और उनके हर तरह के आचार-विचार से जुदा करना है। एक तरह से उनकी हिन्दुस्तानी जड़ों को उखाड़ कर उन्हें उनसे दूर करना ही नहीं, हमेशा-हमेशा के लिए उनका खात्मा करना है। यह जमात भारतीय मुसलमानों को नई पहचान देकर कथित ‘नया इन्सान’ (कट्टरपंथी मजहबी)या ‘शरीयत पाबन्द बनाना चाहता है। नयी पहचान देने के लिए उनका लिवास/पोशाक,पहनावा, उनका खान-पान ही नहीं, जुबान/भाषा, उनका नजरिया/सोच-विचार, मान्यताएँॅ/आस्थाएँ आदि सबकुछ बदल देना है। दरअसल, कुछ कट्टरपन्थियों को मुसलमानों का हिन्दुओं से बहुत ज्यादा मेलजोल गंवारा/पसन्द नहीं था, वे इसके सख्त खिलाफ थे। इसे वे हमेशा अपने मजहब के लिए खतरे के तौर पर देखते थे। उन्हें अपनी कौम/मजहब के लिए सबसे बड़ा खतरा उनको हममजहबियों का अपने पुरखों के मजहब और उनके तमाम रीति-रिवाजों से लगाव-जुड़ाव बने रहना था। इनमें से कुछ का गोमांस ना खाना, नजदीकी रिश्तों- चचेरी, ममेरी, फुफेरी बहनों से निकाह न करना, कड़ा, कुण्डल, मुसलमान खातूनों/औरतों के लिवास भी हिन्दू स्त्रियों जैसे पहनावे साथ-साथ निकाह और दूसरे मौकों पर ज्यादातर हिन्दू रीति-रिवाज को अपनाना था। खासतौर पर ऐसा दिल्ली के निकटवर्ती इलाकों, मेवात के अलवर, नूहँ आदि में होता था। यहाँ तक कि इनमें कुछ चूटिया और हिन्दुओं जैसे नाम भी रखते थे। ये हिन्दुओं के त्योहार मनाते थे या फिर हिन्दुओं के साथ उनमें बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे। उनकी भाषा-बोली, खान-पान, लिवास हिन्दुओं से बहुत ज्यादा अल्हदा नहीं थे। ग्रामीण इलाकों में तो कुछ मुसलमान ‘कलमा’ तक पढ़ना तक नहीं जानते थे। मौलाना मोहम्मद इलियासी इन सारी बातों को ‘गैर इस्लामिक’ मानते थे और उन्हें इस ‘बुरा असर से अलग करना’ चाहते थे। इन वजहों कट्टरपन्थी मुसलमान रहनुमाओं को कहीं न कहीं उनकी मजहब वापसी का खतरा नजर आना था। एक वक्त इस खतरे को आर्य समाज के शुद्धिकरण अभियान ने और बढ़ा दिया, जिसके अन्तर्गत आर्य समाज मुसलमानों को पुनः हिन्दू बनाने की कोशिश कर रही थी। देश में कुछ जगहों पर ऐसा हो भी गया। यह सब देखकर मौलाना इलियास कान्धलवी को बहुत तकलीफ और रंज होता था। उन्हें इसमें हिन्दुस्तान में इस्लाम के खत्म होने के आसार नजर आ रहे थे। यह देखते हुए मौलाना मोहम्मद इलियास मुसलमानों को बाकी हिन्दुओं से एकदम अलग करना चाहता था, ताकि मुसलमान किस भी तरह से हिन्दुओं के प्रभाव में न आएँ। उन्हें दूर से देखकर ही पहचाना जाना सके या उनमें फर्क नजर आए। अब किसी जमाती को देखकर यह फर्क उसके खास तरह के ऊँचे पजामे, कुर्ते, टोपी, दाढ़ी,ूमंदे, गमछे से किया जा सकता है।
इसी मकसद को लेकर मौलाना इलियास से पहले अट्ठाहरवीं सदी यानी सन् 1838 में मौलाना मुजफ्फर हुसैन ने अपने कान्धला स्थित घर से ही जमात का आगाज किया और उसे ही जमात का मरकज भी बनाया। जब मुगल सल्तनत के खत्म होने पर इस्लाम का असर कम होने लगा,तब हिन्दू से मुसलमान बने लोगों के फिर से हिन्दू बनने का खतरा बढ़ रहा था। मौलाना मुजफ्फर हुसैन ने जमात को 42 साल तक कान्धला से ही चलाया। जब सन् 1880 में उनका इन्तकाल हो गया, तब उनके बेटे मौलाना इस्माइल ने जमात का संचालन किया। उसने देश में जगह-जगह मस्जिदें और मदरसे तामीर किये, जहाँ दीनी/शरीयत की तालीम दी जाती थी। जब तुर्की का ओटोमन साम्राज्य खत्म हो गया, जो तब इस्लामिक दुनिया का केन्द्र समझा जाता था। यहाँ की सत्ता जब आधुनिक विचारधारा के कमाल पाशा ने सम्हाल ली, तब दुनिया के कट्टरपन्थी मुसलमानों को गहरा धक्का लगा, क्योंकि इससे इस्लामिक दुनिया का कोई ‘खलीफा’ नहीं रहा। इससे विचलित होकर इसके खिलाफ भारत में कुछ कट्टरपन्थियों ने ‘खिलाफत’आन्दोलन शुरू किया। ऐसे में महात्मा गाँधी ने मुसलमानों की राष्ट्रीय आन्दोलन में भागीदारी बढ़ाने की उद्देश्य से उनसे समझौता कर ‘खिलाफत’आन्दोलन में सहयोग देने की घोषणा की। इससे खिलाफत आन्दोलन खासतौर से जमातियों और उसके इस्लामिक कट्टरपन्थियों रहनुमाओं का असर तो बढ़ा, पर इससे राष्ट्रीय आन्दोलन को कोई खास फायदा नहीं हुआ। उसी दौर में आम मुसलमानों को अपने मजहब के प्रति कट्टर बनाने के लिए जमात-ए- उलामा ने सन् 1926 में बैठक कर अलग से ‘तब्लीग’ चलाने का फैसला किया। इसके बाद सन् 1927 में मौलाना इलियास ने जमात को बाकायदा अमलीजामा पहनाते हुए पूरे मुल्क में इसे फैलाया। उनकी सरपरस्ती में बड़ी तादाद में लोग खुदगर्जी से दूर होकर तब्लीग जमात की खिदमत से जुड़ गए। सन् 1927 में आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या होने पर ‘तब्लीग जमात‘ पर उनके कत्ल का आरोप लगा,जो ‘शुद्धि आन्दोलन’ से जुड़े थे।
मौलाना इलियास के इन्तकाल के बाद इस पर खानदान(परिवारवाद) तारी हो गया। मौलाना के खानदानियों ने उनके बेटे मौलाना युसुफ को जमात का ‘अमीर’(प्रमुख)बना दिया। मौलाना युसुफ ने जमात के काम को फैलाने के लिए अपने देश और दूसरे मुल्कों की यात्राएँ कीं। नतीजा अरब और दूसरे मुल्कों के मुसलमान तब्लीग जमात से जुड़ गए। मौलाना युसुफ ने अपने इन्तकाल से तीन साल पहले सन् 1965 में रावलपिण्डी में कहा था,‘‘ उम्मत की स्थापना अपने खानदान, दल, मुल्क, जुबान आदि की अहम कुर्बानियाँ देकर ही हुई थी।याद रखो, ‘मेरा मुल्क’, ‘मेरा इलाका‘, ‘मेरे लोग’ आदि एकता तोड़ने की तरफ जाती है। इन सबको अल्लाह सबसे ज्यादा नामंजूर करता है। मुल्क और दूसरे समूहों के ऊपर इस्लाम की सामूहिकता सर्वोच्च रहनी चाहिए।’’ मौलाना युसुफ के इन्तकाल के बाद उनके ससुर और फजाइले आमाल के लेखक शेखउल हदीस मौलाना मोहम्मद जिकारिया ने अपने दूसरे दामाद इमानुल हसन को जमात का ‘अमीर’ बना दिया। मौलाना इमानुल हसन ने जमात में जम्हूरियत सिस्टम(लोकतांत्रिक व्यवस्था) कायम करने के लिए मकसद से 13सदस्यीय शूर समिति का गठित की,ताकि किसी तरह का नाइंसाफी न हो सके। मौलाना इमानुल हसन के इन्तकाल के बाद अमीर बनने को लेकर खानदान में विवाद शुरू हो गया, किन्तु इसके लिए बीच का रास्ता निकाला गया। इसके तहत इनामुल हसन के भाई मौलाना इजहार उल हसन ,बेटे मौलाना जुबैर मौलाना मोहम्मद साद और मेवात निवासी नियाजी मेहराब जमात का काम मिल-जुलकर देखने लगे। मौलाना इजहार उल हसन ,मौलाना जुबैर और मेहराब के इन्तकाल के बाद जमात में अमीर बनने को लेकर फिर से विवाद शुरू हो गया। मौलाना साद की नीयत में फर्क आ गया। बाद में पाकिस्तान के रायविण्ड शहरी में तब्लीगी जलसे में मौलाना साद हठधर्मिता दिखाते हुए खुद को जमात का अमीर होने का ऐलान कर दिया।
अपने देश में एक खास समुदाय के एकमुश्त वोटों की खातिर कभी ‘तब्लीगी जमात‘ के असल मकसद और उनके कार्यकलापों पर गौर फरमाने की किसी भी सियासी पार्टी की सरकार ने जहमत नहीं उठायी। ज्यादातर लोग तब्लीगी जमात और तब्लीगी मरकज(मुख्यालय)को इस्लामिक तालीम/दीनी शिक्षा देने का केन्द्र समझते हैं। प्रो.बारबरा मेटकाफ के मुताबिक ‘जमात का मॉडल/प्रादर्श शुरुआती इस्लाम है।उसके मुखिया को ‘अमीर’ को ओहदा दिया गया। इसका इशारा है, जो सैनिक -सियासी कमाण्ड/ रहनुमा होता था। उसकी टोलियों की यात्रा कोई शिक्षक दल नहीं, बल्कि गश्ती दस्ते जैसी होती हैं, ताकि किसी इलाके की निगरानी कर उसके हिसाब से रणनीति बनायी जा सके।
अगर अपने देश में भी दंगे-फसादों की असल जड़ का तलाशा जाए,तो सम्भव है,उसके पीछे यही हो। श्रीरामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद ढाँचा ढहाए जाने के बाद सन् 1992-93 में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में कई मन्दिरों पर हमलों में तब्लीगी जमात का हाथ रहा। आज दुनियाभर में आतंकवाद के पीछे तब्लीगी जमात सरीखी जेहादी मानसिकता ही काम कर रही है। अपने देश मंे ज्यादातर सियासी पार्टियाँ ऐसे कट्टरपन्थियों को न केवल बचाव/संरक्षण देते है,बल्कि उन्हें मुल्क का वफादार/वतनपरस्त होने को सार्टिफिकेट भी देते आए है। ऐसा करके अबतक ये सियासी नेता अपने लिए वोटों की जुगाड़ करती आए हैं। इसलिए तब्लीगी जमात और दूसरी मजहबी कट्टरपन्थी संगठनों की असलियत खुलकर सामने नहीं आ पाती। अब समय आ गया है,जब हमें देशहित को सबसे ऊपर मानते हुए ऐसे सभी धर्मो/सम्प्रदायों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने को आगे आना होगा, जो इस देश के लोगों को मजहब, सम्प्रदाय, भाषा, जात-पांत के आधार पर बाँटकर आपस में लड़ाने की कोशिशों में लगे हैं। उनकी सियासत से देश का कितना अहित होगा, इसकी उसे कितनी कीमत चुकानी पड़ती है, तब्लीगी जमात उसका नमूनाभर है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054
अमेरिका के न्यूयार्क के डब्ल्यू.टी.ओ.पर हमले के बाद हुए वैश्विकी
क्या संतों की पाशविक हत्या के कोई माने नहीं ?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
महाराष्ट्र के पालघर जिले के गाँव गढ़चिंचले में जूना अखाड़े के दो निहत्थे साधुओं की उनके कार चालक समेत भीड़ द्वारा पत्थरों और लाठी-डण्डों से पीट-पीट कर जिस बर्बर और निर्मम तरीके से हत्याएँ कीं, उसे उनका पाशविक ,जघन्य अपराध ही कहा जाएगा। वह किसी भी दशा में क्षम्य नहीं है। बताया जा रहा है कि इस भीड़ में शामिल लोगों ने उन्हें ‘बच्चा चोर’ होने के सन्देह में मारा है, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या उस भीड़ ने उन साधुओं के ‘भगवा वस्त्रों’ और एक सन्त की वृद्धावस्था पर ध्यान दिया? अगर दिया,तो फिर उन्हें किस आधार पर बच्चा चोर मान लिया? फिर रात में ये साधु किसका बच्चा कैसे चुरा सकते थे? क्या उस समय ये सन्त बगैर किसी हथियार के आदिवासियों के घरों में घुस कर अपने स्वजनों के साथ सो रहे बच्चों को उठाने का जोखिम ले सकते थे? सबसे अधिक क्षोभजनक और शर्मनाक बात यह है कि जिस समय उन्मादी भीड़ सन्तों पर लाठी -डण्डे बरसा रही थी, उस समय पुलिसकर्मी मूकदर्शक बने हुए थे। उन्होंने भीड़ का समझने और डराने-धमकाने का तनिक भी प्रयत्न नहीं किया। इसके विपरीत अपनी प्राण रक्षा की गुहार लगा रहे सन्तों को उन्होंने कायरता दिखाते हुए उसके ही हवाले कर दिया। गत 16 अप्रैल की इस घटना का वीडियो जब वायरल हुआ, तब महाराष्ट्र सरकार और पुलिस-प्रशासन सक्रिय हुआ। इसके बाद भीड़ में शामिल सौ से अधिक लोगों को हिरासत/गिरफ्तार करने के साथ-साथ उसने कुछ पुलिसकर्मियों को निलम्बित कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझ ली। आश्चर्य की बात यह है कि समुदाय विशेष के गोमांस के खाने/उसके शक में, गायों की तस्करी य पशुओं की चोरी करते पकड़ने जाने पर भीड़ द्वारा उन्हें मारे जाने पर जमीन/आसमान कर अपने ‘अवार्ड’ वापस करने वाले ,देश में असहिष्णुता फैलने का राग अलापने और उसे ‘लिंचिस्तान’ कहकर दुनियाभर में बदनाम करने वाले साहित्यकार, लेखक, फिल्मकार, अभिनेता-अभिनेत्रियाँ, मानवाधिकारवादी, पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के नेता पालघर में साधुओं की इस निर्मम हत्या पर पूरी तरह खामोश बने हुए हैं, जैसे उनकी जान का कोई मोल ही नहीं हो। वैसे भी ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पहले भी देश में कहीं साधु-सन्तों के साथ,तो जहाँ कहीं हिन्दुओं पर अन्याय, अत्याचार या हिंसा हुई हो, यहाँ तक कि जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पण्डितों के सामूहिक नरसंहार की जब घटना हुई हो,तब भी ये लोग मूक ही बने रहे हैं,क्यों कि समुदाय विशेष की तरह उन्हें हिन्दुओं के एकमुश्त वोट मिलने की उम्मीद जो नहीं है। ये लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि हिन्दुओं की तरफदारी से उन्हें कभी कोई सियासी फायदा होने वाला नहीं है
अब पालघर की घटना को लेकर किसी निष्कर्ष पहुँचने से पहले हमें उसकी पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है। यह आदिवासी इलाका है,जहाँ सालों से ईसाई मिशनरी आदिवासियों को तरह-तरह के प्रलोभन और हिन्दू धर्म के खिलाफ अनर्गल बातें कर, अपने धर्म को करिश्माई और बेहतर बताकर उन्हें धर्मान्तरित करने में जुटे हुए हैं। यहाँ पहले वामपंथियों से उनका सियासी टकराव होते रहे ,लेकिन अब कुछ सालों से ईसाइयों और वामपंथियों का गठजोड़ बन गया है। वर्तमान में इस इलाके से ‘ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(एम)’ का विधायक है। इस क्षेत्र में सक्रिय दूसरी सियासी पार्टियाँ भी कथित दलित समर्थक और हिन्दू/सवर्ण विरोधी हैं। यहाँ पर ‘रावण’ और ‘महिषासुर‘ को महिमा मण्डित’करते हुए उत्सव मनाये जाते हैं। इस क्षेत्र में हिन्दू विरोधी गतिविधियाँ आम हैं। गत 16अप्रैल को गढ़चिंचले गाँव में 70वर्षीय साधु चिकने महाराज कल्पवृक्ष गिरि और 30वर्षीय साधु सुशील गिरि अपनी गाड़ी से अपने गुरु की अन्त्येष्टि में सम्मिलित होने सूरत जा रहे थे। भीड़ ने पुलिस के सामने ही उन्हें बच्चा चोर समझकर उनके चालक समेत पत्थरों, लाठी,डण्डों से पीट-पीट कर मार डाला। ऐसा नहीं कि भीड़ को समझाने की कोशिश नहीं की गई। भीड़ में सम्मिलित लोगों को उसी गाँव की सरपंच चित्रा चौधरी ने उन्हें बहुत समझाया और कई घण्टे तक उनकी हत्या करने से रोका,पर इन्होंने उनकी भी जान लेने की कोशिश की गई। इससे यही स्पष्ट है कि भीड़ के लोगों को ऐसा कोई भ्रम नहीं था कि ये ‘सन्त बच्चा चोर‘ हैं। अगर बच्चा चोर थे भी,तो उनकी जान लेने का अधिकार उन्हें किसने दिया? हालाँकि उसी दौरान महाराष्ट्र सरकार में शामिल एन.सी.पी.से जुड़े जिला पंचायत सदस्य काशीनाथ चौधरी भी पहुँच गए,जिन पर अब चित्रा चौधरी भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगा रही हैं और इस आरोप से इन्कार कर रहे हैं।
इस बर्बर घटना पर जहाँ साधु-संतों की नगरी अयोध्या और प्रयाग में महाराष्ट्र सरकार से इसके लिए दोषियों पर संख्त कार्रवाई की माँग की गई है,उनके साथ विश्व हिन्दू परिषद्, भाजपा आदि ने भी ऐसी ही माँग की है, वहीं काँग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवााल ने इस घटना की निन्दा तो की, साथ ही भाजपा पर उसे साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश को शर्मनाक बताया। इतना ही नहीं, उन्होंने उसे इस वारदात को ‘हिन्दू-मुस्लिम एंगल से नहीं देखने की चेतावनी भी दे डाली।उन्होंने दूसरे ऐसे लोगों, राजनीतिक दलों और मीडिया से भी ऐसा नहीं करने की अपील की। इस घटना पर महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने भी ऐसा ही रुख-रवैया दिखाते हुए कहा कि इस घटना की उच्च स्तरीय जाँच करायी जाएगी, पर इस मामले को साम्प्रदायिक रंग देने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई किये जाने की चेतावनी दी है। ऐसे मौके पर कथित पंथनिरपेक्ष राजनीतिक दलों -काँग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी, उनके पुत्र एवं पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी,सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा की अध्यक्ष मायावती, वामपंथी दलों के नेतागण, एआइआइएमएम के अध्यक्ष असदुद्दीन औवेसी आदि ने भी किसी तरह की टिप्पणी करना जरूरी नहीं समझा। लेकिन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने अपनी पार्टी की कार्यसमिति की वीडियों क्रान्फ्रेंसिग में पालघर की घटना की घटना के बिना सन्दर्भ के भाजपा पर सियासी हमला करते हुए यह व्यंग्यात्मक आरोपात्मक टिप्पणी करना आवश्यक समझा कि वह कोरोना से मिलकर लड़ने के बजाय वह नफरत का वायरस फैला रही है। सोनिया गाँधी और उन जैसे सियासी नेताओं के ऐसे बयानों से अब देश के लोगों को हैरानी नहीं होती। देश की आजादी के बाद से एक ओर हिन्दू अपने ही मुल्क में दोयाम दर्जे की जिन्दगी बसर करते आ रहे हैं, वहीं कथित अल्पसंख्यक समुदायों के लोग विशेषाधिकारों का खुलकर दुरुपयोग करते रहे हैं। यहाँ तक कि उन्हें गरीब हिन्दुओं और आदिवासियों को लालच या छलकपट, लव जेहाद के जरिए धर्मान्तरित/मतान्तरित कराने की एकतरह से आजादी मिली हुई। इस कारण जहाँ पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों के ज्यादातर/सभी लोग ईसाई बन गए है, वहीं ओडिसा,छत्तीसगढ़, म.प्र., महाराष्ट्र, केरल, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, उ.प्र. आदि राज्यों में भी बड़ी संख्या में लोगों को धर्मान्तरित किया गया है। एक कथित अल्पसंख्यक समुदाय ने कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन कर दी और जम्मू,लद्दाख में भी कुछ लोगों को मतान्तरित कर ,तो बड़ी तादाद में अपने समुदाय के लोगों को बसाकर वहाँ की आबादी का स्वरूप बदलने की कोशिश की है, लेकिन किसी ने उसके खिलाफ जुबान खोलने की जहमत नहीं उठायी। पूरे देश में ऐसे साजिश करने वालों ने मजहब की आड़ में अलगाववादियों तथा दहशतगर्दों को जाल बिछाया हुआ, जो कभी भी देश में बड़ी तबाही की वजह बन सकते हैं। अपने देश में जब कभी ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक कट्टरपन्थियों की काली कारतूतो को उजागर करने की कोशिश की गई,तब उन्हें ही उल्टा बदनाम करने का प्रयास किया गया, जैसा कि वर्तमान में कोराना विषाणु संक्रमित जमातियों को पकड़ कर उन्हें क्वारण्टाइन करने पर केन्द्र सरकार और टी.वी.चैनलों पर ‘इस्लामिकफोबिया’ फैलाने का आरोप लगाया जा रहा है। कुछ वर्ष पहले कुछ गिरजाघरों पर पत्थर फेंके जाने की जाने घटनाओं को लेकर ईसाइयों और उनके हिमायतियों ने दुनियाभर में असहिष्णुता का राग अलापते हुए भारत और हिन्दुओं को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
जहाँ कहीं किसी ने ईसाई मिशनरियों के धर्मान्तरण में बाधा बनने की कोशिश की गई, वहाँ उसे खत्म कर दिया गया, जैसा कि ओडिसा के भुवनेश्वर के कन्धमाल में एक दशक पहले स्वामी लक्ष्मणानन्द महाराज की निर्मम हत्या की, जो आदिवासियों के धर्मान्तरण के विरुद्ध अभियान चला रहे थे। केरल में तमाम हिन्दुओं को तरह-तरह के लोभ/डर या छलकपट से धर्मान्तरित कर र्इ्रसाई और मुसलमान बनाया जा चुका है। इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय भी टिप्पण्ी कर चुका है। वहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओं की राजनीतिक कारणों से हत्याएँ होती रहती हैं,पर राज्य सरकार कुछ नहीं करती। ऐसे में केन्द्र सरकार को पालघर में संतो ंके हत्या के लिए दोषियों का पता कर उन्हें नमूने की सजा दिये जाने के लिए सतत् प्रयास करना चाहिए। साथ ही उसे मजहबी कट्टरपंथी शक्तियों के अनुचित, अवैध, देश विरोधी कार्यकलापों का पर्दाफाश करने को भी आगे आना चाहिए,ताकि पालघर जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054
क्यों विचलित है चीन भारत के आर्थिक निर्णय से ?

गत दिनों केन्द्र सरकार ने अपने देश के पड़ोसी/सीमावर्ती देशों से आने वाले ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश‘(एफडीआइ) के लिए सरकार की स्वीकृति अनिवार्य करने का, जो आदेश पारित किया है, वह अत्यन्त सामयिक, साहसिक, राष्ट्र की आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से सर्वथा उचित है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए,वह कम ही होगी। भारत ने यह कदम चीन की नाराजगी और उसके बदले की कार्रवाई का खतरा जानते-बूझते हुए उठाया है, जो उसके खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा, पाकिस्तान को हर तरह की मदद के साथ-साथ उसकी खुद की सीमाओं में घुसपैठ कर खतरनाक हालात पैदा करता रहता है। वर्तमान में कोरोना विषाणु से उत्पन्न वैश्विक महामारी से जूझ रहे अपने देश के लिए यह कदम अत्यन्त आवश्यक था, अन्यथा किसी भी देश की आर्थिक कमजोरी का फायदा उठाने में महारत रखने वाले चीन के संजाल से उसे स्वयं को बचने-बचाने में तमाम बाधाएँ आतीं। भारत ने यह निर्णय चीन सरकार और उसकी कम्पनियाँ दूसरे देशों में उसकी तमाम अनुचित एवं अवैध कार्यों को देखकर ही लिया है। अब भारत के इस फैसले पर चीन का आपत्ति करना स्वाभाविक है, क्योंकि देश में लॉकडाउन के कारण वह भारतीय कम्पनियों की कमजोर आर्थिक स्थिति का अनुचित लाभ उठाकर उन्हें खरीदने की फिराक में था, अब उसके लिए ऐसा कर पाना असम्भव हो गया है। इसलिए उसने विदेशी निवेश को लेकर भारत सरकार के इस निर्णय पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसे विभेदकारी और ‘विश्व व्यापार संगठन’(डब्ल्यू.टी.ओ.) के नियमों के विपरीत और उनका उल्लंघन बताया है, क्योंकि यह निवेश के स्रोत के भेदभाव कर रहा है। चीन का यह भी आरोप है कि भारत का यह निर्णय हाल में सम्पन्न समूह-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक में बनी सहमति के विपरीत है। अब सम्भव है कि चीन भारत के इस निर्णय की शिकायत ‘विश्व व्यापार संगठन’(डब्ल्यू.टी.ओ.) से भी करे। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सम्बन्धी नीति की सम्यक् समीक्षा के पश्चात् उसमें परिवर्तन करके चीन को एक प्रकार से पाकिस्तान, अफगानिस्तान,बांग्लादेश,नेपाल आदि की श्रेणी में रख दिया है। इससे चीन के भारतीय कम्पनियों को औने-पौने दामों में खरीदने के मंसूबे धरे के धरे रह गए हैं।
वैसे भारत ने यह कदम तब उठाया है, जब उसे यह अन्देशा हुआ कि प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितयों का लाभ उठाकर चीन भारतीय कम्पनियों की खरीद-फरोख्त कर सकता है। इसका तात्कालिक कारण कुछ दिनों पहले चीन की ‘पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना’ द्वारा एचडीएफसी बैंक में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाया जाना है। अब भारत सरकार अपनी घरेलू कम्पनियों में चीन के उन निवेशें की भी जाँच कराने की तैयारी में है, जो गैर- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मार्ग(रूट)के अलावा भी चीन ने भारतीय कम्पनियों में निवेश किया हुआ है। इनमें अधिकतर कम्पनियाँ स्टार्ट अप क्षेत्र की हैं। सरकार ऐसे निवेशों की भी जाँच सुरक्षा कारणों से कराना चाहती है। अब चीन के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए ऑटोमेटिक रूट बन्द कर दिया गया है। अब सरकार की मंजूरी के बाद ही चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सम्भव है। केन्द्र सरकार का यह निर्णय केवल चीन तक सीमित नहीं, बल्कि यह हांगकांग पर भी लागू होगा। हालाँकि हांगकांग की अपनी विधि-व्यवस्था है, किन्तु आखिर वह चीन के अधिकार क्षेत्र में आता है। चीन से भारत में होने वाले निवेश का बड़ा हिस्सा हांगकांग के रास्ते आता है।
भारत सरकार की एफडीआई नीति में परिवर्तन के निर्णय के पश्चात् चीन ही नहीं, भारत के सीमावर्ती दूसरे देशों की कम्पनियों के लिए अब निवेश करना दुष्कर/कठिन हो गया है। दिसम्बर,2019 के तक चीन की कम्पनियों ने भारत में लगभग 60,000करोड़ रुपए का निवेश किया, जो न केवल बहुत अधिक है, बल्कि भारत में विदेशी निवेश करने वाले समस्त पड़ोसी देशों में सर्वाधिक भी है। यह भी सच है कि भारत में चीन की कम्पनियों ने मोबाइल, ऑटोमोबाइल, घरेलू इलेक्ट्रोनिक उपकरण, ढाँचागत क्षेत्र को विकसित करने में महŸवपूर्ण भूमिका निभायी है।
वैसे भी यह वक्त का ताकाजा है कि भारत सरकार अपनी घरेलू कम्पनियों को हर तरह का सम्भव सहयोग ,सहायता, संरक्षण प्रदान करे। कोरोना विषाणु के लॉकडाउन की वजह से बदहाल आर्थिक हालात में चीन या किसी भी मुल्क को भी उनकी आर्थिक कमजोरियों का फायदा नहीं उठाने दिया जाना चाहिए। ऐसे में घरेलू कम्पनियों को हर तरह का सहारा, आर्थिक सहायता देकर और उन्हें सक्षम-समथ्र बनाया जाना चाहिए। यद्यपि चीन के निवेशकों ने भारतीय स्टार्ट अप में अच्छा-खासा निवेश किया हुआ है, तथापि कोरोना महामारी ने आर्थिक हालात बदल कर रख दिए हैं। अब परिवर्तित आर्थिक परिस्थितियों में यही उचित होगा कि भारत को चीन से विशेष रूप से सतर्क और सावधान रहने की परम आवश्यकता है। इसके साथ ही चीन के भारतीय कम्पनियों में उसके किसी तरह के निवेश पर सतत् दृष्टि रखी जाए, ताकि वह उसका किसी तरह का दुरुपयोग न कर पाए। कोरोना विषाणु से फैली वैश्विक महामारी से विश्व की परिवर्तित आर्थिक परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय उद्योग जगत् की चीन पर निर्भरता कम से कम करने के यथा सम्भव प्रयास किये जाने चाहिए। वर्तमान कोरोना विषाणु संकट के दौरान चीन पर निर्भरता के कैसे दुष्परिणाम सामने आए हैं? उससे उत्पन्न कष्ट/कठिनाइयों/समस्याओं से भारत और दुनिया के मुल्क अब अच्छी तरह परिचित हो गए है। इससे सबक लेकर किसी दूसरे देश/देशों पर निर्भरता कम से कम होनी चाहिए। वैसे अपने देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर होगा। वर्तमान में भारत का दवा निर्माण उद्योग अपने लिए आवश्यक कच्चा माल (एक्टिव फार्मास्युटिक इनग्रीडिएण्ट-एपीआइ) के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है। आज जब विश्व भर के दूसरे देश भी चीन पर अपनी निर्भरता कम से कम करने को प्रयत्नशील हैं । इनमें से कुछ देश चीन से व्यापारिक /आर्थिक सम्बन्ध समाप्त करना की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं या उस पर विचार कर रहे हैं। भारत को भी ऐसा करना चाहिए। उसे ऐसे देशों को चीन का विकल्प बनने के लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए। इतना ही नहीं, भारत को उन मुल्कों की कम्पनियों को भी अपने यहाँ लाने की कोशिश करनी चाहिए, जो चीन छोड़ने पर विचार कर रही है। यदि वह यह करने में सफल होता है,तो कोरोना महामारी से हुई आर्थिक क्षति की कुछ सीमा तक पूर्ति भी हो सकती है। अगर भारत ऐसा कर पाया, तो उस दशा में वह भविष्य के ऐसे संकटों का सामना करने की सामर्थ्य बढ़ा सकता है।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054

पालघर की घटना पर का
इतना बड़ी भयावह अमानुषिक घटना के बाद भी
अपनी प्राण रक्षा/कायरस्वयं हत्याकाण्ड केपुलिसकर्मियों के सामने हुआ,जाना पाश्विक, निर्मम,बर्बर
राष्ट्रवन्दना भवन के पेड़,पौधों,लताओं का विवरण-
1. .अमृता/गिलोय
2 आम-2
.3.आरोकैरिया कोकाई
4.अंगूर
5.इलायची-3
6.इवनिंग प्रिमरोज-2 प्रकार के पीले,गुलाबी
7..एडिनियम
8.एलोवेरा
9.एरिका पाम
10केतकी
11.कनेर
12.करौंदा-1
13.केला
14.केली
15..क्रोटन-2
16.गुलाब-3
17.चीकू
18.नीबू-2-2
19. नीबू-घास
20.नीम मीठा
21बेल
22बेला
23.तुलसाजी तीन तरह की-श्यामा,वनतुलसा,सामान्य हरी
24पत्थरचटा
25.मनीप्लाण्ट-दो प्रकार के
26.यूफोर्बिया-3
27.सतावर
28. सप्तपर्णी-2
29..सुदर्शन-3
30..सन्तरा
31..साइकस
32.सदाबहार-सफेद, गुलाबी।
33.स्नेक पाम
34. स्नेक पाम छोटा
35.हरसिंगार-4
36.हेज
37.गमले के अरबी जैसे पत्ते वाला
38.इलाहाबाद वाली घास
39..लिली
40.गुलदाउदी
41.पपीता
इजराइलियों को मंजूर नहीं हैं भ्रष्ट राजनेता
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
वर्तमान में इजरायल के लोग दोहरे संकट से गुजर रहे हैं। एक ओर कोरोना विषाणु से फैली महामारी से वे अपने घरों में कैद रहने को मजबूर हैं,तो दूसरी ओर उन्हें प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का अपनी राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी पार्टी ‘ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी’ से मिलकर गठबन्धन सरकार चलाना किसी भी हालत में मंजूर नहीं है, जिन पर भ्रष्टचार के कई गम्भीर आरोप लगे हुए हैं। इनके कारण ही नेतन्याहू की ‘लिकुड पार्टी’ को पिछले कई आम चुनाव में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है, जिसकी वजह से उन्हें कई और सियासी पार्टियों से मिलकर सरकार बनाने को मजबूर होना पड़ा है। इसी 26 अप्रैल का तेलअवीव स्थित रेविन स्क्वायर पर उनकी गठबन्धन सरकार के खिलाफ हजारों की संख्या में लोगों ने शारीरिक दूरी के नियम का पूरी तरह से पालन करते हुए प्रदर्शन किया था। वैसे एक हफ्ते में यह दूसरा अवसर था, जब बेंजामिन नेतन्याहू के विरुद्ध व्यापक पैमाने पर प्रदर्शन हुआ।
वस्तुतः इजरायल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू और संसद के स्पीकर बेनी गेंट्ज के बीच मिलकर सरकार चलाने की सहमति बन गयी। इससे गेंट्ज के मतदाता को गहरा आघात लगा, क्योंकि उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से नाराज होकर पिछले सालों में हुए तीन चुनावों में नेतन्याहू की ‘लिकुड’पाटी के खिलाफ गेंट्ज की ‘ब्ल्यू एण्ड व्हाइट’पार्टी को पूरा समर्थन दिया था। इस वजह से हजारों लोगों ने सार्वजानिक रूप से उनके द्वारा गठबन्धन सरकार बनाये जाने के खिलाफ अपना विरोध जताते आ रहे हैं। गत 26 मार्च को संसद के स्पीकर पद के चुनाव में गेंट्ज की उम्मीदवारी का लिकुड पार्टी ने समर्थन किया था। इस वजह से गेंट्ज निर्विरोध चुने जाने में कामयाब हो गए। उसके बाद से ही सत्तारूढ़ लिकुड पार्टी और विपक्षी की भूमिका में चुनाव लड़ी ‘ब्ल्यू एण्ड व्हाइट’पार्टी के बीच समझौता होने के संकेत मिले गए थे। प्रधानमंत्री बंेजामिन नेतन्याहू ने जब अपनी प्रतिद्वन्द्वी सियासी पार्टी ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पाटी्र के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया, तब उनकी ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी के साथ गठबन्धन में शामिल राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने भी नाराजगी जतायी थी। इस तरह उनकी सरकार से इजरायली जनता के साथ-साथ दूसरी सियासी पार्टियों भी खुलकर अपनी नाखुशी जता रही हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने देश के लोगों को अपने पक्ष में करने के इरादे से उन्हें पश्चिम तट ( वेस्ट बैंक) स्थित विवादास्पद यहूदियों की बस्तियों को जल्द ही इजरायल में मिलाने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है, जो अक्सर उनकी अपनी पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में दर्ज होता रहा है। उनके इस ऐलान से फिलीस्तीन बेहद नाराज है। वह वेस्ट बैंक पर इजरायली कब्जे का कड़ा विरोध करता रहा है। वेस्ट बैंक की यहूदी बस्तियाँ इजरायल और फिलीस्तीन के बीच विवाद का मुख्य कारण बनी हुई हैं। वैसे नेतान्याहू ने आशा व्यक्त की है कि यहूदी बस्तियों को वह अमेरिका के समर्थन से अपने देश में मिला लेंगे। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध के रहते हुए इस वर्ष की शुरुआत में ट्रम्प प्रशासन ने इजरायल को वेस्ट बैंक पर कब्जे की इजाजत दे दी थी। इससे पहले अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इजरायल को तेलअवीव की जगह यरुशलम को अपनी राजधानी बनाने की सहमति दे चुके हैं, वह एक विवादास्पद शहर है, जो यहूदी, ईसाई, इस्लाम मजहब के अनुयायियों के लिए पवित्र शहर माना जाता है। इस कारण इन तीनों की मजहबों के लोग इस पर अपना-अपना दावा जताते आए हैं।
अब देखना यह है कि अपने इस कदम से प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपने देश को लोगों की नाराजगी खत्म करने में कितने कामयाब हो पाते हैं?

सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार-63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003 मो.नम्बर-9411684054
दैनिक जागरण‘28मार्च,पृष्ठ-14

में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू और संसद के स्पीकर बेनी गेंट्ज के बीच मिलकर सरकार चलाने की सहमति बन गयी है। इससे गेंट्ज के मतदाता को गहरा आघात लगा है,जिन्होंने तीन चुनावों में नेतन्याहू की ‘लिकुड’पाटी के खिलाफ गेंट्ज की ‘ब्ल्यू एण्ड व्हाइट’पार्टी का समर्थन किया था। हजारों लोगों ने सार्वजानिक रूप से अपना विरोध जताया है।

इजरायल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू और संसद के स्पीकर बेनी गेंट्ज के बीच मिलकर सरकार चलाने की सहमति बन गयी है। इससे गेंट्ज के मतदाता को गहरा आघात लगा है,जिन्होंने तीन चुनावों में नेतन्याहू की ‘लिकुड’पाटी के खिलाफ गेंट्ज की ‘ब्ल्यू एण्ड व्हाइट’पार्टी का समर्थन किया था। हजारों लोगों ने सार्वजानिक रूप से अपना विरोध जताया है। 26मार्च को संसद के स्पीकर पद के चुनाव में गेंट्ज की उम्मीदवारी का लिकुड पार्टी ने समर्थन किया था। इससे गेंट्ज निर्विरोध चुने गए। इससे सत्तारूढ़ लिकुड पार्टी और विपक्षी की भूमिका में चुनाव लड़ी ‘ब्ल्यू एण्ड व्हाइट’पार्टी के बीच समझौता होने के संकेत मिले थे। चुनाव के बाद ब्ल्यू एण्ड व्हाइट पार्टी के साथ गठबन्धन में शामिल पार्टियों के नेताओं ने नाराजगी जतायी थी। दैनिक जागरण‘28मार्च,पृष्ठ-14
ऋषिकपूर का निधन पौन नौ बजे,30अप्रैल,2020 मुम्बई,2त्र 4सितम्बर,1952
श्ऱद्धांजलि-
अलबेले और अनोखे कलाकार थे ऋषि कपूर
डॉ.बचन सिंह सिकरवार

अपने देश के नाट्य एवं फिल्मी दुनिया के पितामह में शुमार पृथ्वीराज कपूर के पौत्र और फिल्म जगत् के सपने के सौदागर राजकपूर के छोटे बेटे बहुआयामी कलाकार ऋषि कपूर का यकायक चले जाने से हर कोई स्तब्ध है और हतप्रभ है, क्योंकि एक दिन पहले ही ऐसे ही दिग्गज कलाकार इरफान खान की मौत से लगे गहन आघात सम्हल भी नहीं पाया था।आखिर कलाप्रेमियों पर अपने दो प्रिय कलाकारों के असमय विक्षोह सहने का प्रश्न है? इन दोनों की मृत्यु में एक सम्य यह है कि ये दोनों ही अपनी असाध्य रोगों का उपचार कई महीनों तक क्रमशः अमेरिका और ब्रिटेन से करा कर लौटे थे।इस कारण सभी को यह पूर्ण विश्वास था कि ये फिर से अपनी अभिनय की दुनिया में पहले की तरह रम जाएँगे। लेकिन लगता है कि विधाता उन्हें अपने पास बुलाकर उनसे कुछ और ही कराना चाहता था। उनका जन्म 4सितम्बर, सन् 1952 को मुम्बई में हुआ। उनके पिता राजकपूर,माता कृष्णराज कपूर,बाबा पृथ्वीराज कपूर,उनके चाचा शम्मी कपूर, शशि कपूर भी लोकप्रिय अभिनेता रहे हैं। उनके बड़े मामा प्रेमनाथ,उनकी पत्नी बीनाराय, छोटे मामा हास्य अभिनेता राजेन्द्रनाथ, नरेन्द्रनाथ ने भी अपनी नाकारात्मक के लिए अपनी अलग पहचान बनायी है।अब इनमें से कई के पुत्र-पुत्रियाँ भी अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय हैं। यहाँ यह भी सच है कि फिल्मी परिवार में पैदा होने और कलाकारी विरासत में मिलने के बाद भी उन्होंने उनसे पूरी तरह अलग स्वतंत्र पहचान बनने में सफल रहे।
ऋषि कपूर का फिल्मी कलाकर का सफर अपने पिता की फिल्म ‘श्री 420’ के एक गीत‘ प्यार हुआ इकरार हुआ है’’ बरसात में भीगते तीन बच्चों में से एक बच्चे के बाद फिल्म ‘‘मेरा नाम जोकर’ के अपनी अध्यापिका के प्रति अशक्त किशोर (अपने पिता की किशोर भूमिका) से होता हुआ फिल्म ‘‘बॉबी’में युवा विद्रोही प्रेमी की भूमिका से फिल्मों युवा दर्शकों के दिलों में अपने सशक्त अभिनय से ऐसी अमिट छाप छोड़ी, जो उन्हीं तरह अब जीवन सन्ध्या में अपनी जिन्दगी बसर कर रहे उनके प्रेमियों के मनमस्तिष्क में जस की तस बनी हुई है।उनके फिल्मी सफर पर विराम ‘बॉडी’’फिल्म में निभायी भूमिका के साथ अब समाप्त हो गया।
यद्यपि ऋषि कपूर ने अपनी अधिकांश फिल्मों में ऐसे रोमांटिक प्रेमी की भूमिकाएँ की, जो हर तरह से युवतियों को अपनी ओर आकर्षित कर उनके मनमन्दिर में जगह बनाने को विवश कर दे।उनमें अपनी मनोहरी मुस्कराहट , भावभंगिमाओं और विशिष्ट नृत्य से युवतियों को मोहने कला में निपुण कलाकार थे। यद्यपि उनका पहला प्यार यामिनी , डिम्पल कपाड़िया, तथापि अन्तत‘ नीतू सिंह उनकी जीवनसंगिनी बनीं। वह कई मामलों में अपने पिता राजकपूर के असली वारिस थे।उन्हें अपनी पिता की तरह मित्रों, सहकर्मियों को दावतें देना बेहद पसन्द थे।
उन्होंने अपनी फिल्मी यात्रा में ं अपनी अभिनेत्री धर्मपत्नी नीतू सिंह समेत कोई 20 प्रसिद्ध अभिनेत्रियों के साथ कार्य किया है। इनमें उनकी धर्मपत्नी नीतू सिंह के साथ हिरोइन की निभायी फिल्में बहुत अधिक लोकप्रिय रही हैं। इनमें से अपने समय की कई लोकप्रिय अभिनेत्रियाँ जिनके साथ ऋषि कपूर ने हीरो बने हैं – उनमंे से हैं- डिम्पल कपाड़िया, नीतू सिंह, रंजीता, जूही चावला, टीना मुनीम, माधुरी दीक्षित, पद्मनी कोल्हापुरे, आदि हैं। ऋषि कपूर की कुछ अधिक चर्चित फिल्मों बॉबी, लैला मजनू, नसीब, अमर अकबर अन्थोनी, प्रेम रोग,कर्ज, कभी-कभी, चाँदनी, प्यार के काबिल, दीवाना, नागिना आदि हैं । ऋषि कपूर ने अपने पिता के राजकपूर फिल्म्स के बैनर तले ‘प्रेमग्रन्थ’ का निर्देशन की ऋषि कपूर ने फिल्म के रोमाण्टिक चॉकलेटी हीरो के बजाय दूसरी की उनमंे ‘अग्निपथ’ में उन्होंने क्रूर खलनायक की यादगार भूमिका निभायी थी। ‘दो दूनी चार’, ‘कपूर एण्ड सन्स’ ‘मुल्क’ और ‘एक सौ दो नाट आउट’ में अभिताभ बच्चन के साथ निभायी भूमिका भी अविस्मरणीय है। उन्हें श्रेष्ठ अभिनय के लिए फिल्म फेयर अवार्ड समेत कई दूसरे पुरस्कार मिले। ऋषि कपूर ने अपनी जीवनी‘खुल्लम खुुल्ला’शीर्षक से लिखी थी, जिसमें तमाम अचर्चित घटनाओं का उल्लेख किया था।
ऋषि कपूर की दो सन्तानें हैं-पुत्री रिद्धिमा और अभिनेता रणवीर कपूर हैं,जो अपने पिता, बाबा, परबाबा की राह पर चलते हुए अभिनय के नये-नये आयाम स्थापित कर रहा है। इनमें रिद्धिमा का विवाह हो चुका है और रणकपूर की अभिनेत्री अलिया भट्ट से भविष्य में होने की चर्चा है। अब वह कोई प्रातः पौने नब्बे बजे 30 अप्रैल, 2020 को इस दुनिया को अलविदा कर चले गए। ईश्वर उनकी आत्मा का शान्ति प्रदान करे।
दुनिया
हुंजा घाटी –
जहाँ साठ-सत्तर साल के होते हैं जवान और जीते हैं सौ-सवा सौ साल
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
‘साठ-सत्तर साल के होते हैं जवान और जीते है-सौ-सवा सौ साल’ सुनकर आप चौंके जरूर होंगे और चौंकना भी चाहिए। लेकिन यह सच्चाई है, हकीकत है। यहाँ तक कि साठ-पैसठ साल की अवस्था में महिलाएँ पैदा करती हैं – बच्चे। आप यह जानकार ताजुब्ब होगा, यह भी अपने देश के पड़ोसी पाकिस्तान के गैरकानूनी तौर पर धोखे और जबरिया कब्जाए जम्मू-कश्मीर के पी.ओ.के में।
पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पी.ओ.के.) का एक इलाका गिलगिट-बल्टिस्तान की पहाड़ियों में स्थित ‘हुंजा घाटी‘ है, जिसे पाकिस्तान ने देश के विभाजन के पश्चात् जम्मू-कश्मीर पर हमला कर हथिया लिया था। यह राजनीतिक-आर्थिक कारणों से विश्वभर के देशों के अधिक चर्चित न हो, लेकिन अपने अलौकिक जलवायु के लिए पर्यावरणविदों तथा चिकित्सकों के लिए जिज्ञासा तथा आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है, क्यों कि यहाँ कि लोग रक्तचाप (ब्लड प्रेशर), मधुमेह (डायबिटीज), मोटापा, कैंसर, आदि असाध्य रोगों से ग्रस्त होना तो दूर, उनके नाम तक नहीं जानते। इसकी वजह से दुनियाभर के चिकित्सकों की जिज्ञासा यहाँ लोगों की जीवन शैली और उनके दीघायु के रहस्य को जानने की रही है, जिसके कारण वे अन्दर -बाहर से हमेशा तन्दुरूस्त रहते हैं और कभी बीमार नहीं पड़ते। जब कोई किसी विशेष कारण से थोड़ा-बहुत बीमारी होता भी है, तो वह अपने आसपास उग रही जड़ी-बूटियाँ खोजकर उनसे अपना सहजता से उपचार कर लेता है।
धरती के स्वर्ग के यह भाग अपनी जलवायु और वातारण दूसरे शब्दों में दूसरों से अब भी बेजोड़ है।इसके अत्यन्त स्वच्छ जल और वायु समेत पूरे अनुपम वातावरण,सरल जीवन शैली के कारण लोग अब भी न केवल निरोगी जीवन जीते हैं,वरन् दीर्घायु भी होते हैं। यहाँ के अधिकांश लोग सौ से सवा साल तक जीते है और वह भी रोगमुक्त रहते हुए। इनके यहाँ शेष दुनिया के देशों की तरह न वायु प्रदूषण की समस्या है और न जल प्रदूषण की। ऐसे में ध्वनि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। यह कैसे सम्भव हुआ,तो उत्तर है कि उन्होंने वर्तमान कथित सुख-सुविधा,भोग-विलास की जिन्दगी की कोई लालसा नहीं पायी है।
हुंजा घाटी के लोग के बारे में सर्वप्रथम डॉ.रार्बट मैक्करिसन ‘ पब्लिकेशन स्टडीज डेफिशिएन्सी डिजीज’ में लिखा था।इसके बाद ‘जर्नल ऑफ अमेरिकी मेडिकल एसोसियेशन में एक लेख प्रकाशित हुआ,जिसमें इस प्रजाति के जीवन काल और इतने लम्बे समय स्वस्थ रहने के सम्बन्ध में जानकारी दी गई। उसके अनुसार ये कम खाते और ज्यादा टहलते हैं।
फिर हुंजा घाटी के विषय में जानकारी हेतु डॉ.जे. मिल्टन हॉफमैन ने हुंजा के लोगों की लम्बी आयु का राज ज्ञात करने केे लिए यहाँ आए और घूम-फिर कर उन्होंने अपने अनुभवों के निष्कर्षो बारे में सन् 1968 में हंुजा सीक्रिएट ऑफ द वल्डस हैल्थियस एण्ड ओलडेस्ट लिविंग पीपल’ नामक पुस्तक प्रकाशित की। इसमें उ ’हुंजा के लोगों की जीवन शैली के रहस्यों का उद्घाटन करने की यथा सम्भव प्रयास किया। इस कारण यह पुस्तक अत्यन्त महŸवपूर्ण मानी जाती है।
हंुजा घाटी में बसने वाली जनजाति के लोग स्वयं को मैसीडोनिया के राजा सिकन्दर को वंशज बताते है,जो कई माने में औरों से हैं भी अलग।इनका रूप-रंग और रीति-रिवाज भी शेष स्थानीय लोग से भिन्न हैं। सम्भव है कि 327 ई.पू. में उत्तरी भारत पर मैसीडोनिया के शासक सिकन्दर के आक्रमण और उसके वापस जाने के बाद उसके कुछ सैनिक और दूसरे लोग यहीं बस गए हों, ये उनके ही वंशज हो सकते हैं। इनकी जनसंख्या 87हजार से अधिक है। ये लोग अल्पाहारी हैं और खूब पैदल घूमते हैं। ये लोग वही खाते है, जो स्वयं उगाते हैं। आमतौर पर ये अंजीर, अखरोट, खूबानी खूब खाते है। इस क्षेत्र में अनाज में जौ, बाजरा कुटू, हैं, जो इनका मुख्य भोजन है।ं इनके भोजन में मेवे, सब्जियाँ, दूसरे मोटे अनाज हैं। इनमें तन्तु/फाइबर प्रोटीन के साथ सभी आवश्यक खनिज (मिनिरल्स) भी पाए जाते हैं। धूप में अखरोटों को सुखाते हैं जिनमें बी-17 घटक/ कम्पाउण्ड होते हैं। कुछ महीने तो ये लोग सिर्फ खूबानी ही खाते हैं। ये शून्य से कम तापक्रम में ठण्डे पानी से नहाते हैं। उसके बाद बहुत कम खाते और बहुत अधिक टहलते/घूमते है। अब तो आप समझ गए होंगे,इनके शतायु होने का जीवन का रहस्य।
आम लोगों का अभिनेता-इरफान खान
डॉ.बचनसिंह सिकरवार
गत उन्तीस अप्रैल को आम भारतीय दर्शकों को प्यारा-दुल्हारा फिल्म अभिनेता इरफान अचानक दुनिया से चले जाने से बड़ा झटका लगा है, क्योंकि उनके जहन में ‘अँग्रेजी मीडियम’ में उनकी हलवाई पिता की जीवन्त भूमिका को अभी बनी हुई है, जो अपनी बेटी को विदेश में अँग्रेजी माध्यम से पढ़ाने के क्या-क्या नहीं करता है और अपने इरादे को पूरा करके ही रहता है। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान अपनी भूमिका को इरफान ने आसाध्य रोग कैंसर के उपचार से शारीरिक कमजोरी के रहते हुए बखूबी निभाने की भरसक कोशिश की थी। वैसे तो उन्होंने जितने धारावाहिक और फिल्मों में जितनी भी तरह के चरित्र निभाए, वे सभी अविस्मरणीय हैं। वे उनके जरिए अमर हो गए हैं। भारतीय फिल्मों में जिस तरह के चेहरे-मोहरे की दरकार होती है, वह उस कसौटी पर भले ही खरे न उतरते हों, लेकिन अपने सशक्त अभिनय और चेहरे पर बड़ी-बड़ी आँखों से बहुत कुछ कहने की क्षमता के बल पर मुख्य भूमिका यानी उसके हीरो में बनने में भी कामयाब हुए। इरफान खान एक बेहतरीन अभिनेता/कलाकार ही नहीं, वे एक ऐसे बेजोड़ इंसान भी थे, जिसने कभी इन्सानियत को नहीं भुलाया है। वह विचारशील और अपने नाम के अनुरूप विवेकशील भी थे। वह जैसे सोचते थे, उसे बोलने-करने का हौसला भी रखते थे। यही कारण है एक बार उन्होंने बकरी ईद पर बकरों की कुर्बानी देने/काटने जाने का यह कहकर विरोध किया, कि कुर्बानी के माने अपनी सबसे प्रिय वस्तु का दान/कुर्बानी है। इसका उनके मजहबी रहनुमाओं ने सख्त मुखालफत की, पर उससे डरे नहीं और अपने कहे पर डटे रहे। इरफान को अपनी धरती , अपने लोगों से बेइन्तहा मुहब्बत थी। यही वजह है कि इरफान खान जिस मुहल्ले, शहर, प्रदेश से आए और जहाँ-जहाँ रहे, उन्हें कभी भुलाया नहीं। वह हर मंकर संक्रन्ति पर जयपुर आकर अपने यार-दोस्तों के साथ पतंग उड़ाया करते थे।
देश-विदेश के फिल्म जगत् में उन्होंने जो अपना उच्च स्थान बनाया, वह उन्हें विरासत / खैरात में नहीं मिला था, बल्कि अपने अथक परिश्रम और मजबूत इरादों से हासिल किया था। 7 जनवरी, सन् 1967 में जयपुर के मुस्लिम पठान परिवार में जन्मे इरफान खान बचपन में क्रिकेट खिलाड़ी बनना चाहते थे, पर वह सफल कलाकार बन गए। उनका पूरा नाम साहेबजादा इरफान अली खान था। उनके पिता का टायर का व्यापार था, जिसमें उनकी कतई दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने स्नातक की पढ़ाई करने के बाद ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ (एन.एस.डी.) दिल्ली में नाट्यकला के गुरु सीखे और कई नाटकों में अभिनय किया। इसके पश्चात् मुम्बई का रुख किया, जहाँ उन्होंने टी.वी.के कई धारावाहिकों में हर तरह की भूमिकाएँ निभायीं। इनमें ‘भारत एक खोज’, ‘चाणक्य’ बहुत प्रसिद्ध हैं।उनकी पहली फिल्म ‘हासिल’थी,जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति पर आधारित थी। इरफान खान ने ‘स्लम डॉग मिलिनेयर’ में भी एक छोटी-सी भूमिका निभायी थी,इस फिल्म को ऑस्कर अवार्ड मिले थे। ‘मकबूल’फिल्म में अभिनय के लिए इरफान की बहुत तारीफ मिली। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी से सैनिक फिर परिस्थितिवश डाकू बने ‘पानसिंह तोमर’ के जीवन पर इसी नाम से बनी फिल्म जीवन्त अभिनय किया। उनकी अन्य विशिष्ट फिल्म ‘लांच बक्स’ थी,जिसे देश-विदेश में बहुत सराहा गया। इसके अलावा ‘मदारी’,‘पीकू’ ‘करीब-करीब सिंगल’, ‘हिन्दी मीडियम’आदि उनकी चर्चित फिल्में रही हैं। इनमें पीकू में उनके साथ अमिताभ बच्चन थे। उन्हें श्रेष्ठ अभिनय के लिए एक राष्ट्रीय अवार्ड और तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिले। इरफान खान लम्बे समय सन् 2018 से एक दुर्लभ किस्म के कैंसर न्यूरोएण्डोक्राइन ट्यूमर’से पीड़ित थे, जिसका उपचार उन्होंने ब्रिटेन में रहकर कराया था।उसमें उनकी पत्नी और बच्चों ने उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब इरफान कैंसर से लड़ रहे थे,तब उन्होंने लिखा था,‘‘ मैंने कैंसर के आगे सरेण्डर कर चुका हूँ।’’हालाँकि उन्होंने से ऐसा किया नहीं और आखिर दम तक वह जीवन के लिए उससे लड़ते रहे,क्योंकि वह अपनी पत्नी और बच्चों के दोबारा जीना चाहते थे।
53 वर्षीय इरफान खान की मृत्यु से चार दिन पहले ही उनकी 95 वर्षीय माँ सईदा बेगम का जयपुर में इन्तकाल हो गया, पर लॉकडाउन की वजह से वह उनके जनाजे में शामिल न हो सके,जिन्हें वह बेपनाह मुहब्बत करते थे। इरफान खान अपनी पत्नी सुतापा तथा बाबिल और अयान को छोड़ गए है।ं अल्लाह उन्हें जन्नत दे और उनकी पत्नी तथा दो बेटों को इस गम को बर्दाश्त करने का हौसला अता करे। आमीन
आदि
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उन सभी में अविस्मरणीय
जुनून के लिए हर तरह के जतन करने की विश्व विरासत दिवस (वर्ल्ड हेरिटेज डे)आज
18अप्रैल। दुनिया के ऐतिहासिक स्मारकों और इमारतों के संरक्षण के लिए स्मारकों और स्थलों की अन्तर्राष्ट्रीय परिषद् आज के दिन को ‘विश्व विरासत दिवस’ के रूप में मनाती है। सन् 1983 में यूनेस्कों की 22वीं आम सभा में इस दिवस को स्मारकों ओर स्थलों का अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया। करीब 150देशों में मनाए जाने वाले इस दिवस की इस वर्ष की थीम साझी जिम्मेदारी रखी गई है। यूनेस्कों ने विश्व के 1121 स्मारकों और स्थलों को विश्व विरासत घोषित किया है। इसमें भारत के 38 स्थलों को शामिल किया गया है।
म्हिलाओं के पहले मेले की शुरुआत हुई
18अप्रैल। आज ही के दिन सन् 1925 में अमेरिका के शिकागो में महिलाओं द्वारा लगाए और संचालित किए गए आठ दिवसीय वेश्विकम ेले का उद्घाटन हुआ। इसका उद्देश्य महिलाओं के विचार, कौशल और उत्पादों को सबके सामने लाना था।
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय अस्तित्व में आया
18अप्रैल। आज ही के दिन सन् 1946 में ‘लीग ऑफ नेशन्स’ ने एक प्रस्ताव पारित कर अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना की। इसके पैनल में 15 न्यायाधीश हैं, जिनका कार्यकाल 9वर्ष है। इन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा चुना जाता है। यह नीदरलैण्ड के हेग शहर में स्थित है।
क्यूरी दम्पती ने रेडियम का सफलतापूर्वक अलग किया
20अप्रैल। आज के ही दिन सन् 1902 में वैज्ञानिक दम्पती मैडम क्यूरी और पियरे क्यूरी ने पेरिस स्थित अपनी प्रयोगशाला में यूरेनियम के अयस्क पिब्लेड से रेडियोधर्मी को अलग किया। इसके लिए उन्हेें सन् 1903 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
दुनिया के सामने आई वीटाफोन तकनीक
20अप्रैल। सन् 1926 में आज ही वॉर्नर बन्धुओं ने फिल्मों में आवाज देने वाली तकनीकी को ईजाद किया। उस दौर में साउण्ड टैªक को सीधे फिल्म पर रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता था। तब इस तकनीक के जरिए साउण्ड टैªक को अलग से रिकॉर्ड करके फिल्म दिखाने के साथ वीडियों के साथ चलाया जाता था।
लीग ऑफ नेशन्स को भंग किया गया
20अप्रैल। सन् 1946 में आज के ही दिन ‘लीग ऑफ नेशन्स’ को खत्म करके उसकी सारी शक्तियाँ संयुक्त राष्ट्र में निहित कर दी गई थी।प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ‘लीग ऑॅफ नेशन्स’ की स्थापना 10जनवरी, सन् 1920को की गई थी। इसका मकसद दुनिया में शान्ति स्थापित करना था।

पहली बार पनडुब्बी ने लगाया दुनिया का जलमग्न चक्कर
25अप्रैल। सन्1960 में अमेरिकी नौसेना की परमाणु पनडुब्बी यूएसएस ट्राइटन ने ऑपरेशन सैण्डब्लास्ट के तहत दुनिया का पहला जलमग्न चक्कर पूरा किया।
कैप्टन एडवर्ड एल बीच की कमाण्ड में 25फरवरी को सफर शुरू किया। 60दिन 21घण्टों में 49.5हजार किलोमीटर की दूरी तय की।
पहली बार सोलर सेल का प्रदर्शन किया गया
25अप्रैल। सन् 1954 में अमेरिकी कम्पनी बेल लैबोरेटरी ने पहले सोलर सैल को प्रदर्शित किया। इसे डैराइल चैम्पियन, कैल्विन फुलर और जेराल्ड पियरसन ने बनाया। सिलिकॉन में बोरोन मिलाकर इसे बनाया। इससे सूर्य की ऊर्जा से बिजली बनाने की क्षमता 600फीसद इजाफा हुआ।
विश्व मलेरिया दिवस आज
25अप्रैल। मलेरिया के प्रति लोगों को जागरूक करने और इस बीमारी से उनकी जान की रक्षा के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन आज के दिन को ‘विश्व मलेरिया दिवस’ के रूप में मनाता है। संगठन के अनुसार 2018 में मलेरिया के 22.8करोड़ मामले सामने आए, जिनमें 4लाख लोगों की जानें गईं। मई,2007 में विश्व स्थास्थ्य संगठन सभा ने इस दिवस की स्थापा की। इस वर्ष इस दिवस की थीम है, जीरो मलेरिया स्टार्ट्स विद मी। दुनिया के 106 देशों के करीब 3.3अरब से ज्यादा लोगों को मलेरिया का खतरा है।
देश का 22वाँ राज्य बना सिक्किम
26अप्रैल। सन् 1975 में सिक्किम भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ। इससे पूर्व 14अप्रैल,सन्1975 को जनमत संग्रह में जनता ने भारतीय संघ में शामिल किए जानेके लिए वोट दिया। 16मई को औपचारिक रूप से भारत का 22वाँ राज्य का दर्जा मिला।
रेशम के कपड़े पर प्रकाशित हुआ ‘बाम्बे गजट’
26अप्रैल। आज के ही दिन भारत का पहला अँग्रेजी अखबार ‘बाम्बे गजट’ पहली बार रेशम के कपड़े पर प्रकाशित हुआ। सन् 1789 में ‘बाम्बे हेराल्ड’ नाम से इस अखबार की स्थापना हुई थी। सन् 1791 में इसका नाम बदलकर ‘बाम्बे गजट’ कर दिया गया।
यूक्रे के चर्नोबिल में भयानक परमाणु दुर्घटना से दहली दुनिया
26 अप्रैल।ं आज के ही दिन सन् 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लाण्ट में अब तक की सबसे भयानक परमाणु दुर्घटना हुई थी। परमाणु रिएक्टर में अचानक धमाके शुरू हो गए और करीब दो लाख वर्ग किलोमीटर का इलाका जहरीली हवा के चपेट में आ गया।आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार इस हादसे में 31लोगों की मौत हुई। माना जाता है कि इस हादसे में निकले रेडियोएक्टिव पदार्थ हिरोशिमा में हुए परमाणु हमले से चार गुना अधिक थे,जिसकी वजह से आसपास बने एक लाख पैंतीस हजार लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुँचाया गया।

जिदादिली के लिए याद रखी जाएँगी जोहरा सहगल
27अप्रैल। सन् 1912 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में जोहर सहगल यानी जोहरा मुमताज उल्लाह खान का जन्म हुआ। करियर नृत्यांगना के रूप में शुरू किया। वे थिएटर से जुड़ी रहीं और केई फिल्मों के लिए कोरियोग्राफी भी की। सन् 1962 में लन्दन चली र्गइं और अँग्रेजी फिल्मों में काम किया। ‘नीचा नगर’, ‘सांवरिया‘,‘कभी खुशी कभी गम’,‘ वीरजारा’ जैसी फिल्मों में भूमिका निभायी। पद्मभूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। 102साल की उम्र में 10जुलाई,सन् 2014 को निधन हो गया। उन्हें जिन्दादिली के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
पर्सनल कम्प्यूटर के साथ इस्तेमाल के लिए माउस प्रदर्शित
27अप्रैल। आज के ही दिन सन् 1981 में पर्सनल कम्प्यूटर के साथ इस्तेमाल के लिए जीरोक्स पार्क कम्पनी ने माउस प्रदर्शित किया। इसे ‘जीरोक्स स्टार’8010 पर्सनल कम्प्यूटर के साथ बेचा गया। इससे पूर्व सन् 1970 में डगलस एंजेलबर्ट ने माउस का पेटेण्ट कराया था।
नेशनल डिफेंस कॉलेज की स्थापना हुई
27अप्रैल। आज ही के दिन सन् 1960 में नेशनल डिफेंस कॉलेज की स्थापना दिल्ली में की गई। यह भारतीय सेना के लिए उच्च शिक्षा का संस्थान है। पाठ्यक्रम में वरिष्ठ रक्षा अधिकारी और सिविल सेवाओं के वरिष्ठ अधिकारी भाग ले सकते हैं। हर साल अन्य देशों के करीब 25 अधिकारी भी इस पाठ्यक्रम में हिस्सा बनते हैं।
ऑस्कर विजेता पहली भारतीय भानु अथैया का जन्मदिन
28अप्रैल। भारतीय कॉस्टूयम डिजायनर भानु अथैया का जन्म आज के ही दि सन् 1929 में कोल्हापुर,महाराष्ट्र में हुआ था। फिल्मों के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ऑस्कर जीतने वाली वे पहली भारतीय हैं। सन् 1982 में ‘गाँधी’ फिल्म में कॉस्टूयम डिजायन के लिए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया था। बॉलीवुड करियर सन् 1956में फिल्म ‘सी.आई.डी.से शुरू किया। ‘प्यासा’, ‘चौदहवीं का चाँद’,‘लगान’ और ‘स्वदेश’ सहित 100से अधिक फिल्मों में वस्त्र डिजायन किए। उन्हें लगा कि मरने के बाद उनका परिवार ‘ऑस्कर पुरस्कर’सहेज कर नहीं रख सकेगा,इसलिए उन्होंने दिसम्बर,सन् 2012 में लौटा दिया।
इटली के तानाशाह मुसोलिनी की गोली मारकर हत्या
28अप्रैल। सन् 1945 में आज के ही दिन इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी और उनकी पत्नी क्लारा पीटासी की उनके ही सैनिकों ने गोली मार कर हत्या कर दी। मुसोलिनी सन् 1922 से 1943 तक इटली के प्रधानमंत्री रहे। द्वितीय विश्व युद्ध के अन्तिम दिनों में इटली की बिगड़ती हालत के चलते मुसोलिनी का भागना पड़ा।
पहला पर्यटक अन्तरिक्ष में पहुँचा
28अप्रैल। आज के ही दिन सन्2001 में अमेरिका के इंजीनियर व अरबपति डेनिस टीटो दो करोड़ डॉलर देकर अन्तरिक्ष की सैर पर जाने वाले पहले पर्यटक बने। वह रूसी अन्तरिक्ष यान सोयूज टीएम -32 में बैठकर अन्तर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेश पहुँचे और वहाँ पर सात दिन रूके।

भारतीय सिनेमा की नींव रखने वाले दादा साहब फाल्के
30अप्रैल। आज के ही दिन दादा फाल्क-धुंधिराज गोविन्द फाल्क का जन्म सन् 1870 में महाराष्ट्र में हुआ था। 19साल के करियर में 95 फिल्में और 27 लघु फिल्में बनायीं। सन्1913 में उन्होंने राजा हरिश्चन्द्र नाम से पहली फिल्म मूक फिल्म बनायी। भारतीय इतिहास में उनके योगदान को देखते हुए सन् 1969 से भारत सरकार ने उनके सम्मान में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआत की। भारतीय सिनेमा का इसे सर्वोच्च और प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। 16फरवरी, सन् 1944 को उनका देहान्त हो गया।
अमेरिका के पहले राष्ट्रपति चुने गए जॉर्ज वाशिंगटन
30अप्रैल। सन् 1979 में आज के ही दिन जॉर्ज वाशिंगटन को सर्वसम्मति से अमेरिका का पहला राष्ट्रपति चुना गया था। इसी पद पर उन्होंने दो कार्यकाल पूरे किये। तीसरे कार्यकाल को ठुकराकर यह अपने बागान चले गए। लेकिन सन् 1799में फिर लौट और सेना में कमाण्डर इन चीफ का पदभार सम्भाला।
जर्मन तानाशाह हिटलर और उसकी पत्नी ने की आत्महत्या
30अप्रैल। सन् 1945 में आज के दिन जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर और उसकी पत्नी इवा ब्राउन ने एक बंकर में आत्महत्या कर ली। हिटलर ने गोली मार ली और ईवा ने सायनाइड का कैप्सूल खाकर अपनी जान दी। दोनों ने 29अप्रैल,सन् 1945 के अन्दर ही शादी की थी।

लगा चुनरी में दाग,गाने वाले मन्ना डे का जन्म दिन
1मई। शब्दों को भावनाएँ देने वाले सुर साधक मन्ना डे /प्रबोध चन्द्र डे का 1मई, सन् 1919 को आज के ही दिन कोलाकाता में हुआ। उनके पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे,लेकिन चाचा से प्रभवित हो वे गायकी की ओर बढ़े। सन् 1943 में फिल्म ‘तमन्ना’ में पार्श्व गायने किया।शब्दों के भावों के सामने लाने की जादूगारी के चलते हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति ‘मधुशाला’ को स्वर देने के लिए चुना। पद्मश्री, पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कर मिला। 24अक्टूबर, सन् 201को चिरनिद्रा मं लीन हो गए।
नाओमी यूमुरा उत्तरी ध्रुव पर अकेले पहुँचने वाले पहले व्यक्ति बने
स1मई। जापान के नाओमी यूमुरा आज के ही दिन सन्1978में उत्तरी ध्रुव स्लेज से पहुँचे। 57दिन की यात्रा में उन्हें कई जोखिमों का सामना करना पड़ा। इससे पहले अमेजन नदी मेें अकेले राफ्टिंग और उत्तरी अमेरिका स्थित डेनाली पर्वत पर अकेले चढ़ाई भी कर चुके थे।
दुनिया की सबसे आधुनिक पुलिस फोर्स का गठन
1मई। सिक्योरिटी ब्यूरो ऑफ हांगकांग के तहत सबसे बड़ी अनुशासित सेवा हांगकांग पुलिस फोर्स का सन् 1844 में गठन हुआ। यह एशिया की पहली एजेन्सी है,जिसका पेशेवर अन्दाज बेहद आधुनिक है। 32 अधिकारियों से शुरू इस सेवा की क्षमता आज 34हजार है। पुलिस नागरिक अनुपात में यह दुनिया में दूसरे स्थान पर है।
अर्थशास्त्री कार्ल मार्क्स का जन्म दिन
5अप्रैल। सन् 1818 में अर्थशास्त्री और विचारक कार्ल हेनरिख मार्क्स का जन्म प्रशिया में हुआ।सन् 1824 में परिवार ने यहूदी धर्म को छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया। 17साल की उम्र में कानून के अध्ययन के लिए बॉन विश्वविद्यालय जर्मनी में प्रवेश लिया। बाद में बर्लिन ओर जेना विश्वविद्यालय में साहित्य, इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया। सन् 1839-41में उन्होंने डॉक्टरेट

दमें बगैर को
क्या वाकई जुल्म हो रहा है मुसलमानों पर?
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
गत दिनों दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरूल इस्लाम का अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए धमकी भरे लहजे में यह लिखना कि जिस दिन भारत के मुसलमानों ने अरब देशों से अपने खिलाफ हो रहे जुल्म की शिकायत कर दी, तो सैलाब आ जाएगा, वह एक संवैधानिक पद पर बैठे हुए शख्स का निहायत ही झूठा इल्जाम और गैरजिम्मेदाराना बयान है,जो उनकी फिरकापरस्त जहनियत का भी खुलासा करता है। उनके इस फर्जी बयान की जितनी भी सख्त मजम्मत की जाए, वह कम ही होगी। कायदे से ऐसे शख्स से बगैर सफाई माँगे तथा कोई वक्त गंवाए इस्तीफा ले लेना/या उसे बर्खास्त कर देना चाहिए। हालाँकि मुल्क की मौजूदा सियासत से एक अलग तरह की सियासत का वादा कर सत्ता में आयी ,अब वैसी ही मौकापरस्त और फिरकापस्त सियासत कर रही ‘आम आदमी पार्टी’(आप)के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से ऐसी उम्मीद करना ही बेमानी है, जिन्होंने उन्हें तैनाती दी है।
वैसे दिल्ली अल्पसंख्यक के अध्यक्ष जफरूल इस्लाम ने अपनी फेस बुक पोस्ट में कुवैत के भारतीय मुसलमानों के साथ खड़े होने की जो बात की,उसकी हकीकत भी भरोसे के लायक नहीं है, क्यों कि इससे पहले ऐसी ही एक पोस्ट को ओमान की शाहीखानदान की शहजादी की पोस्ट कहकर प्रचारित किया गया ,जो बाद में फर्जी निकली। उसका खण्डन खुद शहजादी ने किया है।जहाँ तक अरब मुल्कों से कारोबारी रिश्तों की बात है,तो इससे सिर्फ भारत को ही फायदा नहीं है,उन्हें भी है। भारत उनसे अपनी जरूरत के 80 फीसद पेट्रोलियम पदार्थ खरीदता है, किन्तु खास मुसीबत मे भारत अमेरिका, रूस समेत दुनिया के दूसरे मुल्कों से उन्हें आयात कर सकता है। यदि भारत उन्हें खाद्य पदार्थों , दूसरी आवश्यक वस्तुओं का निर्यात बन्द करने के साथ अपने श्रमिकों-अन्य विशेषज्ञों को वापस बुला ले,तो उनकी व्यवस्था भंग अवश्य हो जाएगी।
जहाँ तक जफरूल इस्लाम सरीखे मुसलमानों की शिकायत पर उनके भारत के खिलाफ किसी कार्रवाई का सवाल है,तो वे ऐसा करने से पहले सौ बार नहीं,हजार बार सोचेंगे। अब 711ईस्वी का भारत नहीं,जब मुहम्मद बिन कासिम के बाद से वहाँ से हमलावर आकर यहाँ जंग जीतते रहे। अब भारतीय सेना विश्व की सबसे बड़ी, अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित ताकतवर सेनाओं में से एक है। जहाँ तक इस्लामिक मुल्कों की सैन्य शक्ति की बात है, तो कुछ लाख की आबादी वाला एक छोटा-सा मुल्क इजरायल उन्हें एकसाथ और एक-एक कर कई बार हरा चुका है। फिर अरब मुल्कों के मुसलमान हिन्दुस्तानी मुसलमानों को पूरा मुसलमान तक नहीं मानते, जिन्हें ये अपनी खैरख्बाह समझते/मानते आए हैं। फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पाकिस्तान, तुर्की, इण्डोनेशिया को छोड़कर इस्लामिक मुल्कों से खास रिश्ते हैं, इनमें से कई मुल्कों के शासक मोदी को सम्मानित भी कर चुके हैं और उन्हें खास तवज्जो भी देते हैं।
वैसे जफरूल इस्लाम कोई पहले ऐसे शख्स नहीं हैं, जो संवैधानिक पद बैठे रहते हुए कर या फिर बैठे रह चुके शख्सों द्वारा इस मुल्क में अपनी हममजहबियों पर जुल्म, नाइन्साफी, गैर बराबरी का इल्जाम लगाया है। देश के दो बार उपराष्ट्रपति समेत कई उच्च पदों पर रहे मुहम्मद हामिद अंसारी तथा केन्द्रीय सूचना आयुक्त रहे वजाहत उल्लाह खाँ, सीएए के विरोध में नौकरी छोड़ने वाले महाराष्ट्र के एक आइ.ए.ए.अधिकारी समेत कुछ दूसरे इस्लामिक मजहबी और सियासी रहनुमा इल्जाम लगाने में पीछे नहीं रहे हैं,ऐसी जहनियत की वजह से कश्मीरी मुसलमान आइ.ए.एस इस्तीफा देकर सियासत के मैदान में उतरे हैं,जिन्होंने एक-साल पहले आइ.ए.एस.की परीक्षा टॉप की थी, पर इनमें से किसी ने अपने उन हममजहबियों की उस जहनियत पर कभी उंगली नहीं उठायी, जो इस मुल्क में रहते हुए पाकिस्तान समेत दुनिया के सबसे खंूखार दहशतगर्द संगठन‘ आई.एस.आई.एस. के झण्डे लहराते हुए हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाते रहे हैं। उनके हममजहबियों ने किस बर्बरता से कश्मीर घाटी को कश्मीरी पण्डित विहीन कर उनके घरों, दुकानों, खेतो, बागों, मन्दिरों पर कब्जा कर लिया। उन्हें देश के अलग-अलग जगहों से पाकपरस्त हममजहबियों के पाक के झण्डे और उसके जिन्दाबाद के नारे लगाने से भी कोई ऐतराज नहीं हैं। उन्हें अपने हममजहबियों के बड़ी तादाद में अलगाववादी और आतंकवादी होने या पकड़े जाने से भी कोई मतलब/दिक्कत नहीं है, पर जब उनके खिलाफ सरकार कोई कार्रवाई करती है, तो उन पर जुल्म नजर आता है या फिर तत्काल तीन तलाक निषेध अधिनियम, जम्मू-कश्मीर से सम्बन्धित अनुच्छेद 370 और 35ए हटाये जाने , श्रीरामजन्म भूमि/बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला आने को, जम्मू-कश्मीर समेत देश के दूसरे मदरसों ,मस्जिदों और दूसरी पाक जगहों को इबादत के बजाय दहशतगर्दी और गैर मजहबियों के खिलाफ नफरत फैलाने के अड्डे बनाये जाने से रोकने के लिए उनका पंजीकरण, विदेशों से मिलने वाले धन की जाँच कराने को क्या जफरूल इस्लाम मुसलमानों पर जुल्म मान रहे हैं?
गत दिसम्बर से लेकर फरवरी माह तक उनके हममजहबयों ने ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 (सीएए) की मुखालफत के बहाने पूरे देश में हिंसा और आगजनी की थी, जिनमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए और करोड़ों रुपए का माली नुकसान भी हुआ। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में ही फरवरी, 23से 26 को हुए भीषण साम्प्रदायिक दंगे की आगजनी और हिंसा में गुप्तचर एजेन्सी आई.बी.के सिपाही अंकित शर्मा और एक पुलिस हवलदार समेत 53लोगों की जानें गई और कई करोड़ की सम्पत्ति बर्बाद हुई थी। हैरानी की बात यह है कि जफरूल इस्लाम के हममजहबी जिस सीएए कानून का इतना विरोध कर रहे थे, उससे उनका कोई वास्ता ही नहीं था। वैसे भी यह कानून नागरिकता देता है, किसी की नागरिकता छीनता नहीं है। इसी मार्च माह में जिन तारीखों पर कोरोना महामारी के चलते जब दिल्ली में एक साथ 20 लोगों के एकत्र होने पर रोक थी,उसी समय निजामुद्दीन स्थित तब्लीगीी जमात के मरकज में कई हजार देसी-विदेशी जमाती इकट्ठे कर कानून को ठंेगा दिखाया गया, फिर उन जमातियों को बिना मेडिकल जाँच के गायब होने में मदद की गई। इस कारण ये कोरोना विषाणु से संक्रमित जमातियों की वजह से अपने मुल्क के 20 से ज्यादा सूबों में यह महामारी फैल गई। इस कारण आज मुल्क में कुल कोरोना संक्रमितों में से 30फीसदी के करीब संक्रमित निजामुद्दीन तब्लीगी जमात के मरकज से निकले जमातियों की वजह से है। देश में जहाँ कहीं इन जमातियों को अस्पताल या क्वारण्टाइन केन्द्रो में रखा गया, वहीं उन्होंने चिकित्सकों, नर्साें, पुलिस कर्मियों के साथ अभद्र व्यवहार, गाली-गलौज, मारपीट, थूकना, गन्दगी फैलाना, शौच करना आदि कर उनके इस महामारी से लोगों की जान बचाने के महती कार्य में बाधा डाली है। जब कोरोना संक्रमण रोकने के लिए हिन्दुओं,जैनों के मन्दिर,सिखों के गुरुद्वारें,ईसाइयों के गिरजाघर,बौद्धों के मन्दिरों/मठों,पारसियों के अग्नि मन्दिरों,मस्जिदों को बन्द रखने का आदेश है,तो सामूहिक रूप से मस्जिद में नमाज पढने की जिद् करना और पढना। उन्हें नमाज से रोकना क्या जुल्म है? इसके अलावा मस्जिदों में अब जफरूल इस्लाम जैसे शख्स दंगाइयों से निजी-सरकारी सम्पत्ति के नष्ट करने का दण्ड वसूलने या पुलिस, चिकित्सकों, नर्सों से दुर्व्यवहार करने, उन पर थूकने पर सख्त सजा दिये जाने को जुल्म मानते हैं। फिर इनका और इनके हिमायती फर्जी सेक्यूलर पार्टियों और कुछ पत्रकार तथा उसी मानसिकता के टी.वी.चैनलों का यह इल्जाम कि कुछ जमातियों के बुरे बर्ताव की वजह से पूरी मुसलमान कौम को बेवजह बदनाम किया जा रहा है।ऐसे हिमायतियों की बदौलत जफरूल इस्लाम, असदुद्दीन औवेसी,उनका छोटा भाई अकबररूद्दीन ,उन्हीं की पार्टी का नेता वारिस पठान,नेकां के नेता डॉ.फारुक अब्दुल्ला,उमर अब्दुल्ला, पी.डी.पी.की नेता महबूबा मुफ्ती खुले आम इस्लामिक दहशतगर्दों की तरफदारी करने और अपरोक्ष रूप से पाकिस्तान की हिमायत करने के बावजूद खुद को सेक्यूलर कहते हैं तथा समुदाय विशेष के एकमुश्त वोटों के तलबगार भी उन्हें ऐसा ही कहे जा रहे हैं। देश के लोग यह भी जानते/मानते हैं कि सभी मुसलमान ऐसे नहीं है,लेकिन मुल्ला-मौलवियों के खौफ से सही बात कहने से डरते हैं,इससे जफरूल इस्लाम जैसे लोग पूरे मुल्क के मुसलमानों के नुमाइन्दे दिखाते रहते है।
कुछ माह पहले हैदराबाद में ‘एआइएमआइएम’ के नेता वारिस पठान ने भी जफरूल इस्लाम की तरह भारतीयों को धमकी के लहजे में कहा था कि अगर हिन्दुस्तान में मुसलमानों को कुछ होता है, तो अरब मुल्कों में कार्यरत 15 लाख के करीब भारतीयों पर क्या गुजरेगी,उसका अन्दाज भी यहाँ की सरकार/हिन्दू कर लंे। एक बार सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान भी भारत की शिकायत ‘संयुक्त राष्ट्र संघ(यू.एन.ओ.)में करने की धमकी दे चुके हैं।
दरअसल, जफरूल इस्लाम सरीखे लोग भारत में इस्लाम के मुजाहिद हैं, जो एक बार फिर पूरे देश को इस्लामिक मुल्क और उसके सारे वाशिन्दों को मतान्तरित कर इसे ‘दारूल इस्लाम’ बनाने में जुटे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे नेता उसमें बाधक और केजरीवाल की आप , काँग्रेस, सपा, बसपा, वामपंथी सियासी पार्टियाँ, फारूक अब्दुल्ला ,महबूबा मुफ्ती मददगार बने हुए हैं।
ऐसे में अब जरूरत इस बात की है कि जफरूल इस्लाम जैसे लोगों की शिनाख्त कर उनकी असल जगह दिखायी जाए, जो देश की सुरक्षा, स्वतंत्रता, अखण्डता को खतरा बने हुए है,ं ऐसे लोगों को दण्डित करने में मजहब को बाधा नहीं समझा जाना चाहिए।देश के मुसलमानों को भी वतनफरोशों के खिलाफ अपनी आवाज उठानी होगी,ताकि इस्लाम और वतनपरस्त मुसलमानों की सूरत और सीरत पर किसी तरह का दाग न लगे।
सम्पर्क-डॉ.बचन सिंह सिकरवार,63 ब,गाँधी नगर,आगरा-282003,मो.नम्बर-9411684054
महामारियों ने बदली दुनिया-
कोरोना वायरस का प्रकोप दुनिया के लोगों का जीवन अकल्पनीय अन्दाज में बदल रहा है। वे जिस तरह के रहन-सहन के आदी रहे हैं,उसमें बदलाव आ रहा है। पूर्व में आयी महामारियों का इतिहास बताता है कि अपने साथ बड़े बदलाव भी ले आयी। इनककी वजह से हुकूमते तबाह हुई। साम्राज्यवाद का विस्तार भी हुआ और इसका दायरा सिमटा भी। पेश है एक नजर-
महामारी फैलाने का रहा है चीन का इतिहास-
सन् 1347 में भी आज तरह चीन के जहाजों से इटली के बन्दरगाह पर महामारी लेकर पहुँचे थे। प्लेग की बीमारी में यूरोप की आधी आबादी स्वाहा हो गई थी। चीन की धरती पर ही सन् 1911में कुछ आज की तरह ही वायरस फैला और देखते-देखते पूरे मंचूरियन क्षेत्र को अपनी लपेट मेें ले लिया। उस समय तेजी से फैल रही महामारी से बचने के लिए आज की तरह ही लोगों ने खुद को घरों में कैद कर लिया। कल-कारखाने, यात्राएँ बन्द हो गईं। सीमाएँ बन्द कर दी गई। लाशों के ढेर लगने लगे थे। लोगों के चेहरे पर मास्क आ गया। जाहिर है आज ही तरह दुनिया की रफ्तार इतनी गतिवान नहीं थी। लिहाजा, महामारी के संक्रमण की चेन को अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को भेदने से पहले ही काट दिया गया। फिर भी 63 हजार लोगों की मौत हो गई थी।
महामारी फैलाने का रहा है चीन का इतिहास
चौदहवी सदी के पाँचवें और छठे दशक में प्लेग की महामारी ने यूरोप में मौत का ताण्डव किया था। इसके कहर से यूरोप की एक तिहाई आबादी काल के गाल में समा गई। ब्लैक डेथ यानी ब्यूबोनिक प्लेग से इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत के कारण, खेतों में काम करने के लिए उपलब्ध लोगों की संख्या बहुत कम हो गई। इससे जमींदारों को दिक्कतें होने लगी। पश्चिमी यूरोप के देशों की सामन्तवादी व्यवस्था टूटने लगी।
मजदूरी प्रथा ने लिया जन्म-
इस बदलाव ने मजदूरी पर काम करने की प्रथा को जन्म दिया, जिसके कारण पश्चिमी यूरोप ज्यादा आधुनिक, व्यापारिक और नकदी आधारित अर्थव्यवस्था की और बढ़ चला। समुद्री यात्राओं की शुरुआत-पश्चिमी यूरोपीय देशों ने साम्राज्यवाद की शुरुआत की। जब ये अन्य इलाकों में गएख्तो उन्हें अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ो का मौका मिला। फिर उपनिवेशवाद भी शुरू कर दिया।
बढ़ा यूरोप का दबदबा-
अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण ने उन्हें नई तकनीक विकसित करने को मजबूर किया। उपनिवेश बनाए और और वहाँ से जो कमाई की, उसके बूते ही पश्चिम यूरोपीय देश दुनिया से ताकतवर बने। उसी तरक्की के बूते पश्चिम यूरोप के बहुत से देश दुनिया में अपना दबदबा बनाए हुए है ।
येलो फीवर और फ्रान्स के खिलाफ हैती की बगावत
सन् 1801 में कैरेबियाई देश हैती मेें यूरोप की औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ यहाँ के बहुत से गुलामों ने बगावत कर दी। अन्त में तुसैत लोवरतूर का फ्रान्स में नेपोलियन बोनापट ने हैती पर कब्जा जमाने के लिए सेना भेजी । ये सैनिक पीत ज्वर के प्रकोप से खुद को नहीं बचा पाए। यूरोप के सैनिकों के पास कुदरती तौर पर इस बुखार को झेलने की वो ताकत नहीं थी,जो अफ्रीकी मूल के लोगों में थी।
अमेरिका को हुआ दोगुना रकबा-
हैती पर कब्जे में नाकाम अभियान के दो साल के बाद बाद फ्रान्स के लीडर ने 21 लाख वर्ग किलोमीटर इलाके वाले कैरेबियाई द्वीप को अमेरिका की नई सरकार को बेच दिया। इसे लुईसियाना पर्चेस के नाम से भी जाना जाता है,जिसके बाद नए देश, अमेरिका का इलाका बढ़कर दोगुना हो गया।
अमेरिका में चेचक से मौत-यूरोपीय देशों ने पन्द्रहवीं सदी के अन्त तक अमेरिकी महाद्वीपों में उपनिवेशवाद का प्रसार करते हुए अपने साम्राज्य स्थापित कर लिया था। उपनिवेशवादी अपने साथ चेचक, खसरा, हैजा, मलेरिया, प्लेग, काली खाँसी और टाइफस जैसी महामारियों ले गए,जिन्होंने करोड़ों लोगों की जान ले ली।
दुनिया के तापमान में कमी- आबादी कम हो जाने की वजह से खेती कम की गई। एक बड़ा झटका खुद ही कुदरती तौर पर दोबारा बड़े चरागाहांे और जंगलों में तब्दील हो गया। इतने बड़े पैमाने पर पेड़-पौधे उग आने की वजह से कार्बन डॉई ऑक्साइड का स्तर नीचे आ गया और वैश्विक तापमान में कमी आई जिसे ‘लघु हिमालययुग’ कहा गया।
चीन में मिंग राजवंश का पतन-
सन् 1641 में उत्तरी चीन मंे प्लेग से बड़ी संख्या में लोगों की जा चली गई थी। साथ में सूखे और टिड्डियों के प्रकोप से फसलें तबाह हो चुकी थी।लोगों के पास खाने को अनाज नहीं था। इस बीच उत्तर से आने वाले आक्रमणकारियों ने चीन से मिंग राजवंश को पूरी तरह उखाड़ फेंका। बाद में मंचूरिया के किंग वंश के राजाओं ने संगठित तरीके से चीन पर आक्रमण किया और मिंग राजवंश को हमेशा के लिए खत्म कर दिया।
अफ्रीका के लिए काल बना राइण्डरपेस्ट
अफ्रीका में पशुओं के बीच फैली एक महामारी ने यूरोपीय देशों को यहाँ अपना साम्राज्य बढ़ाने में मदद की। सन् 1881 और सन् 1897 के बीच राइण्डरपेस्ट नाम के वायरस ने अफ्रीका में लगभग 90फीसद पालतू जानवरों केा खत्म कर दिय।
दिखाने लगा दुष्प्रभाव-
यहाँ के समाज में बिखराव आ गया। भुखमरी फैल गई। इसने यूरोपीय देशों के लिए अफ्रीका के एक बड़े हिस्से पर अपने उपनिवेश स्थापित करने का माहौल तैयार कर दिया। सन् 1900तक अफ्रीका के 90फीसद हिस्से पर औपनिवेशिक ताकतों का नियंत्रण हो गया था। यूरोपीय देशों का अफ्रीका की जमीन हड़पने में राइण्डरपेस्ट वायरस के प्रकोप से भी काफी मदद मिली।
रेशम के कपड़े पर प्रकाशित हुआ ‘बाम्बे गजट’26अप्रैल। आज के ही दिन भारत का पहला अँग्रेजी अखबार ‘बाम्बे गजट’ पहली बार रेशम के कपड़े पर प्रकाशित हुआ। सन् 1789 में ‘बाम्बे हेराल्ड’ नाम से इस अखबार की स्थापना हुई थी। सन् 1791 में इसका नाम बदलकर ‘बाम्बे गजट’ कर दिया गया।यूक्रे के चर्नोबिल में भयानक परमाणु दुर्घटना से दहली दुनिया26 अप्रैल।ं आज के ही दिन सन् 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लाण्ट में अब तक की सबसे भयानक परमाणु दुर्घटना हुई थी। परमाणु रिएक्टर में अचानक धमाके शुरू हो गए और करीब दो लाख वर्ग किलोमीटर का इलाका जहरीली हवा के चपेट में आ गया।आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार इस हादसे में 31लोगों की मौत हुई। माना जाता है कि इस हादसे में निकले रेडियोएक्टिव पदार्थ हिरोशिमा में हुए परमाणु हमले से चार गुना अधिक थे,जिसकी वजह से आसपास बने एक लाख पैंतीस हजार लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुँचाया गया।
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जफरूल इस्लाम ऐसे पहले शख्स
संवैधानिक पद पर बैठे या फिर बैठे रह चुके शख्सों द्वारा अपनी हममजहबियों पर जुल्म,नाइन्साफी,गैर बराबरी का इल्जाम जुल्मयहाँ
लेकिन जफरूल इस्लाम से यह सवाल पूछा जाना जरूरी है कि आखिर मारत में मुसलमानों पर किस तरह के घरों या मस्जिदों को ढूँढ़ कर पकड़ कर इलाज के लिए अस्पताल लाना,अगर उनकी निगाह में जुल्म है,तो यह खता सरकार ने जरूर की है,क्योंकि ऐसा करके उसने न सिर्फ उस जमात/मुसलमान की जान बचायी है,बल्कि उसके घर वालों,खानदान को इस महामारी की गिरफ्त में आने से बचाया,जिसकी न कोई टीका और न दवा।
कायदे से तो
नदियों का जल शुद्ध होने से
सरकारी मशीनरी की खामियाँ की पोल खोलती स्वच्छ हुई नदियाँ
राधेबाबू अग्रवाल
कोरोना विषाणु से फैली महामारी से भारत समेत विश्वभर के देशों को जनधन की भारी क्षति हो रही है और न जाने कब तक यह होती रहेगी? इस महामारी के दुष्प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से वर्तमान में अपना देश लॉकडाउन के तीसरे दौर से गुजर रहा है। इस दौरान संक्रमण रोकने को देशभर में हर तरह की आर्थिक गतिविधियाँ और लोगों को अपने घरों में रहने को कहा गया है। इससे जहाँ देश का आर्थिक विकास का पहिया थम गया और लोगों विशेष रूप से आर्थिक रूप कमजोर लोगों/श्रमिकों आदि को बहुत अधिक कष्ट उठाना पड़ रहा है,वहीं इस लॉकडाउन के कारण देश के वातावरण यानी वायु और कई नदियों का प्रदूषण में बहुत सुधार हुआ। यहाँ तक गंगा,यमुना सहित कई दूसरे नदियों का जल पीने और आचमन योग्य हो गया है। वायु प्रदूषण कम होने से सौ किलो मीटर स्थित शहरों जैसे अम्बाला, सहारनपुर से हिमालय दिखायी दे रहा है। जो गंगा का जल करोड़ों खर्च करने पर भी उतनी स्वच्छ नहीं हुआ, वह लॉकडाउन में कानपुर और दूसरे शहरों के कारखाने बन्द होने से हो गया है, जबकि अब भी कई शहरों के गन्दे पानी के नाले गंगा, यमुना में गिर रहे हैं।
गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के जल के शुद्ध से होने से यह लगता है कि हमारी सरकारी मशीनरी की खराब निगरानी/घूसखोरी की वजह से ये नदियाँ गन्दी बनी हुई हैं,क्यों कि भ्रष्टाचार के कारण यह अपना काम को सही ढंग से नहीं कर रही है।
ऐसी स्थिति में सरकार को गंगा,यमुना समेत सभी प्रमुख नदियों को स्वच्छ रखने की जिस मशीनरी को जिम्मेदारी सौंपी गयी है, उसे यह सख्त हिदायत दी जाए,कि किसी भी कीमत वह प्रदूषणकारी कारखानों, टेनरियों का अशुद्ध जल इन नदियों में न कर गिरने दे।
,अम्बाला स

मोबाइल नम्बर-9411684054

उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसियेशन
3/5 डाली बाग कॉलोनी, लखनऊ
स्थानीय कार्यालय-63ब,गाँधी नगर,आगरा-282003
शोक प्रस्ताव

उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसियेशन (उपजा)की स्थानीय इकाई के समस्त पदाधिकारी और सदस्यगण अपने वरिष्ठ पत्रकार साथी पंकज कुलश्रेष्ठ समाचार उपसम्पादक दैनिक जागरण के आकस्मिक निधन पर गहन शोक व्यक्त करते हैं।
हम सभी परमपिता परमेश्वर से यह प्रार्थना करते है कि वह दिवंगत आत्मा को शान्ति तथा उनके शोक संतप्त स्वजनों और परिजनों को इस असीम शोक को सहन करने की शक्ति एवं सामर्थ्य प्रदान करे।
डॉ.बचन सिंह सिकरवार
अध्यक्ष आगरा उपजा
अनिल गर्ग उपाध्यक्ष राजेन्द्र फौजदार, सुनीत शर्मा महामंत्री, धर्मेन्द्र चौधरी प्रदेश सचिव, ललित मोहन अग्रवाल अछनेरा, मुकेश रावत, डॉ.धर्मवीर सिंह चाहर, रवीन्द्र लवानियां, धर्मेन्द्र सिंह, संजय सिंह, डॉ.अनुज सिंह सिकरवार, चौधरी ओम प्रकाश, धर्मवीर शर्मा, इमरान खान, रामकृपाल सिंह आदि

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